शिवराज और कमलनाथ के इर्द-गिर्द ही केंद्रित रहेंगे उपचुनाव

 

– अरुण पटेल
अब स्थिति साफ होती जा रही है कि मध्यप्रदेश विधानसभा के 27 उपचुनाव बिहार विधानसभा चुनाव के आसपास ही होंगे और यह संभावना है कि अक्टूबर माह में ये उपचुनाव हो जायें। निश्‍चित तिथियां चुनाव आयोग किसी भी दिन घोषित कर सकता है, ये तिथियां इस बात पर निर्भर करेंगी कि बिहार विधानसभा चुनाव कब होते हैं, लेकिन एक संकेत साफ है कि कोरोना काल में उपचुनाव होंगे और कैसे होंगे इस बारे में निर्वाचन आयोग ने विस्तृत दिशानिर्देश जारी कर दिए हैं। जहां तक प्रदेश में उपचुनावों का सवाल है उनकी संख्या 27 तो निश्‍चित है, लेकिन यदि भाजपा कुछ और विधायकों को अपने पाले में लाने का अभियान जारी रखती है तो यह संख्या और बढ़ सकती है। उपचुनाव मुख्य रुप से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और पूर्व मुख्यमंत्री तथा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ के चेहरे के इर्द-गिर्द होंगे, जबकि असली प्रतिष्ठा ज्योतिरादित्य सिंधिया की दांव पर लगी होगी, क्योंकि अधिकांश विधायकों ने उनके भरोसे ही अपनी विधायकी छोड़ी है इसलिए उन्हें फिर से विधायक बनवाना उनके लिए नाक का सवाल होगा। सर्वाधिक 16 उपचुनाव ग्वालियर-चम्बल संभाग में होना है और शिवराज मुख्यमंत्री बने रहेंगे या नहीं इसका रास्ता इन अंचलों से होकर गुजरेगा। कमलनाथ फिर से मुख्यमंत्री बन पायेंगे या नहीं, यह भी उपचुनाव के नतीजों से जुड़ा हुआ है। इसलिए भले ही प्रतिष्ठा सिंधिया की दांव पर लगी हो लेकिन नफा-नुकसान शिवराज या कमलनाथ का होना है।

