देश में अब जाति आधारित जनगणना होगी। इसके लिए केंद्र सरकार ने सोमवार को अधिसूचना जारी कर दी है। ऐसे में आम जनता के मन में यह सवाल उमड़-घुमड़ रहा है कि क्या लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी का नारा ‘जिसकी जितनी हिस्सेदारी, उसकी उतनी भागीदारी’ फलीभूत होने वाला है। यदि ऐसा हुआ तो यह ऐतिहासिक होगा। केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा जारी अधिसूचना के मुताबिक जनगणना की प्रक्रिया दो चरणों में पूरी होगी। पहले चरण 1 अक्टूबर 2026 से शुरू होगा। जिसमें जम्मू कश्मीर, लद्दाख, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड शामिल होंगे। जबकि दूसरा चरण 1 मार्च 2027 से शुरू होगा। यह जनगणना देश की 16वीं और आजादी के बाद की 8वीं जनगणना है। यह जनगणना कई मायनों में खास होगी। यह देश की पहली डिजिटल जनगणना होगी। केंद्र सरकार नागरिकों को सेल्फ एन्यूमरेशन यानी आत्मा-सूचना देने का अवसर देने जा रही है। वहीं, मोबाइल एप्लीकेशन का उपयोग करके डिजिटल माध्यम से प्रक्रिया पूरी की जाएगी। इसके अलावा डाटा संग्रहण और भंडारण के समय डेटा सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कड़े सुरक्षा उपाय लागू किए जाएंगे। पिछली बार 2011 में हुई जनगणना में 29 सवाल पूछे गए थे। इस बार जाति का कॉलम जोड़ने के बाद 30 सवाल पूछे जा सकते हैं। निश्चित रूप से सरकार का यह निर्णय सराहनीय है। भले ही यह मजबूरी में लिया गया हो। चूंकि भाजपा की नेतृत्व वाली सरकार कभी जातिगत जनगणना के पक्ष में नहीं रही है। हमेशा से वह जाति की राजनीति के खिलाफ रही है। उनके नेता यदा-कदा यही कहते रहे हैं कि विपक्ष जाति आधारित राजनीति कर समाज को बांटने में तुला हुआ है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तो कहा था कि उनकी नजर में सिर्फ चार जातियां महिला, युवा, किसान और गरीब हैं। फिर अचानक जातिगत जनगणना की घोषणा की गई। आखिर ऐसा क्या हो गया कि भाजपा सरकार को झुकना पड़ा। हालांकि भाजपा इसे ऐतिहासिक कदम बता रही है। उसने विपक्ष का मजाक उड़ाया और कहा कि विपक्ष पिछड़े वर्गों का चैंपियन होने का दावा करता है, लेकिन असल में एनडीए सरकार ही जमीनी स्तर पर बदलाव ला रही है। जबकि कांग्रेस का दावा है कि मोदी सरकार को सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण के उनके विचार को शामिल करने के लिए मजबूर होना पड़ा। कांग्रेस के महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि कांग्रेस की लगातार मांग और दबाव के चलते प्रधानमंत्री को जातिगत गणना के साथ जनगणना कराने के मसले पर झुकना पड़ा। उन्होंने कहा कि जनगणना में केवल जातियों की गिनती नहीं बल्कि जातिवार सामाजिक और आर्थिक स्थिति से जुड़ी विस्तृत जानकारी भी जुटाई जानी चाहिए। तो क्या सच में प्रधानमंत्री को कांग्रेस के दबाव में जातिगत जनगणना करानी पड़ रही है या कुछ और है। दरअसल इसके पीछे चुनावी राजनीति से भी इंकार नहीं किया जा सकता। बिहार और उत्तर प्रदेश में विधानसभा के चुनाव होने हैं। वहां जातिगत जनगणना का मुद्दा भाजपा पर भारी पड़ सकता था, लिहाजा इसी बहाने वह विपक्ष से एक बड़ा मुद्दा छीनने में सफल रही है। हालांकि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने दो बातें कही थी। उन्होंने जातिगत जनगणना के साथ आरक्षण की सीमा को 50 प्रतिशत से अधिक करने की मांग की थी। उन्होंने वादा किया था कि उनकी सरकार बनने पर वे इसे पूरा करेंगे। राहुल गांधी की इन दो मांगों में से एक मांग नरेंद्र मोदी सरकार ने पूरी कर दी है। अब दूसरे की बारी है। वैसे राहुल गांधी का यह नारा ‘जिसकी जितनी हिस्सेदारी, उसकी उतनी भागीदारी’ बेहद लुभावना और सच के करीब है। इससे इंकार नहीं किया जा सकता। जातिगत जनगणना वंचित समूहों की पहचान करने और उन्हें नीति निर्माण की मुख्य धारा में लाने में मदद कर सकती है। विभिन्न जाति समूहों के वितरण को समझकर सामाजिक असमानता को दूर करने और हाशिए पर रह रहे लोगों के लिए लक्षित नीतियों को लागू किया जा सकता है। बहरहाल, अब जब केंद्र की मोदी सरकार ने जातिगत जनगणना की घोषणा कर दी है तो अब राजनीति किस करवट बैठेगी, इसका सभी को इंतजार है। खासकर बिहार और उत्तर प्रदेश के चुनाव नतीजे से पता चल पाएगा कि जनता इससे एतबार रखती है या नहीं।
‘जिसकी जितनी हिस्सेदारी, उसकी उतनी भागीदारी’ का नारा फलीभूत होगा?
