लोभ समस्त पापों का जन्म दाता है:अभिषेक मोदी

भाटापारा ।श्री 1008 आदिनाथ नवग्रह पंच बालयती दिगंबर जैन मंदिर भाटापारा में पर्युषण पर्व दश लक्षण महापर्व बहुत धूमधाम से मनाया जा रहा है। प्रातः 7:00 श्री 1008 मुनीसुब्रत नाथ जी भगवान की प्रतिमा मस्तक पर विराजमान कर भक्ति नृत्य के साथ पांडुक शिला में विराजमान की गई, तत्पश्चात श्री जी का मंगल अभिषेक प्रारंभ हुआ ,सभी भक्तों ने अत्यंत भक्ति पूर्वक श्री जी का मंगल अभिषेक महा मस्तकाभिषेक किया। आज की मंगल ,सर्व विघ्न विनाशक, शांति धारा का सौभाग्य श्री अनिल मोदी कल्लू भाई, अभिनव मोदी भाटापारा ,को प्राप्त हुआ , शांति धारा के पश्चात भगवान की मंगलमय आरती की गई ,इसमें सुरपति ले अपने शीश जगत के ईश गए जिनराजा ,जा पांडुक शिला विराजा, ,गीत पर सभी ने भक्ति भाव से भगवान की मंगल आरती संपन्न की, मंगल आरती के पश्चात श्री देव शास्त्र गुरु पूजा,सोलह कारण पूजा ,पंच मेरु पूजा , दश लक्षण पूजा, सानंद संपन्न हुई । दशलक्षण पर्व के इस अवसर पर श्रीमती सुमन लता मोदी के द्वारा श्री 1008 दशलक्षण विधान संपन्न किया जा रहा है, आज चतुर्थ दिन भी दशलक्षण विधान किया गया, पूजा की गई , एवं मांडने मेंअर्ध समर्पित किया।
आज धर्म का चौथा लक्षण है – उत्तम शौच, इस सोच शब्द का अर्थ है- स्वच्छता,निर्मलता, उज्जवलता । जिस प्रकार क्षमा धर्म का विरोधी क्रोध है, मार्दव धर्म का विरोध मान है, आर्जव धर्म का विरोध ही माया है, उसी प्रकार इस शौच धर्म का विरोधी लोभ हैं।
लोभ समस्त पापों का जन्मदाता है, व्यक्ति अपनी इच्छाओं को जितना जितना पूरा करता है उतनी और बढ़ती चली जाती है। लोभ की तासीर है कि जितना लाभ बढ़ता जाता है उतना लोग भी बढ़ता जाता है। लोभ के कारण आज तक किसी का मन तृप्त नहीं हुआ है। लोभ और तृष्णा में यही फर्क है कि पास का परिग्रह नष्ट ना हो जाए यह लोभ हैं और नवीन परिग्रह प्राप्त हो जाए यह तृष्णा है। जीवन में सुख पाने के लिए संतोष बहुत जरूरी है, एक कहावत है ‘संतोषी सदा सुखी’। गृहस्थ व्यक्ति भी यदि संतोष की साधना करता है तो वह सुखी हो सकता है। लोभी व्यक्ति सदा अभाव में जीता है । संतुष्ट वह है जो केवल उसका मूल्यांकन करता है जो उसके पास है, असंतुष्ट वह है जो उसकी तरफ भागता है जो उसके पास नहीं है।
अभावों को पूरा करते करते हमारे जीवन का अभाव हो जाता है पर अभावो का अंत नहीं हो पाता। केवल ऊपरी शान और दिखावे के नाम पर हमने बहुत से कृत्रिम साधनों को अपनाया है और जब हम उन्हें पूरा करने की कोशिश में लगते हैं हमारे जीवन का संतुलन बिगड़ जाता है।
जीवन में निर्मलता लाना अत्यंत आवश्यक है, निर्मलता का अर्थ है मन का भीग जाना। मृत्यु के समय जब व्यक्ति सोचता है भगवान को याद करके कि ऐसे निर्मल परिणाम मेरे जीवन भर क्यों नहीं रहे उसे रोना आ जाता है और मन भीग जाता है, यही है निर्मलता।
भाग्य पर विश्वास करो, भाग्य से अधिक एक कौड़ी भी नहीं मिलेगा

इच्छाएं कभी पूरी नहीं हो सकती और ना ही इच्छाओं का दबाया जाता है। इच्छाओं से तो ऊपर उठा जाता है, लोभी व्यक्ति जीवन भर जोड़ता है और अंत में सब यही छोड़कर चला जाता है।
श्मशान में कितने भी मुर्दे ले आओ उसका पेट नहीं भरता, अग्नि में कितना भी ईंधन डालो वह तृप्त नहीं होती, सागर में कितनी भी नदियां मिल जाए वह तृप्त नहीं होता , इसी प्रकार तीन लोक की संपत्ति मिलने पर भी इच्छाएं पूर्ण नहीं हो सकती। अतः जो सुख संतोष में है वह किसी और चीज़ में नहीं अतः लोभ छोड़कर शौच धर्म को धारण करें।
आज के कार्यक्रम में प्रमुख रूप से श्री शोभा लाल जैन ,श्री नवीन कुमार ,नितिन कुमार, नैतिक कुमार ,भावना , गदिया, पंकज गदिया, संजय शील चंद जैन, संदीप सनत कुमार जैन ,प्रकाश ,अनिल, आलोक, , अभिषेक ,अभिनंदन ,अभिनव अरिंजय ,आदि, मोदी सुमन लता, सुमन ,अंशु ,नेहा, रानी, सुरभि मोदी , आदि उपस्थित रहेे।