राजस्थान को छत्तीसगढ़ स्थित कैप्टिव खदान से कोयला खनन की मिली अनुमति


नयी दिल्ली। कोयले की कमी के कारण बिजली की किल्लत के बीच राजस्थान सरकार को केंद्रीय वन तथा पर्यावरण मंत्रालय से छत्तीसगढ़ स्थित कैप्टिव कोल ब्लॉक में खनन की अनुमति मिल गयी है।

आधिकारिक सूत्रों ने आज बताया कि राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गेहलोत ने गत 10 अक्टूबर को अपने आला अधिकारियों के साथ की गयी एक बैठक उन्हें हर तरह के समाधान पर कार्य करने को कहा था। उसी बैठक में छत्तीसगढ़ स्तिथ परसा केंते कैप्टिव कोल ब्लॉक का भी मामला उठा था। परसा केंते कोल ब्लॉक छत्तीसगढ़ के हसदेव अभयारण्य क्षेत्र में आता है और यहाँ खनन की अनुमति का मामला कुछ समय से केंद्रीय वन तथा पर्यावण मंत्रालय के पास लंबित था।
अधिकारियों ने स्तिथि की गंभीरता को देखते हुये तत्परता से कार्य शुरू किया और कुछ ही दिन में मंत्रालय से अनुमति मिल गयी है।
अब उम्मीद है कि छत्तीसगढ़ से आने वाले इस कोयले से राजस्थान में चल रही बिजली इकाइयां अपनी पूरी क्षमता से कार्य करने लगेंगी और बिजली की किल्लत दूर होगी।
सूत्रों ने कहा कि इसी के साथ राज्य सरकार केंद्र और बाकी संस्थानों जैसे की भारतीय रेल, कोल इंडिया इत्यादि के साथ मिल कर भी ये सुनिश्चित करने में लगी है की प्रदेश में त्योहारों के दौरान आम जनता और बाहर से आने वाले सैलानियों को किसी भी प्रकार बिजली की कमी न हो। उल्लेखनीय है की राजस्थान में प्रति वर्ष दिवाली के समय में काफी पर्यटक आते हैं, लेकिन कोरोना महामारी की वजह से पिछले दो सालों में पर्यटन उद्योग को काफी नुकसान उठाना प?ा है।
छत्तीसग? से आने वाले इस कोयले की वजह से राजस्थान की कोल इंडिया पर से निर्भरता भी काफी काम होगी और राज्य की बिजली उत्पादन इकाइयों को समयबद्ध तरीके से कोयले की आपूर्ति होगी। इससे जुड़े एक अधिकार ने कहा कि प्रदेश में 24 घंटे बिजली की आपूर्ति करने के लिए कोयले की उपलब्धता पर कार्य करना जरूरी था। कोल इंडिया पर पूरे देश में कोयला आपूर्ति की जिम्मेदारी होती है। ऐसी स्थिति में छत्तीसगढ़ में राजस्थान का खुद का कोल ब्लॉक होने की वजह से ये सुनिश्चित हो जाता है कि राज्य की इकाइयों को कोयले की कमी नहीं होगी। आम जनता के साथ साथ ये पर्यटन उद्योग के लिए भी काफी लाभदायक होगा।

सूत्रों के अनुसार वर्तमान में राजस्थान में बिजली की मांग बढ़कर 12,000 मेगावाट से भी ज्यादा हो गयी थी, जबकि सारी इकाइयां कुल मिल कर सिर्फ 8000 – 9000 मेगावाट ही बिजली पैदा कर पा रही थी। राज्य सरकार ने इसी बीच अपनी बिजली उत्पादन कंपनियों को भी आगाह करते हुए उन्हें अपनी अपनी योजनाओं पर कार्य शुरू करने को कहा था ताकि वे त्योहारों और ठण्ड के मौसम में हर तरह की स्तिथि से निपटने के लिए तैयार रहें.

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