अरुण पटेल
शिवराज सिंह चौहान ने जिस ढंग से मंत्रिमंडल का विस्तार उपचुनाव जीतने की मानसिकता के चलते किया और उसमें ज्योतिरादित्य सिंधिया के दबाव में 22 में से 14 दल बदलुओं को जगह दी, उससे क्षेत्रीय एवं जातिगत असंतुलन तो पैदा हुआ ही लेकिन रह-रह कर अब जिस प्रकार से असंतोष के स्वर फूट रहे हैं उससे एक तरफ भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ने वालों को भितरघात का डर लगने लगा है। दूसरी ओर उपचुनाव जीतने के लिए कांग्रेस भी इस जुगत में भिड़ गयी है कि वह इस स्थिति का अधिक से अधिक उपयोग अपनी चुनावी संभावनाओं को चमकीला बनाने के लिए करे। कांग्रेस को यदि भाजपा का कोई असंतुष्ट चेहरा जीतने वाला दिखता है तो वह उसे टिकट से नवाजने में भी कोताही नहीं करेगी। कांग्रेस की रणनीति भाजपा में पैदा हो रहे असंतोष का अधिक से अधिक फायदा उठाने की है और उसने उपचुनावों के लिए नियुक्त प्रभारियों से कह भी दिया है कि इस स्थिति का कितना फायदा उठाया जा सकता है इसका वे आंकलन करें तथा जिन-जिन से सहयोग लिया जा सकता है उनसे भी मेलजोल बढ़ायें।
भाजपा ने सभी दल बदलने वाले 22 पूर्व विधायकों को जब से टिकट देने का ऐलान किया है तब से पार्टी में अंदरखाने टिकट के दावेदार दुखी तो थे ही लेकिन अब उनमें से कुछ मुखर भी होने लगे हैं। भाजपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती असंतुष्टों को मनाने और डेमेज कंट्रोल करने की रहेगी ताकि भितरघात की संभावना ही न बचे। गुना लोकसभा चुनाव में सिंधिया को पराजित करने वाले भाजपा सांसद के. पी. यादव को ऐसा लगने लगा है कि जबसे सिंधिया भाजपा में आये हैं उनकी उपेक्षा होने लगी है। ताजा मामला यह है कि आज मुंगावली विधानसभा क्षेत्र में प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा और सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया की हुई वर्चुअल रैली का निमंत्रण भी यादव को नहीं मिला। इस संबंध में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष शर्मा ने कहा कि गुना सांसद हर कार्यक्रम में उपस्थित रहते हैं आज वहां उपस्थित नहीं थे। सूत्रों का दावा है कि लोकसभा चुनाव की हार को लेकर यादव के साथ सिंधिया मंच साझा नहीं करना चाहते हैं। उपचुनाव को लेकर इस क्षेत्र की भाजपा की पहली रैली में यदि निर्वाचित सांसद ही उपेक्षित रहेगा तो यादव के समर्थकों में नाराजगी होना स्वाभाविक है।
भाजपा के वरिष्ठ नेता पूर्व मंत्री और विधायक अजय विश्नोई ने एक बार फिर पार्टी की कार्यशैली पर सवाल उठाते हुए कहा है कि इससे शिवराज सिंह चौहान की छबि खराब हो रही है। इसके एक दिन पूर्व ही विश्नोई ने मुख्यमंत्री को पत्र लिख कर अपनी पीड़ा से अवगत कराया था। इस बार उन्होंने सवाल उठाया है विभाग बंटवारे को लेकर और कहा है कि ऐसा पहले कभी नहीं हुआ कि इसके लिए मुख्यमंत्री को दिल्ली जाना पड़े, इससे उनकी छबि खराब हुई है। उन्होंने तो यह भी सुझाव दिया है कि भाजपा में आने वाले जो नेता मंत्री बन गए हैं उन्हें उपचुनाव तक बिना विभाग के ही रहना चाहिए, यदि उन्हें विभाग दे भी दिये जाते हैं तो 6 माह तक वे