शिवराज को यदि मुख्यमंत्री बने रहना है तो उन्हें अपनी सरकार बचाये रखने के लिए दस क्षेत्रों में जीत दर्ज कराना ही काफी होगा, जबकि कमलनाथ को यदि फिर से मुख्यमंत्री बनना है तो कांग्रेस को दो दर्जन के करीब सीटें जीतना होंगी। 27 में से एक सीट भाजपा विधायक के निधन के कारण खाली हुई है जबकि बाकी सभी सीटों पर 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस जीती थी। इस दृष्टि से कांग्रेस को ए़ड़ी-चोटी का जोर लगाना होगा। कांग्रेस को ये उपचुनाव करो या मरो की स्थिति में लड़ने होंगे, क्योंकि यदि वह सरकार बनाने मे सफल नहीं रही या अधिक सीटें नहीं जीत पाई तो फिर उसके लिए आगे की राजनीतिक राह मुश्किलों से भरी होगी। यदि यह कहा जाए कि सत्ता की चाबी ग्वालियर-चम्बल के हाथ में है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। खासकर कांग्रेस को पुन: सत्ता में आने के लिए चम्बल की चुनौती का सामना करना ही होगा। बहुजन समाज पार्टी की कोशिश है कि इस सत्ता की चाबी उसके हाथ में आ जाए, हालांकि इसकी संभावना बहुत कम है, संभावना इस बात की है कि वह उपचुनाव में भाजपा या कांग्रेस में से किसी एक का खेल बिगाड़ सकती है तो समाजवादी पार्टी भी ऐसी ही भूमिका में आने के लिए बेताब हो रही है और वह भी चुनाव मैदान में उतरने का मन बना रही है। भाजपा भी यह समझ चुकी है इसलिए उसने अपने चुनाव प्रचार अभियान का आगाज इसी इलाके से कर दिया है। तीन दिन तक मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, केंद्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सांसद वी.डी. शर्मा, सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया और भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रभात झा सदस्यता अभियान के बहाने सीधे जनता से यहां संवाद करेंगे। इसके साथ ही हरक्षेत्र में भाजपा कार्यकर्ताओं व स्थानीय नेताओं से चर्चा कर उपचुनाव की रणनीति बनायेंगे। भाजपा का दावा है कि इन तीन दिनों में दस हजार कांग्रेस कार्यकर्ता उसकी सदस्यता लेंगे और इस प्रकार वह कांग्रेस पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने की कोशिश करेगी।
भाजपा के इस तीन दिवसीय अभियान को लेकर अभी से कांग्रेस ने सवाल उठाना आरंभ कर दिए हैं ताकि वह यह कह सके कि सदस्यता अभियान में बड़ा फर्जीवाड़ा होगा। वरिष्ठ कांग्रेस नेता डॉ. गोविन्द सिंह कह रहे हैं कि इस अंचल में कांग्रेस के 10 हजार सक्रिय कार्यकर्ता ही नहीं हैं फिर इतने लोग भाजपा में कैसे शामिल होंगे। प्रदेश कांग्रेस मीडिया विभाग के उपाध्यक्ष भूपेन्द्र गुप्ता का कहना है कि सिंधिया पहली बार कांग्रेस छोड़ने के बाद इस अंचल में आ रहे हैं और उनकी प्रतिष्ठा दांव पर है, चूंकि उनके साथ ज्यादा लोग भाजपा में नहीं जा रहे हैं इसलिए भाजपा के लोगों को इकट्ठा कर भीड़ दिखायेंगे और उन्हें कांग्रेसी कहकर सदस्य बनायेंगे।
उनका सवाल है कि यदि दस हजार कांग्रेस कार्यकर्ता सिंधिया के कारण भाजपा की सदस्यता ले रहे हैं और इतने नेता व कार्यकर्ता साथ हैं तो फिर सिंधिया लोकसभा चुनाव कैसे हार गये। उन्होंने कहा कि जितना दावा भाजपा कर रही है उतने लोगों के जमावड़े में यदि वे जाते हैं और कोई संक्रमित हो जाता है तो फिर सिंधिया पर इसका मुकदमा चलाया जाना चाहिये। उन्होंने कहा कि भाजपा के द्वारा ग्वालियर-चंबल अंचल में होने जा रहे सदस्यता अभियान के कारण यदि कोरोना संक्रमण फैलता है तो इसका जिम्मेदार कौन होगा। रविवार के दिन पूरे प्रदेश में पूर्ण लॉकडाउन रहता है इसके बावजूद उस दिन कार्यक्रम की अनुमति कैसे दी गयी। कांग्रेस भले ही कुछ भी दावा करे लेकिन इस बात का पता 24 अगस्त की शाम तक लग जायेगा कि कांग्रेस के कितने बड़े व सक्रिय नेताओं ने भाजपा की सदस्यता ग्रहण की।
बदला-बदला होगा उपचुनाव का नजारा
निर्वाचन आयोग ने कोरोना काल में गाइड लाइन तय कर दी है जिससे चुनावी समर के माहौल और तौर-तरीके बदलाव लिए हुए होंगे। चुनाव ईवीएम से ही होंगे और उसका बटन दबाने तथा हस्ताक्षर करने के लिए मतदाताओं को दस्ताने मिलेंगे। उम्मीदवार अपने नामांकन पत्र आनलाइन भर सकेंगे और बाद में उसका प्रिंट निर्वाचन अधिकारी को सौपना होगा। घर-घर प्रचार करने के लिए प्रत्याशी सहित पांच समर्थक ही साथ जा सकते हैं। कोविड संक्रमित और क्वारेंटाइन वाले मतदाता मतदान के अंतिम घंटे में वोट डालेंगे। पहचान के लिए अपने मास्क को नीचे करना होगा। दिव्यांग, 80 साल से अधिक बुजुर्ग, संदिग्ध व क्वारेंटाइन मतदाता डाक मतपत्र से वोट कर सकेंगे। उम्मीदवार हलफनामा और जमानत राशि आनलाइन जमा करेंगे जिसका प्रिंट रिटर्निग आफीसर के पास जमा कराना होगा। नामांकन के लिए प्रत्याशी दो लोगों और दो वाहनों के साथ जा सकेंगे। जनसभा और रोड-शो की अनुमति तभी मिलेगी जब गृह मंत्रालय व राज्य सरकारों के निर्देशों का पालन किया जायेगा। रोड-शो के काफिले में हर पांच वाहनों के बाद गैप रखना होगा जिनमें सुरक्षा वाहन भी शामिल हैं। जिला चुनाव अधिकारी रैली के लिए मैदान चिन्हित करेंगे और आने-जाने के अलग रास्ते होंगे। सोशल डिस्टेंसिंग के मार्ग बनाने होंगे तथा तय संख्या से अधिक लोग नहीं जा पायेंगे। एक मतदान केंद्र पर अधिकतम एक हजार लोग मतदान कर सकेंगे जबकि इसके पहले यह संख्या 1500 थी। प्रदेश के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी ने इस सिलसिले में अपनी तैयारियां पूरी कर ली हैं। 27 विधानसभा क्षेत्रों में लगभग 6700 मतदान केंद्र होते थे लेकिन अब इनकी संख्या 2500 से कुछ ज्यादा होगी। अधिकांश कलेक्टरों ने इसके प्रस्ताव भी दे दिए हैं जिनका परीक्षण कर अंतिम निर्णय के लिए चुनाव आयोग को भेजा जा चुका है।
और यह भी
भाजपा की तर्ज पर उपचुनाव में भाजपा को मात देने के लिए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ बूथ मैनेजमेंट मजबूत करने पर विशेष ध्यान दे रहे हैं जिसकी मानीटरिंग वे खुद कर रहे हैं। इसके लिए जिस प्रकार भाजपा पहले पन्ना प्रभारी बनाती थी वैसे अब कांग्रेस भी पन्ना प्रभारी बना रही है। इसके माध्यम से पार्टी अपने बूथ मैनेजमेंट को मजबूत करने पर ध्यान दे रही है। कांग्रेस ने एक मतदान केंद्र पर 25 पन्ना प्रभारी नियुक्त करने की प्रक्रिया चालू कर दी है। देखने वाली बात यही होगी कि इस फार्मूले के जरिए क्या कांग्रेस की सत्ता में वापसी हो पायेगी। प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष पूर्व मंत्री जीतू पटवारी का कहना है कि इस तरह हर विधानसभा सीट पर तकरीबन 6500 से लेकर 7000 तक पन्ना प्रभारी होंगे। इस प्रकार से मतदाताओं से संपर्क करने के लिए करीब पौने दो लाख कार्यकर्ता कांग्रेस मैदान में उतारने की रणनीति बना रही है, देखने वाली बात यही होगी कि अपने इस लक्ष्य में वह कहां तक सफल होती है।

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