महिला पत्रकारों ने महामारी के दौरान रिपोर्टिंग के अनुभवों को साझा किया

भोपाल (रूबी सरकार)/ स्कूल ऑफ जर्नलिज्म एंड मास कम्युनिकेशन, देवी अहिल्या विश्वविद्यालय और यूनिसेफ के तत्वावधान में आयोजित मीडिया और कोविड-19 के विषय पर महिला पत्रकारों ने कोरोनवायरस की रिपोर्टिंग के बारे में अपने अनुभव साझा किए और महामारी के दौरान भेदभाव, कलंक और चुनौतियांे के महत्वपूर्ण मुद्दों पर बात की।
सर्वप्रथम शिक्षा विशेषज्ञ, यूनिसेफ, एफए जामी ने अपनी बात साझा करते हुए कहा, कि ‘कोविद 19 के दौरान स्कूल बंद करना आसान नहीं था। हालांकि सरकार द्वारा घर पर ऑनलाइन क्लास की व्यवस्था के प्रयास किये गये, जिससे महामारी के दौरान बच्चे घर पर सुरक्षित रहकर पढ़ाई जारी रख सके, लेकिन मोबाइल या अन्य गैजेट्स का अभाव अधिकांश परिवारों के लिए यह एक चुनौती बनकर सामने आयी। बच्चों का विशेष रूप से बाहर न जा पाने से दोस्तों से मिलना और खेलना बंद है, जिसका बच्चों पर असर होना अभिभावकों के लिए चिंता की वजह है।
विशिष्ट अतिथि के रूप में हिंदुस्तान टाइम्स की स्वास्थ्य और विज्ञान संपादक संचित शर्मा ने वेबनार में अपनी टीम द्वारा पूरे भारत में किये कहानियों को साझा करते हुए बताया, कि डॉक्टरों और नर्सों के अलावा, स्वास्थ्य सेवा के कर्मचारियों की कहानियों में मोर्चरी कर्मियों और अस्पताल के गार्डों पर रिपोर्टरों ने स्टोरी फाइल की, क्योंकि वे किस तरह से इस महामारी में अपना कर्तव्य निभा रहे हैं, वह समाज के सामने आना जरूरी था। उन्होंने इन सभी को कोरोना योद्धा की संज्ञा दी। सुश्री संचिता ने कहा, कि हम में से प्रत्येक को अपनी सुरक्षा करनी चाहिए अैर वायरस के प्रसार को रोकने में योगदान देना चाहिए।
द वीक की विशेष संवाददाता श्रावणी सरकार, ने रिपोर्टिंग के बारे में बताया कि कैसे नागरिक समाज, छात्रों और आम लोगों सहित विभिन्न वर्गोंं ने महामारी के दौरान मौके पर पहुंचकर मदद की और मानवता का उत्कृष्ट परिचय दिया। एक रिपोर्ट साझा करते हुए सुश्री सरकार ने बताया, कि महामारी में घर की ओर भागते लोगों में दो दोस्त, जो अलग-अलग धर्मों के होते हुए भी मरते दम तक एक साथ रहे और एक के गुजरने के बाद उसे उसके घर तक पहुंचाया।
जुबिली पोस्ट की प्रिन्सपल कॉरसपन्डेंट रूबी सरकार ने रिपोर्टिंग के दौरान चुनौतियों पर चर्चा करते हुए बताया, कि इस महामारी में सुदूर गांवों में पहुंचकर मजदूरों से बातचीत करना आसान नहीं था। लेकिन आवश्यक सावधानी बरतते हुए उन्होंने यह जोखिम उठाया और छतरपुर, टीकमगढ़ और श्योपुर के कुछ गांव का दौरा कर ऐसी कहानियां खोज निकाली , जो दिल को छू लेने वाली थी। गांवों के अभावग्रस्त आदिवासी और अनुसूचित जाति के लोग किस तरह प्रवासी मजदूरों की मदद कर रहे थे। महिलाएं सामाजिक जिम्मेदारी समझकर कोरोन्टाइन किये गये लोगों के लिए अपने खेत से सब्जी ले जाकर उनके लिए भोजन पकाती थी। महामारी के दौरान पेयजल की कमी को पूरा करने के लिए लोगों ने गांव -गांव में नये तालाबों का निर्माण कर डाला, जिसमें आज वर्षा का पानी लबालब है। संक्रमण से बचने के लिए गांवों के हैण्डपम्पों पर भेदभाव पर अपनी रिपोर्ट साझा करते हुए रूबी ने बताया, कि भेदभाव का कारण सिर्फ डर था, क्योंकि इस वायरस को लेकर प्रारंभ में इतना डरा दिया गया था, कि लोग भयभीत होने लगे थे।
हिंदुस्तान टाइम्स, भोपाल की श्रुति तोमर ने झारखंड के उस जोड़े का उल्लेख किया, जहां पति ने सैकड़ों किलोमीटर तक दुपहिया वाहन इसलिए चलाया, ताकि उनकी गर्भवती पत्नी प्रवेश परीक्षा दे सके। जब यह कहानी वायरल हुई, तो दंपति को न केवल सुरक्षित रूप से लौटने में मदद मिली, बल्कि उनके भविष्य के लिए आजीविका का स्रोत और महिला की पढ़ाई का इंतजाम भी लोगों ने कर डाले।
वेबनार में सिटी भास्कर, ग्वालियर की वरिष्ठ संवाददाता रूपाली ठाकुर, फ्री प्रेस की संवाददाता स्मिता ने भी कई कहानियां साझा की ।
डीएवीवी इंदौर की पत्रकारिता और जनसंचार विभाग के प्रमुख, डॉ सोनाली नरगंडे ने वक्ताओं को धन्यवाद दिया और कहा कि यह एक उपयोगी इंटरैक्टिव सत्र था, जो मीडिया के विद्यार्थियों के लिए बहुत उपयोगी है।
यूनिसेफ संचार विशेषज्ञ, अनिल गुलाटी ने बैठक का समन्वय किया और कहा कि यह यूनिसेफ द्वारा स्कूल ऑफ जर्नलिज्म एंड मास कम्युनिकेशन, डीएवीवी इंदौर के साथ मिलकर कोविड- 19 की कहानियों को लाने का प्रयास था। उन्होंने बच्चों की शिक्षा, टीकाकरण जैसे अन्य मुद्दों पर ज्यादा से ज्यादा लिखने के लिए मीडिया से समर्थन की मांगा। डॉ वंदना भाटिया, स्वास्थ्य विशेषज्ञ, यूनिसेफ, एमपी ने कोविड-19 और नए मुद्दों पर प्रतिभागियों के तकनीकी सवालों का जवाब दिया।
इस वेबनार में पूरे राज्य से लगभग 100 प्रतिभागी शामिल हुए, जिनमें पत्रकार और पत्रकारिता के विद्यार्थी शामिल थे।

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