अग्निपथ’, ईडी, कांग्रेस और आंदोलन

0 संजीव वर्मा

देश में इन दिनों दो मुद्दों पर ‘गदर’ मचा हुआ है। एक ओर ‘अग्निपथ’ के भावी ‘अग्निवीर’ आंदोलित हैं, तो दूसरी ओर ईडी को लेकर कांग्रेस का देशव्यापी प्रदर्शन जारी है। नि:संदेह ये दोनों अलग-अलग मुद्दे हैं, लेकिन इन मुद्दों से देश को दो-चार होना पड़ा रहा है। बात करें ‘अग्निपथ’ की, तो यह सरकार के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन चुका है। देश के युवा पिछले एक हफ्ते से विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं और सरकार के कॉनों में जूँ नहीं रेंग रही है। सरकार इस योजना में बदलाव कर युवाओं को मनाने में लगी है। लेकिन, सबसे बड़ा सवाल यही है कि आखिर 4 साल बाद ‘अग्निवीर’ कहां जाएंगे? सरकार के जिम्मेदार लोग युवाओं के आंदोलन के लिए अब विपक्ष को जिम्मेदार ठहराने में लग गए हैं। कहा जा रहा है कि युवाओं को विपक्ष के लोग भड़का रहे हैं, जबकि हकीकत यही है कि छात्रों और युवाओं का यह आंदोलन स्व-स्फूर्त है। उनका कोई नेता नहीं है। यह किसी के कहने या उकसाने पर शुरू नहीं हुआ है। यह अलग बात है कि अब विरोधी दल राजनीतिक रोटी सेकने आगे आ रहे हैं। या यूं कहें कि उनका काम शुरू हो गया है। कांग्रेस तो खुलकर युवाओं के समर्थन में सामने आ गई है। कुछ अन्य दल भी अग्निपथ के खिलाफ हैं। बीते सोमवार को युवाओं ने भारत बंद का आयोजन किया था। इसका कई दलों ने समर्थन भी किया। देश भर में इसका अच्छा खासा असर भी देखने को मिला। इस विरोध-प्रदर्शन के बीच रक्षा मंत्रालय ने ‘अग्निवीर’ भर्ती रैली की अधिसूचना भी जारी कर दी है। जुलाई से रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया शुरू की जाएगी। ऐसे में यह सवाल उमड़-घुमड़ रहा है कि आखिर भर्ती के लिए इतनी जल्दबाजी क्यों? जब तक युवाओं के सवालों और उनकी जिज्ञाआसों को शांत नहीं किया जाता तब तक भर्ती रैली के आयोजन का कोई औचित्य नहीं है। सरकार सबसे पहले युवाओं को समझाए कि ‘अग्निपथ’ से उनका भविष्य उज्जवल हैं। यदि युवा समझ जाएं तभी योजना को आगे बढ़ाए अन्यथा इसका भी हश्र किसान आंदोलन की तरह होगा। उधर, ईडी को लेकर भी बवाल कट रहा है। कांग्रेस के शीर्ष नेता राहुल गांधी से पूछताछ जारी है, जबकि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से 23 जून को पूछताछ होनी है। राहुल गांधी से पांच दिनों से पूछताछ हो रही है। उन्होंने ईडी के सामने अपना पक्ष रखा। इस दौरान कांग्रेस के तमाम बड़े नेता दिल्ली की सड़कों पर प्रदर्शन करते रहे। कांग्रेस के दोनों मुख्यमंत्री छत्तीसगढ़ के भूपेश बघेल और राजस्थान के अशोक गहलोत अपना राज-काज छोड़कर दिल्ली में डेरा जमाए हुए हैं। इस बीच, राजनीतिक गलियारों में यह सवाल तेजी से गूँज रहा है कि क्या ईडी की कार्रवाई कांग्रेस के लिए मौका है। कांग्रेस के अलावा उनके विरोधी भी कुछ ऐसा ही मान रहे हैं। कुछ लोग इसे 1997 में लालू के पीछे पड़ी सीबीआई का तर्क दे रहे हैं। सीबीआई की कार्रवाई के बाद लालू यादव की पार्टी 8 साल तक बिहार में एक छत्र राज किया। दूसरी ओर, प्रशांत भूषण जैसे वकील ईडी की कार्रवाई की तुलना 1977 में हुई इंदिरा गांधी की गिरफ्तारी से कर रहे हैं। उन्होंने ट्वीट भी किया था कि जनता पार्टी की सरकार में इंदिरा गांधी को गिरफ्तार किया था। उसके बाद कांग्रेस की वापसी हुई। इसके अलावा भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी के सलाहकार रहे सुधीद्र कुलकर्णी ने भी इस मामले में राहुल का समर्थन किया है। उन्होंने कहा कि उन पर बदले की भावना से कार्रवाई की जा रही है। हालांकि राहुल गांधी अभी गिरफ्तार नहीं हुए हैं, लेकिन तुलना कर रहे लोग गिरफ्तारी की संभावना से इंकार भी नहीं कर रहे हैं। हमारा मानना है कि नेहरू-गांधी परिवार के खिलाफ हो रही ईडी की कार्रवाई किसी न किसी तरह से कांग्रेस को फायदा पहुंचाएगी। मोदी सरकार भी इससे अनभिज्ञ नहीं होगी। वह भी अपने स्तर पर जरूर इसका आंकलन किया होगा। बहरहाल, यह सब भविष्य के गर्भ में है कि सरकार का यह दांव उसके लिए मुफीद होगा या फिर कांग्रेस के लिए यह तुरूप का इक्का साबित होगा।