बीजापुर। छत्तीसगढ़ में आतंक का पर्याय बने माओवादी अब सरकार से वार्ता के लिए तैयार हैं। लेकिन वार्ता के लिए उन्होंने सरकार के सामने कुछ शर्तें रखी हैं। दण्डकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी भारत की कम्युनिस्ट पार्टी माओवादी के प्रवक्ता विकल्प की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि हमारी पार्टी विगत कई सालों से यह घोषणा करती आ रही है कि उत्पीडि़त वर्गों व तबकों की जनता का हित ही हमारे लिए सर्वोपरि है इसलिए जनता के फायदे के लिए हम हमेशा शांति वार्ता के लिए तैयार हैं। बशर्ते सबसे पहले सरकार वार्ता के अनुकूल माहौल बनाने संघर्ष वाले इलाकों से सरकारी सशस्त्र बलों के कैंपों को हटाए व उन्हें उनके मूल बैरकों में लौटाएं। हमारी पार्टी पर लगाए गए प्रतिबंध को हटाए और जेलों में बंद पार्टी नेताओं को निशर्त रिहा करें। सिविल सोसायटी को इस दिशा में पहल करनी चाहिए, उसे पीडि़त परिवारों से मुलाकात करने, उनका रजिस्टर बनाने जैसे सतही व सस्ते उपायों तथा लोगों को भटकाने के हथकण्डों को छोड़ देना चाहिए।
इधर माओवादियों के आए बयान के बाद राज्य के गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू ने कहा है कि उन तक यह पत्र पहुंचा नहीं है,लेकिन उन्होने सुना जरूर है। सरकार की तो मंशा ही है शांति स्थापित करने की,माओवादियों की ओर से ऐसा कोई प्रस्ताव आता है तो मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में बैठकर तय करेंगे कि आगे क्या किया जा सकता है। पहले तो उनकी शर्तों को जानना होगा,फिर क्या उसे पूरा कर पाना उचित होगा इस पर विचार होगा। चूंकि यह काफी गंभीर विषय है इसलिए सतही तौर पर कोई बात करना उचित भी नहीं होगा।
वहीं बस्तर रेंज के आईजी सुंदर दास पी. का कहना है कि क्रांति के नाम पर की जा रही हिंसक गतिविधियों का औचित्य बताने में माओवादी नेतृत्व अभी तक असफल रहा है। आम लोगों ने भी माओवादियों के विचारधारा और उनके तौर तरीकों को लेकर सवाल उठाना शुरू कर दिया है। यदि माओवादी वास्तव में जन मानस के कल्याण को लेकर चिंतन कर रहे हैं तो पहले उन्हे स्थानीय लोगों के विरूद्ध की जा रही हिंसा को बंद करना चाहिए।
माओवादी सरकार से वार्ता के लिए तैयार, लेकिन वार्ता के लिए रखी कुछ शर्तें
