– अरुण पटेल
प्रदेश की राजनीति में 3 नवम्बर को होने वाले विधानसभा के उपचुनाव राज्य की दिशा, दशा और विकास की दृष्टि से निर्णायक होंगे, क्योंकि 10 नवम्बर को जब इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीनों से जो नतीजे निकलेंगे वही यह तय करेंगे कि शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री बने रहेंगे या फिर से कमलनाथ के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनेगी। वैसे तो यह उपचुनाव हैं लेकिन इनमें मतदाता का मानस आमचुनाव जैसा रहेगा क्योंकि उसे यह भलीभांति पता है कि उसके वोट से सरकार का फैसला होना है। चुनाव शिवराज और कमलनाथ के चेहरों के बीच होना है लेकिन कांग्रेस के निशाने पर ज्योतिरादित्य सिंधिया ज्यादा हैं और भाजपा के निशाने पर कमलनाथ तथा दिग्विजय सिंह। इसका कारण यह है कि इन चुनावों में सत्ता का रास्ता ग्वालियर-चम्बल संभाग से ही होकर गुजरना है क्योंकि वहां 16 उपचुनाव हो रहे हैं। टिकाऊ और बिकाऊ के नारे पर कांग्रेस चुनाव लड़ने जा रही है और दलबदल को एक मुद्दा बना रही है तो दूसरी ओर उसने दूसरे दलों से आये 9 उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारा है। इसलिए कम से कम इन क्षेत्रों में जो भी जीतेगा वह दलबदलू ही होगा। हालांकि कांग्रेस के अपने तर्क हैं और वह मानती है कि उसके साथ जो लोग आये हैं वे बिकाऊ नहीं बल्कि कमलनाथ सरकार की उपलब्धियों से प्रभावित होकर पार्टी में शामिल हुए हैं। इस प्रकार ये उपचुनाव बिकाऊ, टिकाऊ एवं जिताऊ पर आकर टिक गए हैं और यह मतदाता ही तय करेंगे कि उसकी नजर में कौन बिकाऊ और कौन टिकाऊ है।
भाजपा की तरफ से पूरे जोश-खरोश के साथ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, केंद्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सांसद विष्णुदत्त शर्मा, राष्ट्रीय महामंत्री कैलाश विजयवर्गीय, ज्योतिरादित्य सिंधिया, गृहमंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा, केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल मैदान में उतर चुके हैं। इसके साथ ही असंतुष्टों को मनाना और बूथ स्तर तक व्यवस्था को संभालने के साथ ही प्रचार अभियान में प्रदेश महामंत्री संगठन सुहास भगत, सह-संगठन मंत्री हितानंद, नगरीय प्रशासन व विकास मंत्री भूपेंद्र सिंह ने मोर्चा संभाल लिया है, तो वहीं दलित मतदाताओं को भाजपा के पाले में लाने के लिए केंद्रीय मंत्री थावरचन्द गेहलोत तथा पार्टी के अनुसूचित जाति मोर्चे के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालसिंह आर्य तथा आदिवासी मतदाताओं को लामबन्द करने के लिए राज्यमंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते भी मोर्चा संभाले हुए हैं। कांग्रेस की ओर से मैदान में पूरे प्रदेश में कमलनाथ ही कमान संभाल रहे हैं। पूर्व मंत्री सज्जन सिंह वर्मा, डॉ. गोविन्द सिंह, जीतू पटवारी, जयवर्द्धन सिंह, बाला बच्चन, कमलेश्वर पटेल सहित जिनको जिस क्षेत्र में दायित्व सौंपे गये हैं वे वहां सक्रिय हैं, लेकिन चारों तरफ अभी केवल कमलनाथ ही नजर आ रहे हैं। प्रदेश के किसी अन्य बड़े नेता के चुनाव प्रचार में नजर ना आने पर भाजपा चुनाव प्रबंधन समिति