आओ आस्था, विश्वास और सुकून का एक दीया जलाएं

अरुण पटेल
दीपावली का पर्व हम अमावस्या की घनघोर अंधेरी रात के तिमिर को मिटाने के लिए दीपोत्सव के रूप में मनाते हैं। इसका मकसद अंधकार को मिटाकर प्रकाश का साम्राज्य फैलाना है। आज आवश्यकता इस बात की है कि हम सब अपने अंतर्मन में आस्था, विश्वास सकून का एक दीया जलाएं। उससे जो हमारा अंतर्मन प्रकाशित होगा वही प्रकाश पुंज हम सबके जीवन और व्यक्तित्व को आलोक से भर देगा। इससे पूरे समाज और देश में आस्था विश्वास और सकून का ऐसा प्रकाश फैलेगा जो आज जिस आस्था, विश्वास और सकून का चारों ओर अभाव है वह दूर होगा। आज के मौजूदा हालातों में आस्था विश्वास और साख का संकट चारों दिशाओं में अत्यधिक गहराया हुआ है। शंका, कुशंका और सभी संस्थाओं और हर किसी के प्रति संदेह का जो अंधियारा दिन-प्रतिदिन गहराता जा रहा है उसे परस्पर विश्वास का एक दीया जला कर हम मिटा सकते हैं। तब ही इन परिस्थितियों से हम, देश और समाज बाहर आ पाएंगे, शांतिपूर्वक एक दूसरे पर विश्वास करते हुए नए समाज का निर्माण करेंगे जिसमें आपसी प्रेम और भाईचारा होगा तथा अविश्वास के लिए तनिक भी गुंजाइश शेष नहीं होगी। इसलिए जरूरी है कि एक दीया अपने अंदर भी जलाएं, खुद को पहचाने और अपने लिए कुछ समय निकालें। हमारे पास अपने खुद के लिए सोचने विचारने का समय नहीं है जबकि आत्मसंवाद करना जरूरी है।
पहले हमें अपने आपको समझना होगा और उसके लिए समय निकालकर आत्म संवाद करना होगा याने अपने स्वयं से बातचीत करना होगी। हम सब कुछ करते हैं सबसे बात करते हैं लेकिन अपने अंतर्मन से बात नहीं करते जबकि समय-समय पर आत्म-साक्षात्कार भी करते रहना चाहिए ताकि हमें अपनी कमजोरियों और अच्छाइयों का पता चल सके। सामने वाले की आलोचना करने और उसकी कमजोरियां निकालने की जगह हम अपनी कमजोरियां को पहचानें, अपनी खामियां देखें उन्हें दूर करें। क्योंकि हमारी जिम्मेदारी हमें खुद लेना होगी दूसरों को सुधारने का ठेका लेने के स्थान पर यदि हम अपने आप में सुधार लाएंगे तो धीरे-धीरे सब में निखार आएगा बशर्ते की आत्म-अवलोकन इस साफगोई से करें कि जो भी कमजोरियां हैं उन्हें दूर करने का संकल्प भी साथ में करते हुए उस पर अमल भी करें। सचाई चाहें कितनी भी विद्रूप क्यों ना हो उससे आंख ना चुराएं बल्कि उसका मुकाबला करने का साहस अपने मन मे पैदा करें। आवश्यकता इस बात की है कि अपने अंतर्मन में एक दीया जरूर जलाएं। साल दर साल हम दीपावली मनाते हैं लेकिन दीपावली जाने क्यों हमेशा खास रहती है। बचपन से अभी तक हर दीपावली पर कुछ ना कुछ ऐसे सामाजिक और धार्मिक विषय अनायास ही उभर कर सामने आते हैं, जिससे हर दीपावली एक बेहद संवेदनशील और प्रेरणास्पद अवसर बन जाती है। दीपावली ने हमारी भारतीय जीवन पद्धति को बेहद गहरे तक नजदीक से प्रभावित किया है या यह कहें कि वह भारतीय जीवन पद्धति की धुरी है तो भी यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि दीपावली धार्मिक रूप से मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम से जुड़ी हुई है। मर्यादाओं को अंगीकार करना हर मनुष्य का पहला कर्तव्य, धर्म और उत्तरदायित्व है। क्योंकि स्वयं मर्यादा में रहना ही दूसरों की स्वतंत्रता को सुरक्षित करता है। कलयुग में मर्यादाओं को तार-तार करने में संकोच नहीं होता है और अपने अंतर्मन में दीया जलाकर इस प्रकार की बुराइयों के अंधकार को मिटाकर मर्यादाओं का पालन करने का संकल्प हमें लेना होगा।
