आपकी बात: जन सरोकार से जुड़े मुद्दे हाशिए पर

0 संजीव वर्मा 
देश में लोकसभा चुनाव के पहले चरण की वोटिंग को दो दिन शेष है। प्रचार अभियान चरम पर है, लेकिन जन सरोकारों से जुड़े मुद्दे पूरी तरह से हाशिए पर नजर आ रहे हैं। माहौल में व्याप्त नीरसता कई संकेत भी दे रही है। देश की दो प्रमुख राजनीतिक पार्टियां भाजपा और कांग्रेस के दावों-प्रतिदावों की गूंज प्रचार अभियान में सुनाई तो दे रही है, लेकिन लोगों के बीच उनकी बातों का कितना असर हो रहा है या होगा यह कहना मुश्किल है? क्योंकि मतदाताओं ने  मौन  साध रखा है और उनकी यही चुप्पी अंदर ही दोनों राजनीतिक दलों की पेशानी पर बल डाल रही है। हालांकि उनके चुनावी घोषणा-पत्र भी जारी हो गए हैं। कांग्रेस ने इसे न्याय पत्र का नाम दिया है। पांच न्याय और 25 गारंटी वाले यह घोषणा-पत्र काम, धन और कल्याण इन तीनों शब्दों पर आधारित है। काम का तात्पर्य नौकरी देने से हैं। वहीं, पांच न्याय में हिस्सेदारी, किसान, नारी, श्रमिक और युवा न्याय की बातें कही गई है। दूसरी ओर, भाजपा ने अपने घोषणा पत्र को संकल्प-पत्र का नाम दिया है। साथ ही इसे मोदी की गारंटी वाला पत्र भी कहा जा रहा है। यह ‘संकल्प-पत्र’ विकसित भारत के 4 मजबूत स्तंभों युवा, महिला, गरीब और किसान पर केंद्रित है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा है कि संकल्प-पत्र के हर बिन्दुओं को पूरा किया जाएगा। उन्होंने कहा कि ये मोदी की गारंटी है। मुफ्त राशन योजना अगले 5 साल तक जारी रहेगी। उन्होंने यह भी कहा कि हम करोड़ों परिवारों का बिजली बिल जीरो करने और बिजली से कमाई के अवसर पैदा करने की दिशा में काम करेंगे। संकल्प-पत्र में वन नेशन-वन इलेक्शन, महिला आरक्षण, रोजगार की गारंटी और 3 करोड़ लखपति दीदी बनाने का भी लक्ष्य रखा गया है। बहरहाल, दोनों दलों के घोषणा-पत्र की तुलना करें तो लगता है कि इनके घोषणा-पत्रों में कोई खास अंतर नहीं है। दोनों के केंद्र बिन्दु में महिला, युवा, गरीब, किसान ही हैं। अंतर सिर्फ इतना है कि कांग्रेस  संविधान और लोकतंत्र बचाने की बात कह रही है तो भाजपा राष्ट्रवाद और सनातन का राग अलाप रही है। यानी दोनों तरफ से सिर्फ शब्दों के तीर चल रहे हैं। जमीनी स्तर पर शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल, सुरक्षा, महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दे सिरे से गायब हैं। चुनाव प्रचार के दौरान दोनों दलों के बीच सिर्फ राष्ट्रवाद, सनातन, शक्ति, भ्रष्टाचार, संविधान और लोकतंत्र के मुद्दों पर ही एक-दूसरे से सवाल-जवाब हो रहे हैं। जन सरोकार से जुड़े मुद्दों को लेकर कोई भी दल सामने नहीं आ रहा है। घोषणा-पत्र में तो बड़ी-बड़ी बातें और बड़े-बड़े दावे किए गए हैं, लेकिन प्रचार के दौरान जनता के सामने सिर्फ और सिर्फ वहीं मुद्दे उछाले जा रहे हैं, जिससे भावनाएं उद्वेलित हो। भाजपा जहां राष्ट्रवाद, सनातन, शक्ति और भ्रष्टाचार को लेकर कांग्रेस पर पिल पड़ी है। तो, कांग्रेस सिर्फ संविधान और लोकतंत्र बचाने के मुद्दे को लेकर भाजपा को घेरने पर तुली है। जबकि हकीकत यह है कि आम जनता को इससे कोई लेना-देना नहीं है। दूर-दूर तक उसका इससे कोई वास्ता नहीं है। उनके लिए बुनियादी सुविधाएं स्वास्थ्य, शिक्षा, पेयजल और रोजगार पहली प्राथमिकता होती है, लेकिन राजनीतिक दल या तो इसे समझ के भी नासमझ बनने का नाटक कर रहे हैं, या फिर उनको लग रहा है कि इससे वोटों की फसल नहीं काटी जा सकती। जब तक जाति-धर्म और संप्रदाय का खेला नहीं होगा, तब तक वोटों का ध्रुवीकरण संभव नहीं है। ऐसे में कोई भी दल खुलकर यह नहीं कह रहा है कि बुनियादी सुविधाएं उनकी पहली प्राथमिकता है। वैसे तो चुनाव प्रचार आज हाईटेक हो गया है। सारी लड़ाई डिजिटल हो गई है। सोशल मीडिया इससे अटा पड़ा है। इस मामले में भाजपा सभी दलों से काफी आगे हैं। चुनावी प्रचार-प्रसार, रैली और सभाओं से लेकर डिजिटल प्लेटफार्म पर वह कांग्रेस से बीस है। जबकि कांग्रेस का अभियान न तो जमीनी स्तर पर दिख रहा है और न ही डिजिटल मोड पर। स्थानीय प्रत्याशी अपने-अपने स्तर पर जरूर प्रयास कर रहे हैं। लेकिन पार्टी के स्तर पर उसका अभियान भाजपा से कमतर ही दिख रहा है। खैर, प्रचार-प्रचार पार्टियां अपनी रणनीति के हिसाब से करती हैं। लेकिन जो मुद्दे अभी चुनाव-प्रसार के दौरान देखे जा रहे हैं, वह आमजन के नहीं है। संविधान, लोकतंत्र, सनातन और राष्ट्रवाद जैसे मुद्दे से क्या गरीबी और बेरोजगारी दूर हो जाएगी? क्या देश प्रगति कर पाएगा? ऐसे अनेक सवाल हैं, जो लोगों के दिलो-ए-दिमाग में कौंध रहा है। इस तरह की बातों से जनहित के मुद्दों को दबाने का प्रयास किया जा रहा है। जबकि हकीकत यह है कि आज जल, जंगल, जमीन, रोजगार, बिजली, पानी, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी मूलभूत सुविधाएं पहली जरूरत है।