आपकी बात: सरकारी तंत्र की खुलती पोल

 

O संजीव वर्मा

गुजरात के मोरबी में हुए दर्दनाक ब्रिज हादसे ने डेढ़ सौ से अधिक लोगों की जान ले ली है। इस हादसे ने एक बार फिर सरकारी तंत्र की पोल खोलकर रख दी है। हालांकि इस घटना के जिम्मेदार 9 लोगों को गिरफ्तार किया गया है, लेकिन यह नाकाफी है। केवल गिरफ्तार कर लेने से और मृतकों के परिजनों को मुआवजा राशि देकर सरकार अपने दायित्वों से मुक्त नहीं हो सकती। यह हादसा ऐसे वक्त पर हुआ जब छठ महापर्व चल रहा था। लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी थी। 140 साल पुराने इस पुल की कई बार मरम्मत हो चुकी है। हाल ही में 2 करोड़ रूपये से रेनोवेशन किया गया था। इसके चलते 6 माह से यह पुल बंद था। 26 अक्टूबर यानी हादसे के 4 दिन पहले ही इसे खोला गया था, लेकिन रेनोवेशन करने वाली कंपनी ने फिटनेस प्रमाण-पत्र नहीं लिया था। ऐसे में कई तरह के सवाल उठ रहे है। लोगों में यह आम चर्चा है कि आखिर मरम्मत के बाद यह पुल इतनी जल्दी कैसे टूट गया ? यह भी कहा जा रहा है कि इस पुल की 100 लोगों का वजन सहन करने की ही क्षमता थी, लेकिन हादसे के वक्त 500 लोग मौजूद थे। आखिर किसने इतने लोगों को इस पुल पर आने की इजाजत दी। इन सब सवालों का जवाब जनता जानना चाहती है। हमारा मानना है कि ऐसी दुर्घटनाओं को रोकने के लिए ठोस उपाय किए जाने की जरूरत है। वैसे यह कोई पहला हादसा नहीं है। इससे पहले 2001 में केरल के कादालुंडी रिवर रेल ब्रिज में हुए हादसे में 57 लोगों की मौत हुई थी। 2002 में बिहार के रफीगंज रेल ब्रिज दुर्घटना में 130 लोगों की जानें गई थी। जबकि 2005 में आंध्रप्रदेश के वेलिगोंडा रेलवे ब्रिज हादसे में 114 लोग असमय काल के ग्रास बन गए थे। बावजदू ऐसे हादसों को रोकने के लिए अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं। यहाँ यह बताना लाजिमी है कि पिछले साल पश्चिम बंगाल में चुनाव के समय भी एक पुल टूटा था। उस समय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का दिया गया भाषण सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है। उस समय मोदी ने कहा था कि यह दुर्घटना ‘गॉड’ की नहीं बल्कि ममता बनर्जी सरकार के ‘फ्रॉड’ की है। अब मोदी का यह जुमला उन पर ही भारी पड़ता नजर आ रहा है। गुजरात में भी सामने चुनाव है। ऐसे में विपक्षी दल प्रधानमंत्री के इन भाषणों का उपयोग या कहें दुरूपयोग जरूर करेंगे। ऐसा शुरू भी हो चुका है। कहने को तो सभी दल इस दुर्घटना को लेकर संवेदना व्यक्त कर रहे हैं। किसी भी तरह की राजनीति से इंकार भी कर रहे हैं। लेकिन इस हादसे में सियासी नफा-नुकसान भी ढूँढ रहे हैं। गुजरात कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष ललित कगथारा का कहना है कि यह घटना भाजपा पर केवल मोरबी ही नहीं, बल्कि पूरे गुजरात पर असर डालेगी। लोगों ने प्रशासन की असफलता को देखा है। मोदी साहेब रक्षा उपकरण बनाने की बात कर रहे हैं और हम एक पुल भी संभालकर नहीं रख पाए। लोगों को एहसास हो गया कि ये लोग (भाजपा) केवल खोखले दावे कर रहे हैं। वहीं, दिल्ली के उपमुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता मनीष सिसोदिया ने कहा कि जांच में जो तथ्य सामने आए हैं उससे साबित हो रहा है कि यह हादसा नहीं हत्या है। इसके पीछे भाजपा का भ्रष्टाचार है। कहने का तात्पर्य यह है कि अब इस हादसे के बाद पूरा विपक्ष भाजपा पर टूट पड़ा है। लेकिन यह देखना होगा कि विपक्ष इसका चुनाव में इस्तेमाल करेगा या नहीं? बहरहाल, इस हादसे के लिए जांच कमेटी भी बनाई गई है। लेकिन बड़ा सवाल यही है कि क्या कमेटी हादसे के जिम्मेदारों की पहचान कर उन्हें सजा दिलवा पाएगी? जब तक प्रशासनिक लापरवाही के कारण होने वाले हादसों के लिए जिम्मेदार लोगों पर कार्रवाई नहीं होगी, तब तक ऐसे हादसों पर अंकुश लगाना मुमकिन नहीं होगा।