के प्रदेश संयोजक व मंत्री भूपेंद्र सिंह ने तंज किया कि चुनाव नजदीक हैं, लेकिन कांग्रेस में अर्न्तकलह जोरों पर है, पार्टी के बड़े नेता गायब है दूसरी तरफ भाजपा कार्यकर्ता जोश से भरे हुए हैं, जिससे हमारी जीत पक्की है। जब चुनाव प्रचार अभियान जोर पकड़ेगा तब कांग्रेस के अन्य स्टार प्रचारक नजर आयेंगे और भाजपा के भी अन्य बड़े नेता प्रदेश में प्रचार अभियान में भिड़ेंगे। उपचुनाव वाले 28 क्षेत्रों में एक साथ “शिव-ज्योति“ एक्सप्रेस यानी ;शिवराज और ज्योतिरादित्य की जोड़ीद्ध धूम मचायेगी, तो वहीं अभी यह स्पष्ट नहीं हुआ कि कमलनाथ ऐसी कोई जोड़ी बनायेंगे या अकेले ही धूम मचाते नजर आयेंगे। चूंकि नेता प्रतिपक्ष और प्रदेश अध्यक्ष दोनों वही हैं इसलिए उनके साथ कौन दूसरा प्रदेश का या देश का नेता रहेगा यह अभी स्पष्ट नहीं है।
भाजपा की तो यह मजबूरी थी के उसे 25 क्षेत्रों में उन्हें ही टिकट देना था जो दलबदल कर कांग्रेस से आये थे, लेकिन कांग्रेस ने लोकतंत्र की रक्षा और बिकाऊ और दलबदलुओं को सबक सिखाने के साथ अपनी चुनावी रणनीति का आगाज किया था फिर भी उसने भाजपा से आये 6 नेताओं, बसपा से आये 2 नेताओं तथा बहुजन संघर्ष दल से आये एक नेता को प्रत्याशी बना दिया। इससे नाराज होकर उसके अपने दलित नेता और पूर्व गृहमंत्री महेन्द्र बौद्ध बसपा के चुनाव चिन्ह पर चुनाव मैदान में उतरेंगे। कांग्रेस का तर्क है कि उसकी पार्टी में जो लोग आये हैं वे टिकाऊ हैं बिकाऊ नहीं। कुछ लोगों की तो वह परिवार में वापसी मान रही है, क्योंकि वे पहले कांग्रेस में ही थे फिर दूसरे दलों में चले गये थे। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के मीडिया समन्वयक नरेन्द्र सलूजा का कहना है कि न हम केन्द्र में और न राज्य में सत्ता में हैं, इसलिए हमारे पास जो आया है वह पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के 15 माह के शासनकाल से प्रभावित होकर आया है और इनमें से किसी ने भी चलती हुई सरकार को अपने निजी स्वार्थों के कारण नहीं गिराया है। जिन लोगों ने स्वार्थवश सौदेबाजी से सरकार गिराई वे ही असली बिकाऊ हैं, ऐसे लोगों को जनता सबक सिखायेगी। उनका कहना है कि चुनाव के पूर्व एक-दूसरे दल में लोगों का जाना-आना लगा रहता है लेकिन वह सत्ता की खातिर नहीं बल्कि पार्टी के सिद्धान्तों में निष्ठा के कारण होता है।
उपचुनाव वाले क्षेत्रों में भाजपा और कांग्रेस की मैदानी पकड़
जिन 28 विधानसभा क्षेत्रों में चुनाव हो रहे हैं वहां 1980 से लेकर 2018 तक नौ आमचुनाव हुए हैं जिसमें विभिन्न दलों की जीत-हार का सिलसिला कुछ इस प्रकार रहा है। डबरा में भाजपा और कांग्रेस चार-चार बार जीत दर्ज कराई है जबकि एक बार निर्दलीय उम्मीदवार जीता है। इसी प्रकार भांडेर में चार बार भाजपा, चार बार कांग्रेस तो एक बार निर्दलीय उम्मीदवार सफल रहा है जबकि मेहगांव में भाजपा दो बार कांग्रेस चार बार और अन्य एक बार तथा निर्दलीय दो बार विजयी हुए हैं। जहां मेहगांव में कांग्रेस मजबूत स्थिति में है तो वहीं गोहद में उसकी पकड़ भाजपा के मुकाबले काफी कम रही है। भाजपा ने पांच, कांग्रेस ने एक और अन्य ने एक बार सफलता हासिल की तथा ग्वालियर में भी ऐसा ही रहा