यह बात हमारे जेहन में हमेशा रहना चाहिए की रावण ने भी अपनी मर्यादा को लांघा था इसलिए मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने उस रावण को मर्यादित रहना सिखाया। मर्यादा का यह पाठ हमें दीपावली पर ही मिलता है। मर्यादा केवल आपकी सीमाओं को ही रेखांकित नहीं करती बल्कि दूसरों की गरिमा, निजता और स्वतंत्रता को भी रेखांकित करती है। दीपावली एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है जिसके सानिध्य में आकर मित्र तो मित्र दुश्मन भी पूजनीय हो जाता है और युग-युगांतर तक उसकी कीर्ति भी जनजीवन में जीवंत रहती है। चाहे बाली हो चाहे सुग्रीव, विभीषण हो, रावण हो हर व्यक्ति भगवान श्रीराम के कारण अमर हो गया। दीपावली चरित्र को भी रेखांकित करती है और सानिध्य को भी प्रकट करती है कि कैसा चरित्र होना चाहिए और कैसा सानिध्य होना चाहिए यह भी सिखाती है। दीपावली हमें इस बात का अवसर देती है कि हम अपने आपको एक बेहतर इंसान के तौर पर ‘पुनर्स्थापित’ करें। मैं यहां पर पुनर्स्थापित शब्द की व्याख्या जरूर करना चाहूंगा क्योंकि व्यक्ति एक जीवंत नदी की तरह है जो सतत प्रवाहमान रहता है। उसके तटों पर मिट्टी की मानिंद कई तरह की मिलावट, गंदगी और दूरगामी दोष शामिल होते रहते हैं। ऐसी स्थिति में दिवाली हर साल उसे इस बात का अवसर देती है कि वह अपने इन दोषों को दूर कर खत्म कर सके और उनसे लड़ने का जज्बा पैदा करें ताकि अपने आपको ज्यादा बेहतर और परिष्कृत इंसान बना सके। स्वयं को परिष्कृत बनाने की प्रक्रिया जीवन यात्रा में सतत चलते रहना चाहिए क्योंकि बदलाव आते रहते हैं और यही जीवन का यथार्थ है तथा अपने आपको परिष्कृत करने की कोशिश किसी भी उम्र में की जा सकती है, इसके लिए उम्र का कोई बंधन भी नहीं होता है। जब जागे तभी सवेरा मानकर इस काम को उम्र के किसी पायदान पर करने के लिए भिड़ जाना चाहिए जाना चाहिए। दीपावली एक महान अवसर है और इस बात का प्रतीक है कि हम समग्र विश्व को अपने बेहतर चरित्र से शुरू करके उसे भी बेहतर बना सकें ।
त्योहारों की सार्थकता तभी है जब जन से जुड़े मन और पूरे उत्साह तथा आनंद से उसको मनाने में खो जाएं। आज से कुछ वर्ष पहले तक त्योहारों को मनाने का अर्थ यही होता था कि परिजनों और सहोदरों के साथ मिलकर ईश आराधना करें पर अब वह सब समय के साथ बदल रहा है। त्योहारों के स्वरूप भी उस बदलाव से अछूते नहीं है देखते-देखते ही वह भी बदलते जा रहे हैं। संचार क्रांति के युग में जो बदलाव आए हैं उसके अनुसार दीपावली पर अंबुजा की आराधना के लिए चाहे श्रीयंत्र हो या कुबेर की कृपा हेतु मंत्र अब इन सबके लिए यूट्यूब वीडियो का उपयोग होने लगा है। यहां तक की विदेशों में जो भारतीय मूल के लोग निवास करते हैं वह दीपावली के दिन पूजन विधि का वीडियो लगाकर उसके अनुसार पूजा अर्चना करते हैं। पंडित जी को बुलाने की जगह यह काम वीडियो के द्वारा हो जाता है। जैसे आजकल कोरोना संक्रमण के चलते वर्चुअल मीटिंग होने और उद्घाटन तथा अन्य समारोह होने लगे हैं, ऐसे ही पूजा-पाठ भी किया जाने लगा है। बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद उनसे जाकर मिल कर चरण छूकर लिया जाता था पर अब व्हाट्सएप संदेश के द्वारा यह सब हो जाता है। हर चीज का शॉर्टकट ढूंढ लिया गया है लेकिन त्यौहार का असली मजा वही है जो परस्पर मिलजुल कर हंसी खुशी के साथ मिल बैठकर मनाया जाए और आशीर्वाद लिया जाए। इस बार जरूर यह मजबूरी हो गई है कि कोरोना गाइडलाइन के चलते सतर्कता बरतना जरूरी है , दो गज दूरी है जरूरी इसका ध्यान रखते हुए मास्क भी पहनना चाहिए क्योंकि विशेषज्ञों की नजर में अब एक और इस महामारी का दौर आने वाला है इसलिए सावधानी में ही समझदारी है। वास्तव में त्यौहार का मतलब अपनों का साथ और आपसी रिश्तो में सौहार्द वा शहद जैसी मिठास है इसलिए दीपावली के अवसर पर आपसी रिश्तों की डोर और अधिक मजबूत करना चाहिए पर पूरी सावधानी और सतर्कता के साथ। दीपावली सामूहिकता का ही पारंपरिक स्वरूप है तथा आधुनिक बदलाव के साथ इस परंपरा को भी आगे बढ़ाना चाहिए। आजकल दिखावा और औपचारिकता का निर्वहन बढ़ रहा है पर आत्मिकता और उत्साह में शनै :शनै: कमी आ रही है उस कमी को दूर कर उत्साह और उमंग तथा आत्मीयता से त्यौहार मनाना चाहिए ताकि हम हम अपने अतीत से जुड़े रहें और सकारात्मक बदलाव को अंगीकार करते रहें।
दीपोत्सव के पर्व दीपावली की अनंत शुभकामनाएं और हार्दिक बधाई इस उम्मीद के साथ कि अपने अंतर्मन में आस्था विश्वास और सुकून का एक दिया हम अवश्य जलाएंगे।

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