ब्यावरा: कांग्रेस और भाजपा के बीच कांटेदार मुकाबले के आसार

अरुण पटेल

मध्य प्रदेश में होने वाले 28 विधानसभा उपचुनाव में तीन क्षेत्र ऐसे हैं जहां पर बिकाऊ और टिकाऊ का कोई मुद्दा नहीं है बल्कि यहां पर विकास, स्थानीय समस्याएं आदि मुद्दे हैं। यह उपचुनाव कोरोना संक्रमण के कारण कांग्रेस के विधायक गोवर्धन दांगी का निधन हो जाने से रिक्त हुए स्थान की पूर्ति के लिए हो रहा है। यहां पर कांग्रेस के रामचंद्र दांगी और भाजपा के नारायण सिंह पंवार के बीच कांटेदार मुकाबला हो रहा है। बसपा ने यहां से गोपाल सिंह भिलाला को उम्मीदवार बनाया है। यहां बसपा का कोई खास असर नहीं रहा है इसलिए इस उपचुनाव में वह क्या कमाल दिखाएगी यह बाद में ही पता चल सकेगा। जहां तक परेशानियों और दिक्कतों का सवाल है भाजपा और कांग्रेस दोनों उम्मीदवारों के सामने लगभग समान हैं। दोनों ही पार्टियों में अंदरखाने उम्मीदवारों को लेकर असंतोष है और यदि समय रहते काबू नहीं पाया गया तो भितरघात का खतरा बना रहेगा और भाजपा और कांग्रेस में से जिसके असंतुष्ट असरदार होंगे उसका उम्मीदवार विधानसभा पहुंचने से रह जाएगा और जो असंतोष को न्यूनतम कर लेगा वह चुनाव जीत जाएगा, लेकिन जो भी जीतेगा उसे काफी पसीना बहाना होगा क्योंकि जीत की राह किसी के लिए भी आसान नहीं है। यहां की एक परंपरा यह भी रही है कि पार्टियां भले ही चेहरा ना बदलें लेकिन मतदाता चेहरा बदल देता है। भाजपा के नारायण सिंह पंवार एक चुनाव जीत चुके हैं और एक चुनाव हारे हैं। जो चेहरा एक चुनाव जीता है उसे दोबारा विधायक बनने का मौका बीते पांच चुनाव में नहीं मिला है। कांग्रेसी रामचंद्र दांगी दो बार चुनाव हार चुके हैं और उनके समर्थकों को उम्मीद है कि यहां की परंपरा को देखते हुए इस बार रामचंद्र चुनाव जीतेंगे, जबकि भाजपा के नारायण सिंह पंवार एक बार चुनाव जीत चुके हैं और देखने वाली बात यही होगी कि एक बार जीत चुके चेहरे को दोबारा नहीं चुनने का जो मिथक बना हुआ है उसे वह तोड़ पाएंगे या नहीं?

