आपकी बात: राहुल को राहत पर चुनौती बड़ी

0 संजीव वर्मा
कांग्रेस के शीर्ष नेता राहुल गांधी को मोदी सरनेम को लेकर दिए गए भाषण की वजह से मानहानि मामले में फिलहाल तात्कालिक राहत मिल गई है। दो साल की सजा पाए राहुल गांधी ने सोमवार को सूरत की सेशंस कोर्ट में याचिका दायर की और सीजेएम के फैसले को चुनौती दी। सजा मिलने के बाद सांसदी गंवा देने वाले राहुल गांधी की सजा पर रोक के आवेदन पर 13 अप्रैल को विचार होगा । राहुल ओर से दायर की गई याचिका पर अगले महीने की 3 तारीख को सुनवाई होगी। सूरत कोर्ट ने 10 अप्रैल तक सभी पक्षों को जवाब दाखिल करने को कहा है। गौरतलब है कि पिछले महीने की 23 मार्च को सूरत में मुख्य न्यायिक, मजिस्ट्रेट एच एच वर्मा की अदालत ने मोदी उपनाम को लेकर राहुल की ओर से की गई टिप्पणी के संबंध में दायर अपराधिक मानहानि के मुकदमे में उन्हें दो साल के कारावास की सजा सुनाई थी। सजा के बाद राहुल गांधी की लोकसभा की सदस्यता चली गई है। यदि उनकी सजा पर अदालत से रोक नहीं लगती है तो फिर उन्हें लोकसभा की सदस्यता नहीं मिल पाएगी। यही नहीं उनके चुनाव लड़ने पर भी 8 साल तक के लिए रोक जारी रहेगी। ऐसी स्थिति में वह 2031 तक कोई चुनाव लड़ने की स्थिति में नहीं होंगे। अगले ही साल लोकसभा के चुनाव होने हैं। ऐसे में कांग्रेस नहीं चाहेगी कि राहुल गांधी चुनावी समर से दूर रहें। बहरहाल, उम्मीद के मुताबिक राहुल गांधी को फिलहाल ऊपरी अदालत से राहत मिल गई है, लेकिन सजा पर रोक के लिए उन्हें इंतजार करना होगा। यदि सजा पर रोक लग गई तो राहुल की सांसदी की बहाली का रास्ता निकल सकता है। ऐसे में अगली सुनवाई बेहद महत्वपूर्ण है। अब सवाल यह है कि यदि अगली पेशी में कोर्ट से राहत मिल जाती है यानी सजा पर रोक लग जाती है तो क्या राहुल गांधी अपनी सदस्यता बहाल कर लेंगे? यदि ऐसा हुआ तो उससे कांग्रेस या राहुल को क्या फायदा होगा? क्या कांग्रेस इस बात का प्रचार करेगी कि सरकार अदालत में हार गई? यदि ऐसा हुआ तो इससे कांग्रेस को कोई राजनीतिक फायदा नहीं होने वाला। इसके विपरीत यदि राहुल सदस्यता बहाल होने के बाद स्वयं लोकसभा से इस्तीफा दे दें तो वह उनके लिए ज्यादा फायदेमंद हो सकता है। इस्तीफा देकर वे एक बार फिर देश की जनता के बीच जाएं और अपनी बात रखें। कानूनी रूप से सदस्यता बहाल करने की बजाए यदि राहुल गांधी चुनाव लड़कर लोकसभा में जाएंगे तो उनका कद बढ़ेगा। वैसे भी कांग्रेस के पास अब जनता के बीच जाने के अलावा कोई रास्ता नहीं है। हालांकि राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा के जरिए इसकी शुरूआत कर चुके हैं। लेकिन इस अदालती प्रकरण के बाद नए सिरे से फिर शुरूआत करने की जरूरत है। राहुल की भारत जोड़ो यात्रा को सकारात्मक कहा जा सकता है। कई लोगों का यह भी मानना है कि राहुल की यात्रा से उनका कद बढ़ा है। इसी के चलते सत्तापक्ष हैरान-परेशान है और वे उनके निशाने पर आए हैं। इसकी कीमत उन्हें अपनी सांसदी गंवाने के रूप में चुकानी पड़ी है। हालांकि वे विपक्ष की राजनीति करने की कीमत चुकाने वाले अकेले नेता नहीं है। इसकी सूची लंबी है। फर्क सिर्फ इतना है कि राहुल ने सत्ता की शक्ति के आधारों की बेहतर पहचान की है, इसलिए वे एक अलग रणनीति के तहत मोर्चा ले रहे हैं। जबकि अन्य विपक्षी पार्टियां या नेता अभी तक चुनावी गठबंधनों से आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं। राहुल के निशाने पर प्रधानमंत्री हैं और वे सीधे अपनी बात रख रहे हैं। लेकिन इन सबके बीच लोकतंत्र में जनता ही सर्वोपरि है। ऐसे में जनता तक अपनी बात पहुंचाने की बड़ी चुनौती भी है। आज चुनावों में धनबल और प्रचार शक्ति में भाजपा का कोई मुकाबला नहीं है। उसे सिर्फ जनतंत्र की शक्ति से ही चुनावों में मात दी जा सकती है। इसलिए विपक्ष के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपनी बात को जनता के बीच ले जाने और अपने मुद्दे पर मतदाताओं को गोलबंद करने की है और इसका रास्ता जनता के बीच जाकर ही निकल सकता है। राहुल ने भारत जोड़ो यात्रा के जरिए इसकी पहल की है। अब उसे आगे बढ़ाने की जरूरत है।