उपचुनाव: अम्बाह के चुनावी दंगल में होगा त्रिकोणीय मुकाबला

– अरुण पटेल

 

मुरैना जिले का अम्बाह विधानसभा क्षेत्र अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है और 2020 के उपचुनाव में भाजपा, कांग्रेस और बसपा के त्रिकोणीय मुकाबले का मैदान सज रहा है। त्रिकोणीय मुकाबले में पूर्व कांग्रेसी विधायक और अब भाजपाई हुए कमलेश जाटव का मुकाबला कांग्रेस के सत्यप्रकाश सखवार और बसपा के भानु प्रताप सिंह सखवार से होने जा रहा है। कमलेश जाटव ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ भाजपा में गए और दल बदल कर अब उनके भाजपा की टिकट पर चुनाव मैदान में उतरने की संभावना है, तो वहीं कांग्रेस उम्मीदवार सत्य प्रकाश सखवार बसपा से विधायक चुने जा चुके हैं और अब कांग्रेस के चुनाव चिन्ह पर मैदान में होंगे। बसपा ने अपना प्रत्याशी भानु प्रताप सिंह सखवार को बनाया है। तीन उम्मीदवारों के बीच उपचुनाव में कांटेदार मुकाबला होने की संभावना है। 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के कमलेश जाटव ने चुनाव जीता तथा निर्दलीय नेहा किन्नर ने भाजपा उम्मीदवार को तीसरे स्थान पर पहुंचा दिया। यहां बसपा का असर भी अच्छा रहा है इसलिए उसकी भूमिका को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता और यदि नेहा किन्नर फिर निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव मैदान में उतरती हैं तो मुकाबला और अधिक दिलचस्प हो जाएगा, क्योंकि नेहा 2018 के विधानसभा चुनाव में अपना जलवा दिखा चुकी हैं।
प्रदेश की राजनीति में जबसे बहुजन समाज पार्टी मजबूत हुई है तबसे उसने इस अंचल में कांग्रेस की वोटों में काफी सेंधमारी की। किंतु धीरे-धीरे बसपा कमजोर होती जा रही है और उसका प्रभाव बढ़ता है या कम होता है यह उपचुनावों के नतीजों से ही पता चलेगा। भाजपा को भी दलित वोट मिलते रहे हैं लेकिन 2018 के विधानसभा चुनावों में अधिकांश दलितों ने कांग्रेस को वोट दिया और अधिकांश सीटों पर उसे ही सफलता मिली। उपचुनाव में कांग्रेस के सत्य प्रकाश के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही होगी कि वे 2018 चुनाव में कांग्रेस को दलितों के जो थोकबंद वोट मिले थे उन्हें कांग्रेस से जोड़े रखें और बसपा में रहने के कारण उनके जो समर्थक मतदाता हैं उन्हें कांग्रेस के पाले में ला सकें। भाजपा उम्मीदवार कमलेश के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही होगी कि भाजपा से जो दलित मतदाता नाराज हो गए उन्हें वापस भाजपा के साथ जोड़ें और कांग्रेस प्रत्याशी होने के कारण दलितों ने जो उन्हें वोट दिए थे उन्हें भाजपा प्रत्याशी के रूप में वोट देने को राजी करें।
बसपा की चुनावी राजनीति अनुसूचित जाति के मतदाताओं पर केंद्रित होती है और सामान्य निर्वाचन क्षेत्रों में इस वर्ग का थोकबंद वोट निर्णायक स्थिति में आ जाता है। उल्लेखनीय है कि 2018 के विधानसभा चुनाव में अनुसूचित वर्ग के मतदाताओं ने योजनाबद्ध तरीके से कांग्रेस के पक्ष में मतदान किया था और इसका ही कारण था कि डेढ़ दशक बाद प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी। चुनाव से पहले ग्वालियर चंबल- संभाग में जो दलित आंदोलन हुआ था उसने आग में घी डालने का काम किया। मतदाताओं