सुमावली में सत्ता की डगर पर ऐदल के सामने ‘अजब’ ब्रेकर

– अरुण पटेल

मुरैना जिले के सुमावली विधानसभा क्षेत्र में दिलचस्प चुनावी मुकाबला भाजपा के ऐदल सिंह कंसाना और कांग्रेस के अजब सिंह कुशवाहा के बीच हो रहा है। यह मुकाबला इस मायने दिलचस्प है कि दोनों उम्मीदवार इस बार बदले हुए चुनाव चिन्ह के साथ मैदान में उतरे हैं। ऐदल सिंह कंसाना उपचुनाव में भाजपा उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं तो वहीं 2018 के चुनाव में उनसे हारे भाजपा के अजब सिंह कुशवाहा कांग्रेस उम्मीदवार हैं। यह भी एक संयोग है कि बसपा और भाजपा से चुनाव लड़ने के बाद अब कुशवाहा कांग्रेस से लड़ रहे हैं तो वहीं कंसाना कांग्रेस और बसपा से विधायक रह चुके हैं और अब भाजपा से उम्मीदवार है। 1993 से लेकर पिछले 6 विधानसभा चुनाव का क्षेत्र का रिकॉर्ड देखा जाए तो कंसाना ने सभी छह चुनाव लड़े हैं। इस प्रकार कंसाना चुनावी राजनीति के माहिर खिलाड़ी माने जा सकते हैं। इसमें से कंसाना ने दो बसपा और दो चुनाव कांग्रेस से जीते है तथा एक-एक चुनाव बसपा और कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में हारा है। कांग्रेसी कुशवाहा बसपा और भाजपा को मिला कर तीन चुनाव हार चुके हैं तथा देखने वाली बातें यही होंगी कि चौथी बार अपनी कांग्रेस से किस्मत आजमा रहे कुशवाहा भाजपा के कंसाना के सामने टिक पाते हैं या नहीं क्योंकि वह तीनों चुनाव बड़े अंतर से हारे हैं। वैसे चुनावों में चमत्कारों की हमेशा गुंजाइश बनी रहती है और यदि वैसा होता है तभी कांग्रेस अपनी यह सीट बचा पाएगी। वैसे यहां पर बसपा की भी मजबूत पकड़ रही है और उसने राहुल दंडोतिया को चुनाव मैदान में उतारा है तथा वह चुनाव परिणाम को प्रभावित कर सकते हैं।

 

 

कंसाना कांग्रेस पार्टी और विधानसभा से इस्तीफा देकर भाजपा में शामिल हुए हैं इसलिए कांग्रेस यहां पर बिकाऊ और टिकाऊ को मुद्दा उठा रही है। वैसे यहां पर मुकाबला दो दलबदलुओं के बीच हो रहा है। वैसे तो 9 उम्मीदवार अपनी किस्मत आजमा रहे हैं लेकिन असल में मुकाबला भाजपा, कांग्रेस, बसपा के कारण त्रिकोणी हो रहा है। चंबल अंचल में बीहड़ों की तरह ही जातियां भी ताकतवर है और चुनाव परिणामों को प्रभावित करती हैं। इस क्षेत्र में पिछले 30 साल के बाद पहली बार हुआ है कि कोई ठाकुर उम्मीदवार नहीं है इसलिए भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दल ठाकुर मतदाताओं को अपने पाले में लाने के लिए काफी मशक्कत कर रहे हैं।

 

 

