शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
ज्योतिष शास्त्र में विस्तारपूर्वक रूप से बताया गया है कि किस देवता को कौन सा फूल आदि अर्पित करना चाहिए। भगवान शंकर की बात करें तो इन्हें मुख्य रूप से बिल्व पत्र अर्पित की जाती है। कहा जाता अगर किसी व्यक्ति के पास इन्हें चढ़ाने के लिए कुछ न हो तो केवल बेल की एक पत्ती चढ़ाने मात्र से व्यक्ति की इनकी कृपा प्राप्त हो जाती है और सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। तो वहीं अगर इनकी पूजा की सारी सामग्री हो मगर बेलपत्र छूट जाए तो सारी पूदा निष्फल हो जाती है। मगर क्या आप जानते हैं कि आख़िर क्य़ों शिव जी को बेलपत्र इतनी पसंद है? क्य़ों शिवपुराण में इसको भगवान शिव का प्रतीक माना जाता है? क्यों इसकी पूजा अति शुभदायी मानी जाती है?
अगर नहीं, तो चलिए जानते हैं बिल्व पत्र से जुड़े कुछ ऐसे तथ्य जिनके बारे में आप नहीं जानते होंगे-
अगर पौराणिक कथाओं की मानें तो समुद्रमंथन के दौरान जब भगवान शिव ने हलाहल विष का पान कर लिया था, तब उनके कंठ में हो रही जलन को शांत करने के लिए दूध, गंगा के साथ-साथ बिल्व पत्र अर्पित किया गया था, जिससे उनके विष का असर कम हो सके। ऐसा कहा जाता है इसके बाद से ही शिव जी को बिल्व पत्र चढ़ाना शुरू किया गया था। ऐसी किंवदंतियां प्रचलित हैं, कि बिल्व पत्र की तीन पत्तियां शिव शंकर के तीन नेत्रों का प्रतीक है, जिस कारण भी इसको अधिक खास माना जाता है। अब ये तो हुई इसकी महत्व की बात, अब बात करेंगे इसकी उत्पत्ति कैसे हुई।
स्कंद पुराण की मानें तो बेल के वृक्ष की उत्पत्ति भगवान शिव की अर्धांगिनी देवी पार्वती के ललाट की पसीने की बूंदों से हुईं थी। कथाओं के अनुसार १ बार माता पार्वती ने ललाट से पसीने के पोंछकर फेंका तो कुछ बूंदे मंदार पर्वत पर जा गिरी। जिससे बेलवृक्ष की उत्पत्ति हुई। ऐसा कहा जाता है बेल के वृक्ष की जड़ में देवी गिरिजा, तने में महेश्वरी, पत्तियों में माता पार्वती, टहनियों में दक्षयायनी,फूलों में गौरी तो वहीं फलों में मां कात्यायनी निवास करती हैं।
इस मंत्र का जाप करते हुए चढ़ानी चाहिए बिल्व पत्र-
‘त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रयायुधम।
त्रिजन्मपापसंहारं बिल्वपत्रं शिवार्पणम।
शास्त्रों के अनुसार इस मंत्र का अर्थ होता है हे तीन गुणों तीन नेत्र, त्रिशूल को धारण करने वाले शिव जी, तीन जन्मों के पापों का संहार करने वाले शिव, मैं आपको बिल्वपत्र अर्पित करता हूं।
तोड़ने का नियम
इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि चतुर्थी,नवमी, अष्टमी, चतुर्दशी,और अमावस्या तिथि को बिल्वपत्र को न तोड़ें। तथा इसे तोड़ते समय भगवान शिव का ध्यान करना चाहिए। ध्यान रहे इस कभी टहनियों सहित न तोड़ें।