है। ग्वालियर में पांच बार भाजपा, तीन बार कांग्रेस और एक बार अन्य पार्टी ने बाजी मारी है। ग्वालियर-पूर्व 2008 से अस्तित्व में आया है और वहां तीन चुनाव हुए हैं जिसमें से भाजपा ने दो बार और कांग्रेस ने एक बार सफलता पाई है। मुरैना में भाजपा पांच बार, कांग्रेस एक बार और एक बार अन्य दल का उम्मीदवार, दिमनी में छ: बार भाजपा, दो बार कांग्रेस और एक बार अन्य, करेरा में तीन बार भाजपा, पांच बार कांग्रेस और एक बार अन्य ने जीत दर्ज कराई तो सुमावली में मुकाबला बराबरी का रहा है, तीन बार भाजपा, तीन बार कांग्रेस व एक बार अन्य ने बाजी मारी है। मुंगावली में तीन बार भाजपा, छ: बार कांग्रेस, अम्बाह में चार बार भाजपा, तीन बार कांग्रेस दो बार अन्य, बमौरी में एक बार भाजपा दो बार कांग्रेस, अशोकनगर में पांच बार भाजपा, तीन बार कांग्रेस और एक बार अन्य, जौरा में चार बार भाजपा, चार बार अन्य और एक बार कांग्रेस, बदनावर में चार बार भाजपा और पांच बार कांग्रेस, हाटपिपल्या में पांच बार भाजपा और चार बार कांग्रेस, सांवेर में पांच बार भाजपा और चार बार कांग्रेस, सुवासरा में पांच बार भाजपा और चार बार कांग्रेस, मांधाता में दो बार भाजपा एक बार कांग्रेस, नेपानगर में चार बार भाजपा, पांच बार कांग्रेस, सुरखी में तीन बार भाजपा, पांच बार कांग्रेस एक बार निर्दलीय, बड़ा मलहरा पांच बार भाजपा, तीन बार कांग्रेस एक बार अन्य जीता है। अनूपपुर तीन बार भाजपा और छ: बार कांग्रेस, सांची में छ: बार भाजपा तीन बार कांग्रेस, ब्यावरा में चार बार भाजपा और चार बार कांग्रेस एक बार निर्दलीय तथा आगर सात बार भाजपा और दो बार कांग्रेस ने जीत दर्ज कराई है। अन्य में जो उम्मीदवार जीते हैं उनमें अधिकांश बसपा के हैं और इक्का-दुक्का अन्य पार्टियों जिनमें सपा व उमा भारती की भारतीय जनशक्ति पार्टी शामिल है, के हैं।
और यह भी…
भाजपा नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने जबसे कमलनाथ सरकार गिराई है तबसे वह कांग्रेस के छोटे-बड़े हर नेता के निशाने पर हैं, लेकिन गद्दार और भू-माफिया जैसे आरोपों पर पहली बार उन्होंने ना केवल अपनी सफाई दी बल्कि उल्टे कांग्रेस को लपेटे में ले लिया। तीखे व तल्ख लहजे में सिंधिया ने कहा कि मेरी सम्पत्ति 300 वर्ष पुरानी है, लेकिन सवाल उनसे है जो नये-नये महाराजा बने हैं। मैं परिवार विशेष में पैदा हुआ यदि यह मेरी गलती है, तो मैं इसे स्वीकार करता हूं। सिंधिया ने यह भी कहा कि पहले जो सरकार थी उसने ग्वालियर-चम्बल संभाग के लोगों से विश्वासघात किया, ऐसे विश्वासघातियों को ग्वालियर-चम्बल कभी माफ नहीं करता। कल का दिन सिंधिया परिवार पर ही केंद्रित रहा, ग्वालियर में के.के. मिश्रा व मुरारीलाल दुबे ने जमीन हड़पने को लेकर निशाना साधा तो भोपाल में पूर्व मंत्री सज्जन सिंह वर्मा जीतू पटवारी तथा मीडिया विभाग के उपाध्यक्ष भूपेंद्र गुप्ता एवं कांग्रेस अध्यक्ष के मीडिया समन्वयक नरेंद्र सलूजा ने सिंधिया पर गद्दारी के आरोप लगाते हुए सम्पत्तियों की जांच की मांग की। जीतू पटवारी ने कहा कि सिंधिया विशेष परिवार में पैदा हुए हैं इसलिए किसानों का दर्द नहीं समझ पाये और कमलनाथ सरकार को अलोकतांत्रिक तरीके से गिरा दिया।