0 संजीव वर्मा
देश में इन दिनों प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा मारे जा रहे छापे और उसके राजनीतिक दुरुपयोग की चर्चा जोरों पर है। विपक्ष का आरोप है कि केंद्र सरकार जांच एजेंसियों का इस्तेमाल अपने राजनीतिक विरोधियों को परेशान करने में कर रही है। इस आरोप में कितनी सच्चाई है यह तो वही लोग जाने, लेकिन हमें भी लगता है कि ‘दाल में कुछ काला’ जरूर है। दरअसल ईडी की कार्रवाई वहीं हो रही है, जहां विपक्ष की सरकार है या सरकार को जिनसे दिक्कत है। या फिर जैसे ही किसी राज्य में भाजपा या उसके समर्थन वाली सरकार किसी विवाद में फंसती है, वैसे ही केन्द्रीय एजेंसियों की छापेमारी शुरू हो जाती है। महाराष्ट्र का उदाहरण ले लें, जब राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने मराठी मानुस की भावनाओं को आहत करने वाला बयान दिया, जिससे चौतरफा विवाद हुआ। यह विवाद आगे बढ़ता उसके पहले ही प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी ने संजय राऊत के खिलाफ छापेमारी शुरु कर दी। यही नहीं राउत की गिरफ्तारी भी हो गई। दरअसल कोश्यारी ने एक कार्यक्रम में कहा था कि गुजरातियों और राजस्थानियों को निकाल दिया जाए तो मुंबई में कुछ नहीं बचेगा और मुंबई देश की आर्थिक राजधानी नहीं कहलाएगी। उसके बाद इस पर विवाद शुरु हुआ और मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उद्धव ठाकरे सहित कई बड़े नेताओं ने इसकी आलोचना की। यह विवाद बढ़ता उससे पहले संजय राऊत के यहां छापेमारी शुरू हो गई। ईडी संजय राऊत से पहले भी कई बार पूछताछ कर चुकी थी। लेकिन इस विवाद के बीच छापेमारी पर सवाल उठे, जो लाजिमी थे। छापेमारी के कारण सारी बहस दूसरी दिशा में मुड़ गई और राज्यपाल के विवादित बयान तथा एकनाथ शिंदे मंत्रिमंडल नहीं बन पाने जैसे मामले ठंडे बस्ते में चले गए। वहीं, कोलकाता में तृणमूल कांग्रेस के नेता पार्थ चटर्जी और उनकी सहयोगी अर्पिता पर ईडी की छापेमारी भी चर्चा में रही। अब ईडी की धमक छत्तीसगढ़ में भी सुनाई देने लगी है। पिछले हफ्ते ईडी की टीम ने रायपुर, दुर्ग और राजनांदगांव में एक सराफा और कपड़ा कारोबारियों के साथ ही चार्टर्ड एकाऊंटेंट तथा उनसे जुड़े कारोबारियों और उनके करीबियों के यहां दबिश दी। राज्य के सराफा कारोबारियों पर पहली बार ईडी ने इतने व्यापक पैमाने पर कार्रवाई की है। इससे पहले आयकर की टीम ने स्टील और पॉवर प्लांट कारोबारियों के ठिकानों पर दबिश दी थी। वैसे ईडी की कार्रवाई को लेकर कई आरोपियों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दायर की है। याचिकाओं में ईडी की तलाशी, जब्ती और कुर्की की शक्तियों, आरोपियों पर बेगुनाही साबित करने की जिम्मेदारी और उनके खिलाफ सबूत के तौर पर ईडी को दिए गए बयानों की वैधता पर सवाल उठाया था। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रवर्तन निदेशालय के पास गिरफ्तारी, कुर्की, तलाशी और जब्ती की शक्ति है। बहरहाल, ईडी के पास असीमित अधिकार है। वह देश में कहीं भी अपने अधिकार का इस्तेमाल कर सकता है और कर भी रहा है। लेकिन उसकी कार्रवाई में पक्षपात साफ नजर आ रहा है। सवाल उठ रहे हैं मोदी सरकार के सत्ता संभालने के बाद 8 साल में अब तक किसी भी भाजपा नेता के खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नहीं हुई। क्या ईडी की नजर में सारे भाजपाई पाक-साफ हैं। दूध के धुले हुए हैं। हमारा मानना है कि ईडी सियासी मुद्दों में न उलझें। लेकिन यह दुर्भाग्य है कि अपने देश में सरकारी एजेंसियां ‘तोतें’ की तरह काम करती हैं। यह स्थिति लंबे समय से चल रही है। इस समय तो ‘सर के उपर से पानी’ बहने लगा है। लेकिन सरकार चुप है। ईडी भी चुप है। केवल विपक्ष चिल्ला-चिल्ला कर अपनी भड़ास निकाल रहा है कि सरकारी जांच एजेंसियां सरकार की भोंपू हैं। अब सच क्या है-गलत क्या है। यह देश की जनता जानना चाहती है। ईडी ही नहीं, केंद्र सरकार की भी जिम्मेदारी है कि वह जनता का भ्रम दूर करें और सच्चाई बताएं।