सरकार का देश और देश का सरकार पर भरोसा जरूरी: आम बजट पर त्वरित प्रतिक्रिया

0  संजीव वर्मा

केंद्र की नरेन्द्र मोदी सरकार ने आज संसद में वर्ष 2021-22 का आम बजट पेश किया। यह नए दशक का पहला बजट है, जो अप्रत्याशित कोरोना महामारी के मद्देनजर एक डिजिटल बजट भी है। वित्तमंत्री निर्मला सीतारामण ने बजट पेश करते हुए कई बड़े ऐलान किए। उन्होंने कहा कि यह बजट दरअसल 130 करोड़ भारतीयों की एक स्पष्ट अभिव्यक्ति है, जिन्हें, अपनी कार्यक्षमता और कौशल पर पूर्ण विश्वास है। वित्तमंत्री ने कहा कि बजट प्रस्तावों में राष्ट्र पहले, किसानों की आय दोगुनी करने, मजबूत अवसंरचना, स्वस्थ भारत, सुशासन, युवाओं के लिए अवसर, सभी के लिए शिक्षा, महिला सशक्तिकरण, समावेशी विकास आदि का संकल्प और मजबूत होगा। लेकिन सीतारमण की इन घोषणाओं पर आमजनता कैसे ऐतबार करेगी, यह बड़ा सवाल है। किसानों की आय दोगुनी करने का वायदा तो किया गया है। लेकिन कैसे, यह स्पष्ट नहीं है। आयकरदाता पूरी तरह निराश हैं। आयकर स्लैब में कोई बदलाव नहीं किया गया है। अलबत्ता 75 पार या उससे अधिक उम्र के लोगों को रियायत दी गई है। बजट में खास बात है, तो केवल स्वास्थ्य। सरकार ने स्वास्थ्य पर जोर दिया है। बजट में 64,180 करोड़ रुपए के परिव्यय के साथ आत्मनिर्भर स्वास्थ्य कार्यक्रम शुरू करने का प्रस्ताव है। इसके अलावा बजट में ऐसा कुछ खास नहीं जिससे आम जनता लाभान्वित हो। पेट्रोल-डीजल में किसानों के नाम पर कृषि सेस लगा दिया गया है। मोबाईल महंगे कर दिए गए हैं, जबकि सोने-चांदी में कस्टम ड्यूटी को घटा दिया गया है। यानी ये दोनों कीमती धातुएं सस्ती होंगी। वित्तीय घाटा को 6.8 प्रतिशत पर रखने तथा 2021 में इसके 9.5 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया है। किसानों की फसलों पर लागत से कम से कम डेढ़ गुणा ज्यादा रकम देने की बात कही जा रही है, लेकिन कुछ भी स्पष्ट नहीं है। बीमा क्षेत्र में एफडीआई की सीमा अब 74 प्रतिशत तक बढ़ाने की घोषणा की गई है। जबकि इसी वित्तीय वर्ष में एलआईसी यानी भारतीय जीवन बीमा निगम के आईपीओ को बाजार में लाने का  ऐलान किया गया है। दरअसल वित्तमंत्री ने अपने भाषण में जो भी वायदे किए हैं सब झुनझने की तरह है। महंगाई, बेरोजगारी और मंदी से निपटने के लिए प्रभावी इंतजाम किए जाने की जितनी उम्मीद थी इसमें नजर नहीं आया। अर्थव्यवस्था का पुराना सिद्धांत है लोग ज्यादा खर्च करेंगे तभी अर्थव्यवस्था में नई जान आएगी लेकिन आज यह बड़ा सवाल है कि लोग खर्च करेंगे कैसे? खर्च के लिए जरूरी है जेब में पैसा हो। लेकिन आज लोगों के सामने रोजी-रोटी का संकट है। लोगों के जेब में पैसा ही नहीं है। अर्थव्यवस्था की स्थिति कमजोर है। लोग डर-डर कर जी रहे हैं। उनसे ये उम्मीद करना व्यर्थ है। मोदी सरकार के इस बजट में महंगाई और बेरोजगारी पर कोई ठोस उपाय नहीं दिख रहा है। सरकार यही अनुमान लगी रही है कि अगले वित्त वर्ष में अर्थव्यवस्था में पूरा सुधार देखने को मिलेगा, लेकिन सुधार देखने के लिए सरकार को बड़े पैमाने पर प्रोत्साहन, निवेश, निगरानी और नवाचार पर अपना ध्यान केंद्रित करना होगा। विकास में बिना उपाय के तेजी नहीं आएगी। गौरतलब है कि दुनिया की दूसरी अर्थव्यवस्था में दिए गए पैकेज के परिणाम स्पष्ट रूप से दिखे हैं, मगर भारत में दिए गए पैकेज के बावजूद हमारी अर्थव्यवस्था तेजी से औंधे मुंह गिरती जा रही है। उद्योग और सेवा क्षेत्र की जो तस्वीर देखने को मिल रही है, वह निराशाजनक है। चिंता की बात ज्यादा इसलिए भी है कि जीडीपी में इन दोनों क्षेत्रों का बड़ा योगदान रहता है। आज स्थिति यह है कि कोरोना काल में जो  उद्योग धंधे बंद हुए थे, उनमें से बड़ी संख्या में अभी तक चालू नहीं हो पाए हैं। जिन करोड़ों लोगों का काम धंधा बंद हुए, उनमें भी बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं जिनके पास अभी भी रोजगार नहीं है। यह भी याद रहे कि उद्योग नोटबंदी और जीएसटी के झटकों से उबरने में ही जुटा था कि लॉकडाउन ने इतनी गहरी चोट पहुंचाई कि अभी तक उन्हें कुछ सूझ नहीं रहा। सरकार के अब तक के राहत पैकेजों का भी सकारात्मक परिणाम देखने को नहीं मिला है। जाहिर है, यह चुनौती आने वाले साल में भी बनी रहेगी और इससे निजात पाने में लंबा समय लग सकता है। अर्थव्यवस्था में तेज सुधार के लिए लंबा रास्ता लेने के बजाय जल्दी में हम सुधार के लिए क्या कर सकते हैं, इसे प्राथमिकता से देखना चाहिए था। बहरहाल, बजट में सरकार से अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए ठोस ऐलान की उम्मीद थी, लेकिन ऐसा नहीं दिखा। दरअसल इसके लिए हिम्मत से ज्यादा विश्वास की जरूरत होती है। सरकार का देश पर भरोसा और देश का सरकार पर भरोसा।

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