क्या काम करेंगे। अभी भी पांच मंत्री व मुख्यमंत्री ही कामकाज देख रहे हैं इसलिए सिंधिया समर्थकों को निर्विभागीय मंत्री बनाना चाहिये। उनका इशारा इस ओर था कि ये लोग तो अपने-अपने क्षेत्रों तक ही सीमित रहेंगे तो वे विभाग का काम क्या कर पायेंगे। ऐसा नहीं है कि भाजपा के पास यह मजबूत तर्क है कि यदि सिंधिया समर्थक नहीं आते तो भाजपा की सरकार कैसे बनती, तो इसकी काट में मंत्री बनने से चूके विंध्य क्षेत्र के कद्दावर नेता और पूर्व मंत्री राजेन्द्र शुक्ल तर्क देते हैं कि यदि विंध्य न होता तो सिंधिया भी भाजपा की सरकार न बना पाते। उनके इस तर्क में पूरा वजन है क्योंकि पहली बार इस अंचल में कांग्रेस की इतनी बुरी पराजय हुई कि तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह और विधानसभा उपाध्यक्ष राजेंद्र सिंह सहित अधिकांश कांग्रेस उम्मीदवार चुनाव हार गये। बदनावर क्षेत्र में भाजपा के पूर्व विधायक भंवर सिंह शेखावत ने अभी तक कोई ऐसा संकेत नहीं दिया जिससे यह आभास मिले कि उनके तेवर ठंडे पड़ रहे हैं जबकि हाटपिपल्या में दीपक जोशी कभी नरम तो कभी गरम दिखाई पड़ते हैं लेकिन पूरी तरह अभी तक उनकी नाराजगी दूर नहीं हुई है। जो मंत्री बनने से चूक गये उन विधायकों के समर्थकों की नाराजगी भी सामने आ रही है जिनमें मंदसौर के यशपाल सिंह सिसोदिया, इंदौर के रमेश मेंदोला और देवास की गायत्री राजे शामिल हैं, जबकि विश्नोई तो स्वयं ही मोर्चा संभाल रहे हैं।
और अन्त में………
चाहे भाजपा के असंतुष्ट हों या कांग्रेस नेता, इस समय दोनों के ही निशाने पर ज्योतिरादित्य सिंधिया हैं। भाजपा में जो मंत्री नहीं बन पाये वे यह मानकर चल रहे हैं कि उन्हें सिंधिया के दबाव के कारण मौका नहीं मिला तो विभाग वितरण ना होने की स्थिति में कमलनाथ सरकार में मंत्री रहे विधायक डॉ. गोविंद सिंह ने तो सिंधिया पर तीखा शाब्दिक हमला करते हुए यहां तक कह डाला कि जहां-जहां सिंधिया के पैर पड़ेंगे, वहां-वहां बंटाढार होगा। बिन मांगे ही उन्होंने शिवराज को सलाह दे डाली कि वे सिंधिया समर्थक को राजस्व विभाग ना दें क्योंकि सिंधिया परिवार जमीनें हड़पने का काम करता है। उनकी रुचि अपने समर्थक को राजस्व विभाग दिलाने में इसीलिए रहती है। कमलनाथ सरकार में राजस्व विभाग सिंधिया के खास सिपहसालार गोविंद सिंह राजपूत के पास था जो फिलहाल भाजपा सरकार के पहले विस्तार में उन्हें नहीं मिला। इससे पूर्व जब सिंधिया कांग्रेस में थे तब भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रभात झा भी कुछ दस्तावेजों के साथ सिंधिया पर ऐसे ही आरोप लगा चुके हैं। गोविंद सिंह को उत्तर देने गृह और स्वास्थ्य मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा सामने आये और उन्होंने कहा कि डॉ. गोविंद सिंह तो स्वयं अपना विभाग तय नहीं कर पाये थे वे भाजपा को सलाह कैसे दे सकते हैं। कांग्रेस में प्रवक्ता रहे पंकज चतुर्वेदी जो अब भाजपा में जा चुके हैं उनका कहना है कि डॉ. गोविंद सिंह के आरोप पूरी तरह बेबुनियाद हैं और पन्द्रह साल तो भाजपा की सरकार थी। इसलिए उनके इस प्रकार का बयान देने का कोई औचित्य नहीं है।