के उस मानस को बदलना भी भाजपा की चुनावी रणनीति का एक मुख्य बिंदु है। उसे उम्मीद है कि पूर्व मंत्री लालसिंह आर्य को अनुसूचित जाति मोर्चा का राष्ट्रीय प्रमुख बनाना इस दिशा में काफी मददगार साबित होगा। लालसिंह आर्य जितनी अधिक सेंध दलित मतदाताओं में लगा पाएंगे उतनी ही भाजपा उम्मीदवार की स्थिति मजबूत होती जाएगी। कमलेश के साथ एक समस्या यह भी है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया के करीबी लोग भी जाटव को पसंद नहीं करते हैं और उन्हें अविश्‍वसनीय मानते हैं क्योंकि वह सिंधिया के खास चहेते मंत्री तुलसी सिलावट पर कमलनाथ सरकार में कुछ गंभीर आरोप लगा चुके हैं।
2018 के चुनाव में जीत के बाद विधायक बनते ही कमलेश ने अपने विधानसभा क्षेत्र में सैकड़ों सवर्णों के खिलाफ दलित उत्पीड़न के मामले दर्ज कराए थे और अब यही उनके गले की हड्डी बनता जा रहा है। इस कारण उनसे जो लोग नाराज पहले से ही थे और दल बदलने के बाद उनकी नाराजगी कुछ और बढ़ गई। 2018 के आमचुनाव में भाजपा तीसरे नंबर पर पहुंच गई थी। उसके उम्मीदवार गब्बर सखवार को 29715 मत मिले थे और वह तीसरे नंबर पर थे तथा रेखा किन्नर निर्दलीय 29796 मत पाकर दूसरे स्थान पर रहीं। इससे एक संकेत यह भी मिलता है कि इस क्षेत्र के मतदाता भाजपा को नहीं चुनना चाहते थे इस कारण प्रयोग के तौर पर रेखा किन्नर को वोट दे दिए। भाजपा के कमलेश को पहले उन रूठे हुओं को मनाना पड़ेगा जो मुकदमा दर्ज कराए जाने के कारण उनसे नाराज हैं और दूसरे जो खाटी भाजपाई भी नाराज हैं उन्हे समझा कर साथ लाना होगा। जहां तक कांग्रेस उम्मीदवार सत्य प्रकाश का सवाल है वह बसपा के विधायक भी रह चुके हैं और प्रदेश अध्यक्ष भी रहे हैं। दो विधानसभा चुनाव उन्होंने बसपा टिकट पर लड़े हैं और अब तीसरा चुनाव कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में लड़ रहे हैं। क्षेत्र में वह एक चर्चित चेहरा है और उन्हें कमलेश से मजबूत उम्मीदवार मानते हुए कमलनाथ के सर्वे ने उन्हें टिकट दिलाई है।
और अंत में….
1998 से लेकर अभी तक इस क्षेत्र में 5 चुनाव हुए हैं और उसमें से दो-दो भाजपा और कांग्रेस ने जीते हैं, तो एक चुनाव बसपा ने जीता है। 2013 के विधानसभा चुनाव में सत्य प्रकाश ने बसपा उम्मीदवार के रूप में चुनाव जीता था और अब वह कांग्रेस उम्मीदवार के रूप भाजपा के कमलेश को उपचुनाव में चुनौती देंगे। 1998 के चुनाव में भाजपा के बंसीलाल जाटव ने बसपा के अमर सिंह सखवार को 4630 मतों से हराया था। फिर से एक बार 2003 के चुनाव में बंसी लाल जाटव ने ही कांग्रेस के किशोरा को 8461मतों से पराजित किया। 2008 के चुनाव में कांग्रेस के कमलेश जाटव ने बसपा के सत्य प्रकाश को 3927 से चुनाव में हरा दिया। 2013 के चुनाव में बसपा के सत्य प्रकाश ने भाजपा के बंसीलाल जाटव को 11228 मतों से पराजित किया। 2018 के चुनाव में एक बार फिर कमलेश पर कांग्रेस ने दांव लगाया और वह 7547 वोटों से निर्दलीय नेहा किन्नर को पराजित कर चुनाव जीतने में सफल रहे। उपचुनाव में कमलेश त्रिकोणीय मुकाबले में घिरे हुए हैं। देखने वाली बात यही होगी कि उनके दलबदल पर यहां के मतदाता अपने समर्थन की मोहर लगाते हैं या नहीं।

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