आपकी बात: कांग्रेस में नूरा-कुश्ती

O संजीव वर्मा
देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस में सर्वोच्च पद को लेकर नूरा-कुश्ती का खेल शुरू हो गया है। वैसे तो इस पद के लिए सोनिया-राहुल की पसंद अशोक गहलोत की जीत सुनिश्चित मानी जा रही थी। लेकिन राजस्थान संकट के चलते अब अध्यक्ष पद की दौड़ रोचक हो गई है। अशोक गहलोत का मुख्यमंत्री पद का मोह उन पर ही लगता है भारी पड़ गया है। दरअसल गहलोत का हाईकमान की इच्छा के विपरीत जाकर 82 विधायकों के इस्तीफे का दांव चलना गांधी परिवार को खटक गया। ऐसे में वह अध्यक्ष पद पर कोई रिस्क नहीं लेना चाहेगा। अब मल्लिकार्जुन खड़के, मुकुल वासनिक, कमलनाथ, पवन बंसल और दिग्विजय सिंह जैसे नेता इस दौड़ में शामिल हो गए हैं। हालांकि कमलनाथ ने अपने आपको अध्यक्ष की दौड़ से हटा लिया है। राहुल गांधी के करीबी महासचिव केसी वेणुगोपाल भी चुनावी समर में उतर सकते हैं। दरअसल बीते सोमवार को अध्यक्ष पद के लिए नामांकन की शुरूवात होनी थी लेकिन अब तक किसी ने नामांकन नहीं भरा है। वैसे तीस तारीख तक नामांकन भरे जा सकेंगे। जी-23 गुट के शशि थरूर मैदान में उतरने के लिए तैयार बैठे हैं। अब यह देखना होगा कि गांधी परिवार की तरफ से मैदान में किसे लाया जाएगा। जिन्हें भी गांधी परिवार का वरदहस्त मिलेगा, उनकी जीत सुनिश्चित है। लेकिन शशि थरूर भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराने का माद्दा रखते हैं। वैसे अब यह तय हो गया है कि चुनाव निर्विरोध नहीं होगा बल्कि 22 साल बाद एक बार फिर पार्टी अध्यक्ष मतदान के जरिए चुना जाएगा। अब सवाल यह है कि क्या शशि थरूर कोई करिश्मा कर पाएंगे। वैसे 22 साल पहले 1997 में जब अध्यक्ष का चुनाव हुआ था तब तत्कालीन कोषाध्यक्ष सीताराम केसरी को सोनिया गांधी का समर्थन हासिल था। वे गांधी परिवार के करीबी नेता माने जाते थे। उन्हें कांग्रेस के दो दिग्गज नेताओं शरद पवार और राजेश पायलट ने चुनौती दी थी। उस समय 7460 वैध वोट पड़े थे। जिनमें सीताराम केसरी को 6227 वोट मिले। जबकि शरद पवार को 882 और पायलट 354 वोट ही हासिल कर पाए। यानी सीताराम केसरी की एकतरफा जीत हुई थी। यह अलग बात है कि बाद में सीताराम केसरी ने ही सोनिया गांधी को पार्टी से किनारा करने की कोशिश की, लिहाजा उन्हें बेइज्जत होकर अध्यक्ष पद से हटना पड़ा था। अब यदि गांधी परिवार की ओर से उतारे जाने वाले नेता के सामने शशि थरूर होंगे तो उनकी पहली चुनौती सम्मानजनक वोट हासिल करने की होगी। यह देखना भी दिलचस्प होगा कि वे शरद पवार जितना वोट हासिल कर पाते हैं या नहीं। हालांकि कांग्रेस नेताओं की प्रतिक्रियाएं यही संकेत दे रही है कि थरूर को पार्टी में ही समर्थन नहीं मिल रहा है। यहां तक कि उनके अपने गृह राज्य केरल से भी उन्हें समर्थन नहीं मिल पा रहा है। ऐसे में थरूर के लिए यह लड़ाई आसान नहीं है। दरअसल गांधी परिवार एक तीर से कई निशाना साधना चाह रहा है। वह देशवासियों को यह संदेश देना चाहता है कि कांग्रेस किसी परिवार की पार्टी नहीं है और न ही ऐसा है कि बगैर गांधी परिवार के यह पार्टी नहीं चल सकती है। साथ ही भाजपा को, जो पिछले कई सालों से कांग्रेस को वंशवाद और परिवारवाद के नाम पर निशाना बनाते आ रही थी, उसे भी जवाब देना था। इसमें वे सफल होता दिख रहा हैं। यह अलग बात है कि चुनाव के बाद परिस्थितियां क्या बनती है। वैसे यह तय है कि परदे के पीछे पार्टी की कमान गांधी परिवार के हाथों ही रहने वाली है। लेकिन गैर गांधी परिवार से अध्यक्ष बनना भी अपने आप में बड़ी उपलब्धि होगी। वैसे हमारा मानना है कि गैर गांधी अध्यक्ष आने के बाद सत्ता के दो केंद्र होने का संकट भी आ सकता है। जैसे यूपीए सरकार में देखने को मिला था। भले ही अध्यक्ष गांधी परिवार से बाहर का होगा, लेकिन अधिकतर नेताओं की आस्था गांधी परिवार में ही है। उनके लिए नए नेता को  स्वीकार करना मुश्किल होगा और ऐसी स्थिति में वे गांधी परिवार के पीछे ही लग सकते हैं। इससे सत्ता के दो केंद्र बनेंगे और मतभेद भी उभर सकते हैं। यह स्थिति उस कांग्रेस के लिए चिंताजनक होगी, जो अभी मुश्किल दौर से गुजर रही है। ऐसे में नए अध्यक्ष के लिए पूरी पार्टी का विश्वास हासिल करना आसान नहीं होगा। उनके पास पद संभालते ही सबसे पहले कार्यकर्ताओं से संपर्क स्थापित कर उन्हें एकजुट करना होगा। साथ ही 2024 में लोकसभा चुनाव भी होने हैं। ऐसे में खुद को स्थापित करने के साथ ही चुनाव की तैयारी में जुटना बड़ी चुनौती होगी। लगातार दो लोकसभा चुनाव हार चुकी कांग्रेस के लिए यह कड़ी परीक्षा की घड़ी है। देखना होगा कि इसमें नए अध्यक्ष खरे उतर पाते हैं या नहीं।