शिवराज सिंह चौहान ने जिस ढंग से मंत्रिमंडल का विस्तार उपचुनाव जीतने की मानसिकता के चलते किया और उसमें ज्योतिरादित्य सिंधिया के दबाव में 22 में से 14 दल बदलुओं को जगह दी, उससे क्षेत्रीय एवं जातिगत असंतुलन तो पैदा हुआ ही लेकिन रह-रह कर अब जिस प्रकार से असंतोष के स्वर फूट रहे हैं उससे एक तरफ भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ने वालों को भितरघात का डर लगने लगा है। दूसरी ओर उपचुनाव जीतने के लिए कांग्रेस भी इस जुगत में भिड़ गयी है कि वह इस स्थिति का अधिक से अधिक उपयोग अपनी चुनावी संभावनाओं को चमकीला बनाने के लिए करे। कांग्रेस को यदि भाजपा का कोई असंतुष्ट चेहरा जीतने वाला दिखता है तो वह उसे टिकट से नवाजने में भी कोताही नहीं करेगी। कांग्रेस की रणनीति भाजपा में पैदा हो रहे असंतोष का अधिक से अधिक फायदा उठाने की है और उसने उपचुनावों के लिए नियुक्त प्रभारियों से कह भी दिया है कि इस स्थिति का कितना फायदा उठाया जा सकता है इसका वे आंकलन करें तथा जिन-जिन से सहयोग लिया जा सकता है उनसे भी मेलजोल बढ़ायें।
भाजपा ने सभी दल बदलने वाले 22 पूर्व विधायकों को जब से टिकट देने का ऐलान किया है तब से पार्टी में अंदरखाने टिकट के दावेदार दुखी तो थे ही लेकिन अब उनमें से कुछ मुखर भी होने लगे हैं। भाजपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती असंतुष्टों को मनाने और डेमेज कंट्रोल करने की रहेगी ताकि भितरघात की संभावना ही न बचे। गुना लोकसभा चुनाव में सिंधिया को पराजित करने वाले भाजपा सांसद के. पी. यादव को ऐसा लगने लगा है कि जबसे सिंधिया भाजपा में आये हैं उनकी उपेक्षा होने लगी है। ताजा मामला यह है कि आज मुंगावली विधानसभा क्षेत्र में प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा और सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया की हुई वर्चुअल रैली का निमंत्रण भी यादव को नहीं मिला। इस संबंध में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष शर्मा ने कहा कि गुना सांसद हर कार्यक्रम में उपस्थित रहते हैं आज वहां उपस्थित नहीं थे। सूत्रों का दावा है कि लोकसभा चुनाव की हार को लेकर यादव के साथ सिंधिया मंच साझा नहीं करना चाहते हैं। उपचुनाव को लेकर इस क्षेत्र की भाजपा की पहली रैली में यदि निर्वाचित सांसद ही उपेक्षित रहेगा तो यादव के समर्थकों में नाराजगी होना स्वाभाविक है।
भाजपा के वरिष्ठ नेता पूर्व मंत्री और विधायक अजय विश्नोई ने एक बार फिर पार्टी की कार्यशैली पर सवाल उठाते हुए कहा है कि इससे शिवराज सिंह चौहान की छबि खराब हो रही है। इसके एक दिन पूर्व ही विश्नोई ने मुख्यमंत्री को पत्र लिख कर अपनी पीड़ा से अवगत कराया था। इस बार उन्होंने सवाल उठाया है विभाग बंटवारे को लेकर और कहा है कि ऐसा पहले कभी नहीं हुआ कि इसके लिए मुख्यमंत्री को दिल्ली जाना पड़े, इससे उनकी छबि खराब हुई है। उन्होंने तो यह भी सुझाव दिया है कि भाजपा में आने वाले जो नेता मंत्री बन गए हैं उन्हें उपचुनाव तक बिना विभाग के ही रहना चाहिए, यदि उन्हें विभाग दे भी दिये जाते हैं तो 6 माह तक वे क्या