क्षेत्र में जातिगत समीकरण भी काफी मायने रखते हैं और यही कारण है कि कांग्रेस के रामचंद्र दांगी और भाजपा के नारायण सिंह पंवार दोनों ही यादव, लोधा और गुर्जर मतदाताओं को साधने के लिए पूरी ताकत लगाए हुए हैं। क्षेत्र में लगभग ढाई लाख मतदाता है उनमें से लगभग 22000 दांगी,18000 सोंधिया, 17000 यादव,12000 गुर्जर 13,000 लोधा और इतने ही वैश्य एवं 7000 मुस्लिम मतदाता है। भाजपा उम्मीदवार पंवार को टिकट देने का पार्टी में विरोध हो रहा था और जो टिकट के दावेदार हैं वह अभी भी असंतुष्ट बताए जाते हैं। कांग्रेस उम्मीदवार का चयन पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह पर छोड़ दिया गया था उनकी पसंद से रामचंद्र दांगी कांग्रेस उम्मीदवार बने हैं। ब्यावरा विधानसभा क्षेत्र दिग्विजय सिंह के लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत है जहां से दिग्विजय सिंह सांसद रहे हैं और यहां उनका अच्छा खासा प्रभाव है। दांगी को चुनाव जिताने के लिए दिग्विजय सिंह भी पूरी कोशिश करेंगे और उनके समर्थक भी प्रचार में लगे हुए हैं। 2018 में चुनाव जीते कांग्रेस के गोवर्धन दांगी का परिवार और पुरुषोत्तम दांगी तथा रामचंद्र दांगी टिकट के दावेदार थे। कांग्रेस ने सबसे अंत में यहां टिकट का फैसला किया। टिकट रामचंद्र दांगी को मिल गया है पर वह 2003 और 2008 का कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में चुनाव हार चुके हैं और पार्टी ने उन्हें तीसरी बार फिर से मौका दिया है। देखने वाली बात यही होगी कि क्या दांगी इस अवसर का फायदा उठाते हुए चुनाव जीत पाएंगे या नहीं ? दिग्विजय सिंह का समर्थन उनकी सबसे बड़ी ताकत है और वैसे भी इस इलाके में दिग्विजय सिंह एक बड़ा चेहरा है और दांगी को उम्मीद है कि राजा साहब के भरोसे वह विधानसभा में पहुंच ही जाएंगे। दिग्विजय सिंह के साथ कांग्रेस टिकट के सभी दावेदारों और यहां के कुछ प्रमुख नेताओं की भोपाल में चर्चा के बाद सभी ने चुनाव में पूरी ताकत लगने का भरोसा दिलाया और यह इसलिए संभव हुआ क्योंकि टिकट का फैसला दिग्विजय सिंह ने ही किया था। दिग्विजय सिंह के पुत्र और पूर्व मंत्री जयवर्धन सिंह ने यहां मोर्चा संभाल लिया है और उनके प्रयासों से जो कांग्रेसजन निष्क्रिय थे वह भी सक्रिय हो गए हैं।भाजपा में असंतोष होने की खबर अंदरखाने से आ रही हैं। पूर्व विधायक बद्रीलाल यादव के भतीजे जिला भाजपा अध्यक्ष दिलबर यादव भाजपा उम्मीदवार नारायण सिंह पवार के भतीजे जगदीश पवार, रामनारायण दांगी जिला पंचायत अध्यक्ष गायत्री देवी के पति जसवंत गुर्जर भी टिकट की दावेदारी कर रहे थे। इन सभी का असंतोष दूर करने के लिए पार्टी ने भोपाल से नेता भेजे थे और वह अपने अभियान में कितने सफल रहे यह मतगणना से ही पता चल सकेगा। इस प्रकार पार्टी की पहली समस्या असंतोष दूर कर उन्हें प्रचार में जी-जान से लगाना है। पेयजल की समस्या क्षेत्र में बड़ी समस्या है और अभी तक यहां के लोग शुद्ध पेयजल के लिए तरस रहे हैं। यह भी एक बड़ा चुनावी. मुद्दा है।

और अंत मे…

ब्यावरा विधानसभा क्षेत्र का पिछले पांच चुनाव का रिकार्ड देखा जाए तो तीन बार कांग्रेस और दो बार भाजपा के उम्मीदवार सफल रहे हैं। कांग्रेस की मजबूती का कारण यह है कि इस इलाके में दिग्विजय सिंह की मजबूत पकड़ है। 1998 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के बलराम सिंह गुज्जर ने भाजपा के बद्रीलाल यादव को 6532 मतों के अंतर से पराजित किया था। इस चुनाव में बसपा के नवल सिंह दांगी को मात्र 3150 वोट ही मिले थे और वे चौथे स्थान पर थे, उनसे ऊपर तो निर्दलीय कुसुमकांत मित्तल थे जिन्हें 7755 वोट मिले। 2003 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के बद्रीलाल यादव ने कांगेस के रामचंद्र दांगी को 4915 मतों के अंतर से पराजित किया। 2008 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के पुरुषोत्तम दांगी ने भाजपा के बद्री लाल यादव को 13444 मतों के भारी अंतर से शिकस्त दी। 2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के नारायण सिंह पंवार ने कांग्रेस के रामचंद्र दांगी को 3088 मतों के अंतर से हराया। 2018 के चुनाव में कांग्रेस के गोवर्धन दांगी ने भाजपा के नारायण सिंह पंवार को मात्र 826 मतों के अंतर से शिकस्त दी। अब 10 नवंबर को मतगणना से ही पता चल सकेगा कि कड़े मुकाबले में कांग्रेस अपनी सीट बचा पाती है या भाजपा फिर से इसे अपनी झोली में डाल लेती है।
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