आपकी बात: भेंट-मुलाकात बनाम आईटी-ईडी

0 संजीव वर्मा
देश में इन दिनों आईटी-ईडी और सीबीआई की जमकर चर्चा है। सभी राज्यों में आईटी-ईडी और सीबीआई की तूती बोल रही है। एक ओर जहां इसे लेकर राजनीति से जुड़े खासकर विपक्षी दलों और उनके नेताओं के बीच खौफ नजर आ रहा है, तो वहीं आम जनता के बीच खुसफुसाहट जारी है। जनता जानना चाहती है कि विपक्षी नेताओं के घरों और ठिकानों पर ही इन एजेंसियों के छापे क्यों? इसका केंद्र की भाजपा सरकार व उससे जुड़े लोगों के पास कोई जवाब नहीं है। या फिर जवाब देना नहीं चाहते। क्या सत्तारूढ़ पार्टी के नेता दूध के धुले हैं? यह सवाल भी लोगों के जेहन में कौंध रहा है। हालांकि इस सच्चाई से कोई इंकार नहीं कर सकता कि ‘भ्रष्टाचार की गंगोत्री में सभी गोते लगा रहे हैं’ तो फिर विपक्ष ही निशाने पर क्यों। यदि आईटी-ईडी और सीबीआई अपना काम ईमानदारी से कर रहे हैं तो उन्हें वहां भी छापेमारी करनी चाहिए, जिनका नाम विपक्ष बता रहा है। पक्ष-विपक्ष दोनों के यहां छापेमारी हो तो किसी को कोई आपत्ति भी नहीं होगी। लेकिन केवल विपक्षी नेताओं को ही डराने-धमकाने के लिए ऐसा किया जा रहा है, जैसा विपक्ष कह रहा है तो यह लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत नहीं है। वैसे, यह काम पिछले कुछ सालों से कुछ ज्यादा ही हो रहा है। दरअसल केंद्र की नरेन्द्र मोदी सरकार के पास विपक्ष के आरोपों का कोई जवाब नहीं है। लिहाजा वह विपक्ष से निपटने के लिए ईडी-आईडी और सीबीआई को अपना सियासी हथियार बनाना चाहती है। उसे लगता है कि इससे विपक्ष घबराकर चुपचाप बैठ जाएगा? अभी तक तो ऐसा हुआ नहीं है। कुछेक नेता भले ही डरकर चुप बैठ गए हों, लेकिन ज्यादातर अब भी मुखर हैं। वैसे देश में आजकल अलग तरह की राजनीति चल रही है। जब भी चुनाव का समय आता है। ईडी-आईटी और सीबीआई कुछ ज्यादा ही फुंफकार मारने लगती है। हालांकि हाल-फिलहाल राष्ट्रपति-उपराष्ट्रपति के अलावा कोई चुनाव नहीं है। लेकिन वर्ष 2024 तक 9 राज्यों और लोकसभा के चुनाव होने हैं। भाजपा इसी के मद्देनजर अभी से ताल ठोंकने लगी है। विपक्ष ईडी-आईटी के छापे को इसी कड़ी से जोड़ रहा है। वैसे छत्तीसगढ़, मप्र और राजस्थान में अगले साल चुनाव होने हैं। ऐसे में राज्य की सरकारें भी अलर्ट हो गई है। छत्तीसगढ़ में तो अभी से राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गई है। पिछले दो महीने से मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भेंट-मुलाकात के बहाने राज्य की सभी 90 विधानसभा सीटों का दौरा कर वहां का सियासी नब्ज टटोल रहे हैं। वहीं, दूसरी तरफ भाजपा भी मुख्यमंत्री को मात देने में जुट गई है। पार्टी के केन्द्रीय नेतृत्व ने भाजपा नेताओं को विधानसभा और संसदीय क्षेत्र के कमजोर बूथ की पहचान कर उसे दुरूस्त करने की हिदायत दी है। हाल ही में भाजपा आलाकमान और  संघ के वरिष्ठ पदाधिकारियों ने दिल्ली में छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ भाजपा नेताओं की बैठक ली थी। बैठक में पिछले चुनाव के कड़वे अनुभवों को देखते हुए राज्य के नेताओं को संगठनात्मक मजबूती के साथ-साथ केंद्र सरकार की योजनाओं को आम लोगों तक पहुंचाने के निर्देश दिए हैं, ताकि राज्य सरकार से मुकाबला किया जा सके। दूसरी ओर, मुख्यमंत्री भूपेश बघेल अकेले कांग्रेस की तरफ से मोर्चा संभाल रखा है। वे लगातार राज्य का दौरा कर रहे हैं। उनकी लोकप्रियता भी लगातार बढ़ रही है। राज्य की कई योजनाएं प्रदेशवासियों के बीच बेहद लोकप्रिय है। कुछ योजनाओं को केंद्र से अवार्ड भी मिल चुका है। ऐसे में भाजपा के पास दोहरी चुनौती है। पहली मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की बढ़ती लोकप्रियता को रोकना और दूसरा मोदी सरकार के काम और योजनाओं को आम लोगों तक पहुंचाना, ताकि पार्टी को चुनाव में फायदा मिल सके। बहरहाल, भाजपा-कांग्रेस दोनों के बीच चुनावी तलवारें खिंच गई है। कांग्रेस भेंट-मुलाकात कार्यक्रम के जरिए आम लोगों तक पहुंच रही है, तो वहीं भाजपा आईटी-ईडी के छापे के बहाने कांग्रेस पर भ्रष्टाचार को लेकर हमलावर है। अब इसमें किसे कितना लाभ मिलेगा यह तो वक्त बताएगा। फिलहाल हम तो बस यही कह सकते हैं…. साहब! ये पब्लिक है, सब जानती है…।