अब कांग्रेस में थमेगी, भाजपा में बढ़ेगी वर्चस्व की जंग   

 अरुण पटेल
शिवराज मंत्रि परिषद का विस्तार उपचुनावों की चुनौती के मद्देनजर किया गया है, इसका मुख्य कारण है कि सर्वाधिक 16 उपचुनाव ग्वालियर-चंबल संभाग में होना हैं और इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए इस क्षेत्र को भारी- भरकम प्रतिनिधित्व भी मिला है। दल-बदल के बाद इस अंचल में कांग्रेस के भीतर एक प्रकार से वर्चस्व की जंग थम जाएगी जबकि भाजपा में यह छिड़ेगी,  इस संभावना को नकारा नहीं जा सकता। भाजपा में अब इस अंचल में ज्यादा शक्ति केंद्र उभरेगें तो कांग्रेस में यह लड़ाई थम जाएगी, क्योंकि बड़े कद के नेता अब इस इलाके में दिग्विजय सिंह हैं, और जो भी कांग्रेसी हैं उनमें से अधिकांश उन्हें अपना नेता मानते हैं। वर्चुअल रैली के माध्यम से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने उपचुनाव प्रचार का आगाज कर दिया है तो कमलनाथ भी कांग्रेस की ओर से  बदनावर विधानसभा क्षेत्र से  मैदानी मोर्चा संभालने वाले थे लेकिन तेज बारिश के कारण उनका वहां का कार्यक्रम निरस्त हो गया और अब 7 जुलाई को वहां जाएंगे।
अभी प्रतीकों और व्यंग्य के सहारे एक दूसरे पर  निशाना साधा जा रहा है।   ग्वालियर-चंबल संभाग में भाजपा में वर्चस्व की लड़ाई पर्दे के पीछे तेज होने की संभावना है क्योंकि केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, वरिष्ठ मंत्री नरोत्तम मिश्रा और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा तो बड़े नेता हैं ही और अब सिंधिया के भाजपा में आने से एक और शक्ति केंद्र बन गया है। कमलनाथ सरकार के तख्तापलट अभियान में अहम भूमिका निभाने और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के विश्‍वासपात्र होने के कारण भाजपा की अंदरूनी राजनीति में नरोत्तम मिश्रा का कद काफी बढ़ गया है। प्रदेश अध्यक्ष शर्मा की भी क्षेत्र में दखलंदाजी पहले से ही है। इन बड़े नेताओं के इर्द-गिर्द कुछ छोटे-छोटे शक्ति टापू  भी आकार लेंगे ही। जहां तक तोमर का सवाल है वह तो सबको साथ लेकर चलने में एक प्रकार से माहिर माने जाते हैं और केंद्र की राजनीति में ज्यादा व्यस्त हैं, लेकिन अन्य नेताओं की तो रोज की समस्याओं के कारण खींचातानी होती रहेगी इसे भी नहीं नकारा जा सकता। एक टकराव की वजह यह भी रहेगी कि भाजपा की कार्यशैली के नेताओं की अपनी एक अलग राजनीतिक शैली होगी और कांग्रेसी संस्कृति के आदी नेता तथा कार्यकर्ताओं के बड़े समूह का भाजपाईकरण हो रहा है, इसलिए इनके बीच कहीं ना कहीं तनाव भी हो सकता है। हालांकि भाजपा की अपनी कार्यशैली जल्दी तो उभर कर नहीं आएगी लेकिन अंदर ही अंदर सुलगती रहेगी और इसे रोक पाना आसान नहीं होगा।
सिंधिया के जाने से दिग्विजय हुए और मजबूत    
अभी तक सिंधिया की ग्वालियर-चंबल संभाग में कांग्रेस की राजनीति पर मजबूत पकड़ थी और सोनिया गांधी तथा राहुल गांधी से नजदीकियों के चलते उनका ही वर्चस्व था, इसलिए  दिग्विजय सिंह यहां हस्तक्षेप करने से परहेज करते थे। लेकिन अब इस इलाके में दिग्विजय का ही बोलबाला हो गया है और कांग्रेस आलाकमान को भी अब निर्णय लेने में दुविधा या असमंजस नहीं रहेगा। अब कमलनाथ और दिग्विजय सिंह मिलकर राजनीति करेंगे, इसलिए कांग्रेस को तालमेल बैठाने में  मशक्कत नहीं करना पड़ेगी।
इशारों इशारों में छूट रहे तीर   
भाजपा और कांग्रेस के नेता एक दूसरे पर छींटाकशी करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रहे हैं। शिवराज, ज्योतिरादित्य, नरोत्तम और विष्णु दत्त के निशाने पर दिग्विजय और कमलनाथ हैं तो वहीं दूसरी ओर कमलनाथ और दिग्विजय के निशाने पर शिवराज और ज्योतिरादित्य हैं।मंत्रिमंडल विस्तार के बाद सिंधिया ने कहा कि टाइगर अभी जिंदा है तो कमलनाथ ने आज रतलाम यात्रा के दौरान सैलाना में  कह डाला कि सर्कस का टाइगर जिंदा है। इसके साथ यह भी जोड़ दिया की शादी के घोड़े और रेस के घोड़े में फर्क होता है। उन्होंने कहा कि लोग खुद के लिए कहते हैं मैं टाइगर हूँ। अपने बारे में कमलनाथ ने कहाकि  मैं महाराजा नहीं हूं, मैं मामा नहीं हूं, मैंने कभी चाय नहीं बेची, मैं तो बस कमलनाथ हूं। अब तो प्रदेश की जनता यह तय करें कि कौन क्या है। सिंधिया ने भाजपा की वर्चुअल रैली में पार्टी छोड़ने पर कहा कि कई चील-कौवे बैठे हुए हैं, मुझे जितना नोच सकते हो  नोच लो। शिवराज ने कमलनाथ सरकार को दलालों की सरकार   निरूपित हुए आरोप लगाया कि वल्लभ भवन दलालों का अड्डा बन गया था। उन्होंने कमलनाथ सरकार को 4dबाली सरकार की संज्ञा दी, यह हैं दलाल, दंभ, दुर्भावना और चौथे दिग्विजय सिंह।

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