नई दिल्ली. कोविड-१९ से निपटने के लिए लागू की गई कर्ज भुगतान पर राहत (लोन मोराटोरियम) की सुविधा बैंकों के लिए पेरशानी का सबब बन सकती है। इंडिया रेटिंग्स की ओर से जारी रिपोर्ट के मुताबिक, मोराटोरियम के कारण शुद्ध ब्याज मार्जिन और कर्ज वितरण में कमी के चलते देश के पांच बड़े बैंकों की वसूल न होने वाली पूंजी (एनपीए) बढ़कर पांच फीसदी से ज्यादा हो सकती है। इसमें एचडीएफसी बैंक, आईसीआईसीआई बैंक, एक्सिस बैंक, कोटक महिंद्रा बैंक और इंडसइंड बैंक शामिल हैं। इन पांचों बैंकों की सामूहिक रूप से बैंकिंग में २५ फीसदी और निजी बैंकिंग क्षेत्र में ७५ फीसदी हिस्सेदारी है।
रिपोर्ट में अनुमान जताया गया है कि इन बैंकों का एनपीए वित्त वर्ष २०२० के २.७ फीसदी से बढ़कर चालू वित्त वर्ष में ५ फीसदी के करीब पहुंच सकता है। वित्त वर्ष २०१९ में इन बैंकों का एनपीए २.३ फीसदी रहा था। रिपोर्ट के मुताबिक, एनपीए की बढ़ोतरी भले ही कम हो सकती है, लेकिन रिफाइनेंसिंग की चुनौती बनी रहेगी। कर्ज की मांग कम होने के कारण बैंक अपनी अतिरिक्त तरलता को कम रिटर्न वाले विकल्पों में निवेश कर रहे हैं। इसमें सरकारी बॉन्ड और अच्छी रैंकिंग वाली कॉरपोरेट सिक्युरिटीज शामिल हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक, वित्त वर्ष २०२० में इन ५ बैंकों की जमा वृद्धि १८.८ फीसदी रही है। वित्त वर्ष २०१९ में यह १८.५ फीसदी रही थी। वहीं, इस अवधि में कर्ज की रफ्तार १९.१ फीसदी से घटकर १५ फीसदी पर आ गई है। इसके अतिरिक्त पिछले छह महीनों में आरबीआई ने बैंकिंग सिस्टम में १.७ लाख करोड़ रुपये की लिक्विडिटी डाली है।
रिपोर्ट में अनुमान जताया गया है कि कोविड-१९ महामारी का बैंकिंग क्षेत्र की जीडीपी पर विनाशकारी प्रभाव पड़ेगा। इससे अर्थव्यवस्था पर गहरी मुसीबत आ जाएगी। इसके अतिरिक्त बैंकों ने अपनी अतिरिक्त तरलता में से एक बड़ा हिस्सा रिवर्स रेपो रेट में लगाया है। पिछले एक साल में रिवर्स रेपो रेट २१५ बेसिस पॉइंट घटकर ३.३५ फीसदी पर आ गया है। इसके अलावा कॉस्ट ऑफ फंड्स में ५ से ६ फीसदी की गिरावट आई है। यह नकारात्मकता की ओर ले जा सकता है।