0 संजीव वर्मा
छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव की तैयारियां जोर-शोर से नजर आने लगी हैं । चुनाव आयोग भी अलर्ट मोड में नजर आ रहा है । भारत निर्वाचन आयोग के निर्देश पर राज्य की मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी रीना बाबा साहेब कंगाले ने प्रदेश के सभी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों के साथ बैठक कर उनसे बूथ पर बीएलओ यानी बूथ लेवल एजेंट नियुक्त करने का आग्रह किया। श्रीमती कंगाले ने बैठक में मतदाता सूची के द्वितीय विशेष संक्षिप्त पुनरीक्षण और ईवीएम/ वीवीपैट मशीनों की जिला स्तर पर एफएलबी यानी फर्स्ट लेवल चेकिंग के निर्धारित कार्यक्रम की जानकारी दी। वहीं, राजनीतिक दल मतदाताओं के बीच अपनी पैठ मजबूत बनाने में लग गए हैं। कांग्रेस ने 2 जून को बस्तर संभाग से जगदलपुर के धर्मपुरा में संभागीय सम्मेलन आयोजित कर चुनावी शंखनाद का उद्घोष कर दिया। इस सम्मेलन में प्रदेश प्रभारी कुमारी सैलजा के अलावा मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और अन्य पदाधिकारी शामिल हुए। इस सम्मेलन में सभी नेताओं ने कार्यकर्ताओं को आगामी चुनाव में जीत के मंत्र दिए। साथ ही तन-मन से चुनाव अभियान में जुड़ जाने को कहा। इसी तरह भाजपा ने भी बस्तर से ही अपना चुनावी बिगुल फूंक दिया है। प्रदेश प्रभारी ओम माथुर तीन दिनों तक क्षेत्र का दौरा कर कार्यकर्ताओं को जीत के मंत्र देते रहे। उनके साथ प्रदेश महामंत्री केदार कश्यप सहित अन्य पदाधिकारी शामिल थे। यानी दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों ने बस्तर से ही अपने चुनावी अभियान की शुरुआत कर दी है। दरअसल यह कहा जाता है कि राज्य की सत्ता की चाबी बस्तर और सरगुजा से होकर निकलती है। फिलहाल बस्तर की सभी 12 सीटों पर कांग्रेस का कब्जा है और वह हर-हाल में इसे खोना नहीं चाहती। वहीं भाजपा हर-हाल में बस्तर की सीटों पर कब्जा जमाना चाहती है। उसकी नजर आदिवासी सीटों पर ही है। दरअसल राज्य में 29 सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं। इनमें से 27 सीटों पर कांग्रेस और 2 पर भाजपा काबिज हैं। इनमें 12 सीटें केवल बस्तर से ही है। ऐसे में सभी दलों की नजर बस्तर में ही टिकी हुई हैं और वे आदिवासियों को रिझाने में लगे हुए हैं। वर्तमान में कांग्रेस का पलड़ा भारी दिख रहा है। गाय, गोबर, गांव और गरीब कांग्रेस के केंद्र बिंदु में हैं। वहीं, भाजपा के पास फिलहाल ऐसा कोई मुद्दा नहीं है जिसके दम पर वह चुनावी समर में उतर सकें। वह हिंदुत्व और मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ना चाहती है। लेकिन राज्य में हिंदुत्व कोई बड़ा मुद्दा नहीं है। अभी हाल ही में भाजपा के प्रदेश प्रभारी ओम माथुर ने चुनाव चिन्ह “कमल” को ही पार्टी का चेहरा बताया था। वैसे भाजपा की राजनीति में हमेशा से ही भगवान राम उसके केंद्र में रहा है। भाजपा “राम” पर अपना स्थाई अधिकार भी समझता है। लेकिन छत्तीसगढ़ में जब से भूपेश सरकार आई है भाजपा से उसका यह मुद्दा भी छीन लिया है। कौशल्या माता के मंदिर के पुनर्निर्माण से लेकर राम वन गमन पथ के प्रमुख स्थानों को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की घोषणा ने भाजपा को बैकफुट पर ढकेल दिया है। कांग्रेस का मानना है कि राम सभी की आस्था का केंद्र है। वहीं, भाजपा कहती है कि राम हमारी आस्था का विषय है। यानी दोनों के अपने-अपने दावे हैं, लेकिन “राम” के मुद्दे पर कांग्रेस ने बाजी मार ली है। अभी हाल ही में सरकार ने रायगढ़ में राष्ट्रीय रामायण महोत्सव का आयोजन किया जिससे पूरा प्रदेश राममय हो गया है। देश-विदेश के कलाकारों ने भगवान राम के जीवन चरित्र की जिस तरह से व्याख्या की वह काबिल-ए-तारीफ थी। रामायण के अरण्यकांड पर आधारित प्रसंग को कलाकारों ने अपने-अपने ढंग से प्रस्तुत किया। कंबोडिया और इंडोनेशिया के अलावा देश के 12 राज्यों की मंडलियों ने इस राष्ट्रीय महोत्सव में शिरकत कर इसे भव्य रूप दे दिया। साथ ही राष्ट्रीय कवि कुमार विश्वास और लोक गायिका मैथिली ठाकुर ने अपने गीतों के माध्यम से विशिष्ट छाप छोड़ी। इस आयोजन के माध्यम से कांग्रेस सरकार ने यह जताने का भरपूर प्रयास किया कि “राम” केवल “उनके” नहीं “हम सबके” हैं और इसमें वह सफल होती भी दिख रही है। यह अलग बात है कि चुनाव में यह कितना प्रभावी होगा? लेकिन यह कहने में कोई संकोच नहीं कि इस आयोजन ने भाजपा को सोचने पर मजबूर कर दिया है। फिलहाल भाजपा की नजर पुराने नेताओं और विशिष्टजनों को पार्टी से जोड़ने पर है। पद्मश्री अनुज शर्मा और डॉ राधेश्याम बारले सहित करीब 500 लोगों को पार्टी में शामिल कर भाजपा ने चौका मारने का दावा किया है। लेकिन यह भी सच है कि कांग्रेस ने उसके पहले आदिवासी नेता नंदकुमार साय को पार्टी में शामिल कर पहले ही छक्का मार चुकी है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि आगे दोनों दल क्या-क्या कदम उठाती है और उसका चुनाव पर कितना असर पड़ेगा?