काम करेंगे। अभी भी पांच मंत्री व मुख्यमंत्री ही कामकाज देख रहे हैं इसलिए सिंधिया समर्थकों को निर्विभागीय मंत्री बनाना चाहिये। उनका इशारा इस ओर था कि ये लोग तो अपने-अपने क्षेत्रों तक ही सीमित रहेंगे तो वे विभाग का काम क्या कर पायेंगे। ऐसा नहीं है कि भाजपा के पास यह मजबूत तर्क है कि यदि सिंधिया समर्थक नहीं आते तो भाजपा की सरकार कैसे बनती, तो इसकी काट में मंत्री बनने से चूके विंध्य क्षेत्र के कद्दावर नेता और पूर्व मंत्री राजेन्द्र शुक्ल तर्क देते हैं कि यदि विंध्य न होता तो सिंधिया भी भाजपा की सरकार न बना पाते। उनके इस तर्क में पूरा वजन है क्योंकि पहली बार इस अंचल में कांग्रेस की इतनी बुरी पराजय हुई कि तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह और विधानसभा उपाध्यक्ष राजेंद्र सिंह सहित अधिकांश कांग्रेस उम्मीदवार चुनाव हार गये। बदनावर क्षेत्र में भाजपा के पूर्व विधायक भंवर सिंह शेखावत ने अभी तक कोई ऐसा संकेत नहीं दिया जिससे यह आभास मिले कि उनके तेवर ठंडे पड़ रहे हैं जबकि हाटपिपल्या में दीपक जोशी कभी नरम तो कभी गरम दिखाई पड़ते हैं लेकिन पूरी तरह अभी तक उनकी नाराजगी दूर नहीं हुई है। जो मंत्री बनने से चूक गये उन विधायकों के समर्थकों की नाराजगी भी सामने आ रही है जिनमें मंदसौर के यशपाल सिंह सिसोदिया, इंदौर के रमेश मेंदोला और देवास की गायत्री राजे शामिल हैं, जबकि विश्नोई तो स्वयं ही मोर्चा संभाल रहे हैं।
और अन्त में………
चाहे भाजपा के असंतुष्ट हों या कांग्रेस नेता, इस समय दोनों के ही निशाने पर ज्योतिरादित्य सिंधिया हैं। भाजपा में जो मंत्री नहीं बन पाये वे यह मानकर चल रहे हैं कि उन्हें सिंधिया के दबाव के कारण मौका नहीं मिला तो विभाग वितरण ना होने की स्थिति में कमलनाथ सरकार में मंत्री रहे विधायक डॉ. गोविंद सिंह ने तो सिंधिया पर तीखा शाब्दिक हमला करते हुए यहां तक कह डाला कि जहां-जहां सिंधिया के पैर पड़ेंगे, वहां-वहां बंटाढार होगा। बिन मांगे ही उन्होंने शिवराज को सलाह दे डाली कि वे सिंधिया समर्थक को राजस्व विभाग ना दें क्योंकि सिंधिया परिवार जमीनें हड़पने का काम करता है। उनकी रुचि अपने समर्थक को राजस्व विभाग दिलाने में इसीलिए रहती है। कमलनाथ सरकार में राजस्व विभाग सिंधिया के खास सिपहसालार गोविंद सिंह राजपूत के पास था जो फिलहाल भाजपा सरकार के पहले विस्तार में उन्हें नहीं मिला। इससे पूर्व जब सिंधिया कांग्रेस में थे तब भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रभात झा भी कुछ दस्तावेजों के साथ सिंधिया पर ऐसे ही आरोप लगा चुके हैं। गोविंद सिंह को उत्तर देने गृह और स्वास्थ्य मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा सामने आये और उन्होंने कहा कि डॉ. गोविंद सिंह तो स्वयं अपना विभाग तय नहीं कर पाये थे वे भाजपा को सलाह कैसे दे सकते हैं। कांग्रेस में प्रवक्ता रहे पंकज चतुर्वेदी जो अब भाजपा में जा चुके हैं उनका कहना है कि डॉ. गोविंद सिंह के आरोप पूरी तरह बेबुनियाद हैं और पन्द्रह साल तो भाजपा की सरकार थी। इसलिए उनके इस प्रकार का बयान देने का कोई औचित्य नहीं है।