यहां ब्राह्मण मतदाताओं की भूमिका निर्णायक हो सकती है क्योंकि पिछले 45 सालों में सभी प्रमुख राजनीतिक दलों ने ब्राह्मण उम्मीदवार मैदान में नहीं उतारा। 1977 के विधानसभा चुनाव में जनता पार्टी के घटक दल जनसंघ की टिकट पर जाहर सिंह शर्मा चुनाव जीते थे। उसके बाद से अब इस बार बसपा ने राहुल दंडोतिया को टिकट दी है देखते हैं ब्राह्मण होने के कारण वह क्या भाजपा और कांग्रेस के बीच से अपनी जीत की राह बना पाएंगे या नहीं ? वैसे कंसाना के बसपा छोड़कर कांग्रेस में आने के बाद से बसपा की पकड़ कुछ कमजोर हो गई है और ब्राह्मण उम्मीदवार को चुनाव मैदान में उतार कर क्या बसपा फिर से मजबूत हो पाएगी यह मतदाताओं के जनादेश ही पता चल सकेगा। हालांकि क्षेत्र में बसपा ने दो बार जीत का स्वाद चखा है परंतु दोनों ही बार कंसाना ही विधायक बने हैं। फिलहाल तो कंसाना और कुशवाहा के बीच ही कड़ी चुनावी लड़ाई हो रही है। बसपा के राहुल किसी एक की राह रोकने में मददगार होंगे या दोनों की राह रोक कर खुद इस सीट पर बसपा की जीत दर्ज कर पार्टी की उम्मीदों पर खरे उतर पाएंगे ये भी देखने की बात होगी?

सुमावली में जातियां चुनाव परिणामों को प्रभावित करती रही है और वह निर्णायक भूमिका में रहती हैं इसलिए यदि देखा जाए तो सुमावली में 30 हजार ब्राह्मण, 28 हजार ठाकुर, 26 हजार गुर्जर, 25 हजार कुशवाहा समाज के वोटर हैं। इसके साथ ही अन्य जातियों में 12 हजार किरार, 10 हजार मुस्लिम, 9 हजार बघेल, 8 हजार कोरी और 24 हजार जाटव मतदाता है। इनके अलावा अन्य कुछ समाजों के भी लगभग 40 हजार मतदाता हैं।

 

 

 

और अंत में…

 

 

1993 से से लेकर 2018 तक यहां पर 6 चुनाव हुए हैं और उनके रुझान को देखा जाए तो कांग्रेस-भाजपा-बसपा ने 2-2 चुनाव जीते हैं। इस प्रकार यहां के मतदाताओं ने सबको समान अवसर दिया है और मतगणना से ही पता चल सकेगा कि सातवीं बार वह किसे विधानसभा पहुंचाते हैं। 1993 के चुनाव में बसपा के ऐदल सिंह कंसाना ने कांग्रेस के चिम्मन सिंह को 8422 मतों के अंतर से हराया था। भाजपा के योगेंद्र सिंह राणा को 8422 मत मिले और वह चौथे पायदान पर आए। 1998 में बसपा के कंसाना ने ही भाजपा के गजराज सिंह सिकरवार को 4913 मतों से हराया और कांग्रेस के राकेश यादव तीसरे पायदान पर रहे। 2003 के चुनाव में भाजपा के गजराज सिंह सिकरवार ने कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में कंसाना को 12395 मतों से शिकस्त दी लेकिन 2008 में कांग्रेस के कंसाना ने बसपा के अजब सिंह कुशवाहा को 9651 मतों से पराजित कर दिया। भाजपा के गजराज सिंह सिकरवार 2008 में तीसरी पायदान पर रहे। 2013 के चुनाव में भाजपा के सत्यपाल सिंह ने बसपा के अजब सिंह कुशवाहा को 14706 मतों के अंतर से पराजित कर दिया। 2018 के चुनाव में कुशवाहा भाजपा उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़े और उन्हें कांग्रेस के कंसाना ने 13313 मतों से चुनाव हरा दिया। अब कंसाना और कुशवाहा पार्टियों की अदला बदली कर चुनावी समर में डटे हुए हैं और यह तो 10 नवंबर को ही पता चलेगा कि मतदाताओं को किसका दलबदल पसंद आया या वह दोनों को नकार कर तीसरे के पक्ष में अपना फैसला सुनाएगा?

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