बिलासपुर/ प्रदेश में आरक्षण का मुद्दा एक बार फिर से हाईकोर्ट में पहुंच गया है। राज्य सरकार की ओर से दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने सोमवार को राज्यपाल सचिवालय को नोटिस जारी कर दो सप्ताह में जवाब मांगा गया है। मामले की सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने तर्क दिया। उन्होंने कहा कि, राज्यपाल को विधेयक रोकने का अधिकार नहीं है। मामले की सुनवाई जस्टिस रजनी दुबे की सिंगल बेंच में हुई है।
याचिका में कहा- अनुच्छेद 200 का उल्लंघन
दरअसल, विधानसभा में आरक्षण विधेयक पारित होने के बाद से ही राज्यपाल ने रोक रखा है। इसे न तो सरकार को लौटाया गया और न ही इस पर राज्यपाल ने अब तक हस्ताक्षर ही किए हैं। इसे लेकर राज्य सरकार अब हाईकोर्ट पहुंच गई है। सरकार की ओर से कहा गया कि राज्यपाल की ओर से इस पर हस्ताक्षर नहीं किया जा रहा है, जो अनुच्छेद 200 का उलंघन है। राज्य सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और महाअधिवक्ता सतीश चंद्र वर्मा ने पैरवी की है।
राज्यपाल अनुमति दें या न दें, या राष्ट्रपति को भेजें
कोर्ट से बाहर आने के बाद अधिवक्ता और पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा कि, बिल दिसंबर में पास हुआ था, अब फरवरी हो गया है। अब तक राज्यपाल ने कोई कदम नहीं उठाया है। संविधान के मुताबिक, इस पर अनुमति दें या न दें या फिर राष्ट्रपति को भेजें। राज्यपाल ने कोई कदम नहीं उठाया, इसलिए हम यहां आए हैं। यह असंवैधानिक है या नहीं, से कोर्ट तय करेगी। इसमें राज्यपाल को देर नहीं करनी चाहिए। यह छत्तीसगढ़ की जनता खासकर आदिवासियों के लिए महत्वपूर्ण कदम है।