भाटापारा/ राजस्व मंडल बिलासपुर ने छत्तीसगढ के बडे दानियों में शामिल स्वर्गीय दाउ कल्याण सिह की भाटापारा क्षेत्र की जमीन को राजसात करने का आदेश दिया है इस फैसले के बाद खलबली मच गई है । काफी लंबे समय से ताऊ जी की जमीन को बेचने और खरीदने का काम हो रहा था । जो लोग बरसों पहले जमीन खरीद चुके थे और उस पर मकान बना चुके हैं उन लोगों के बीच अब चिंता का विषय हो गया है फैसला आने के बाद हर कोई की नजर आगामी कार्यवाही की ओर है ।दाउ जी निसंतान थे ,मृत्यु उपरांत उनकी पत्नियां स्वर्गीय जनकनंदनी व स्वर्गीय सरजावती के नाम से धारित भूमि के बारे में यह फैसला आया है मंडल ने अपने फैसले में हस्तांतरित किये गये वसीयतनामे को भी विधि विपरीत माना इस फैसले के बाद इस वसीयतनामे के आधार पर बेची गई जमीनों के मालिक अब परेशान है राजस्व मंडल के इस फैसले से करीब सौ एकड जमीन पर असर पडने जा रहा है पिछले करीब 37 सालो से संपत्ति विवाद से जुडा यह मामला आदलतो में चल रहा था मंडल ने आदेश में जमीन राजसात कर शासकीय मद में दर्ज करने का आदेश तहसीलदार को दिया है ,तीस दिवस के अंदर सूचना देने को कहा गया है भाटापारा क्षेत्र के ग्राम हथनी ,औरेठी व पटपर तथा भाटापारा में स्वर्गीय दाउ कल्याण सिंह की काफी जमीन थी उनकी मृत्यु उपरांत ग्राम औरेठी ,हथनी ,भाटापारा एवं पटपर की जमीने उनकी दोनो पत्नियां जनक नंदनी व सरजावती दोनो के नाम पर दर्ज थी । 1983 में राजसात हो गयी थी ।
जमीन- दोनो पत्नियों की निसंतान मौत के बाद माल जमादार ने 1983 मे इस जमीन को राजसात कर लिया था इस पर अशोक कुमार अग्रवाल ने आपत्ति करते हुए दावा किया था कि स्वर्गीय सरजावती ने उनके अशोक के पिता स्व. राममूर्ति अग्रवाल को वारिस बनाया था, पर इसके प्रमाण के रूप में अशोक ने केवल फोटोकापी पेश की उसके मूल दस्तावेज नही दिये इस चुनौती तो तहसीलदार ने खारिज कर दिया इसके बाद मामला एसडीएम अदालतो तक गया वहां भी खारिज हुआ आदलतो ने कहा कि वसीयतनामे की केवल फोटोकापी है इस पर भी सरजावती दाउजी की दूसरी पत्नि थी हिन्दू उत्तराधिकार कानून के तहत दूसरी पत्नि का कोई विधिक हक नही है . अचानक दस्तावेजो में नाम – इसी बीच एक राजस्व निरीक्षक व्दारा नामांतरण पंजी में 1 जनवरी 1985 को सभी राजसात की गई भूमियों को सरजावती के स्थान पर राममूर्ति अग्रवाल के नाम पर नामांतरण करा लिया गया. नामांतरण पंजी में राममूर्ति के आम मुख्तियार के रूप में अनुपकुमार अग्रवाल का नाम दर्ज है. उक्त नामांतरण के खिलाफ शांतिबाई ने न्यायालय अनुविभागीय अधिकारी के समक्ष चुनौती दी.एसडीएम कोर्ट
अपर आयुक्त रायपुर ने भी 1984की पूर्व स्थिति बहाल करने के आदेश दिये,इसी बीच अनुप कुमार अग्रवाल वगैरह ने अपर आयुक्त के आदेश के विपरीत तहसीलदार न्यायालय से समस्त राजसात भूमियों को अपने पिता राममूर्ति अग्रवाल के नाम करा लिया तथा पिता राममूर्ति अग्रवाल से वसीयत प्राप्त कर अनुपकुमार वगैरह के नाम पर दर्ज करा लिया.प्रकरण में ऐसा कोई अभिलेख नही है जो यह प्रमाणितहो सके कि जनक नंदनी ट्रस्ट का निर्माण विधि अनुसार हुआ हो ,अत: तहसीलदार भाटापारा को आदेशित किया जाता है कि दाउ कल्याण सिंह की पत्नि सरजावती एवं जनकनंदनी की नि:संतानफौत होने के कारण उनके नाम पर दर्ज समस्त भूमि को राजसात कर शासकीय मद मे दर्ज किया जाए .
हाईकोर्ट में चुनौती ….
जनहित याचिका के तहत माननीय उच्च न्यायालय में वर्ष 2017 में नितिनआहूजा वगैरह ने चुनौती दी उच्च न्यायालय ने राजस्व मंडल को केस का निराकरण करने को कहा था . राजस्व मंडल ने आदेश मे कहा कि जनकनंदनी एवं सरजावती के व्दारा एक ट्रस्ट का निर्माण वर्ष 1959में किया जाना था एवं ट्रस्टी के रूप में राममूर्ति को दर्शाया गया है .राममूर्ति की मृत्यु के बाद महज एक शपथ पत्र के बाद ट्रस्ट की समस्त भूमियां अनुप कुमार वगैरह के नाम पर हस्तांतरित कर दी गई जो विधि विपरीत है .
राजसात की कार्रवाई …
तहसीलदार मयंक अग्रवाल ने कहा कि सारे अभिलेख एकत्रित कर उचित कानूनी कार्यवाही की जायेगी जिनके व्दारा रजिस्ट्री के माध्यम से जमीन ख्ररीदी गई है उन जमीनों के संबंध में मार्गदर्शन वरिष्ठ कार्यालय से लिया जाएगा ।