– अरुण पटेल
अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित भिंड जिले के गोहद विधानसभा क्षेत्र में जो त्रिकोणीय मुकाबला भाजपा, कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी के बीच होने जा रहा है उसमें दिलचस्पी का सवाल मात्र इतना है कि कांग्रेस से भाजपा में गए रणवीर जाटव, कांग्रेस के मेवाराम जाटव और बसपा के जसवंत पटवारी में से आखिर लॉटरी किसकी खुलेगी याने विधानसभा में पहुंचने में कौन सफल होगा। कांग्रेसी मेवाराम जाटव और बसपा के पटवारी भाजपा उम्मीदवार रणवीर जाटव की तगड़ी घेराबंदी करने में एड़ी-चोटी का जोर लगाएंगे। अपनी सीट बचाने के लिए रणवीर को काफी मशक्कत करना पड़ेगी। इसका कारण है कि रणवीर वैसे तो ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ भाजपा में आए लेकिन उनकी गिनती उन विधायकों में होती है जिन्होंने सिंधिया के भाजपा में जाने से काफी पहले ही भाजपा में जाने की तैयारी कर ली थी। उन्हें उम्मीद थी कि शिवराज सिंह चौहान उन्हें मंत्री जरूर बनाएंगे लेकिन ओ पी एस भदौरिया मंत्री बन गए, क्योंकि वह शुरू से ही सिंधिया के कट्टर समर्थक रहे हैं। शिवराज मंत्रिमंडल में शामिल ऐंदल सिंह कंसाना, बिसाहूलाल सिंह और हरदीप सिंह डंग सिंधिया कोटे से मंत्री नहीं बने थे। उन्हें पहले किए गए वायदे के अनुसार पद मिला। रणवीर की मंत्री बनते समय लॉटरी नहीं लग पाई। शायद उसका एक कारण यही भी था कमलनाथ सरकार के स्वास्थ्य मंत्री तुलसीराम सिलावट जो सिंधिया के काफी करीबी हैं उन पर काम ना करने को लेकर कुछ आरोप लगाए थे। देखने वाली बात यही होगी कि चुनाव नतीजों में किस्मत उनका साथ देती है या नहीं और इस बार क्या उनकी लॉटरी खुल पाएगी?
गोहद क्षेत्र की पुरानी तासीर देखी जाए तो यहां अभी तक जितने विधानसभा चुनाव हुए हैं उनमें से 8 बार भाजपा ने बाजी मारी, 5 बार कांग्रेस सफल रही तो एक बार बसपा ने भी जीत दर्ज कराई। जाटव मतदाताओं की संख्या को देखते हुए कांग्रेस ने भी जाटव के मुकाबले जाटव को ही अपना उम्मीदवार बनाया है, जबकि बसपा ने जसवंत पटवारी पर दांव लगाया है जो कि अपनी सरकारी नौकरी सेअलविदा होकर राजनीति के मैदान में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। रणवीर की जीत सुनिश्चित करने के लिए भाजपा ने विनोद गोटिया और राजेश सोलंकी को प्रभारी बनाया है तो वहीं कांग्रेस के मेवाराम को असली सहारा वरिष्ठ मंत्री रहे कांग्रेस के दिग्गज विधायक डॉ.गोविंद सिंह का ही है क्योंकि वह इस जिले में अच्छा- खासा प्रभाव रखते हैं। भाजपा के रणवीर की सफलता में सहकारिता मंत्री अरविंद भदौरिया की खास भूमिका हो सकती है, क्योंकि उनका निर्वाचन क्षेत्र अटेर भी इसी जिले में आता है और उनका भी अच्छा खासा प्रभाव है। इस प्रकार भाजपा की जीत का दारोमदार जहां गृह मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा और सहकारिता मंत्री भदौरिया पर होगा तो वहीं कांग्रेस में इस भूमिका में पूर्व सहकारिता मंत्री डॉ. गोविंद सिंह होंगे। राजनीतिक दलों का सारा ताना-बाना जातीय समीकरणों के इर्द-गिर्द बुना जा रहा है। गोहद में तोमर ठाकुरों का सबसे अधिक प्रभाव है लेकिन जैन और मुस्लिम समाज के मतदाता भी चुनाव परिणामों को प्रभावित करते रहे हैं। ब्राह्मण और जाट मतदाताओं की भी अच्छी खासी संख्या है। इसीलिए राजनीतिक दल जातिगत समीकरण बैठाने की मशक्कत कर रहे हैं।
बसपा और कांग्रेस दोनों ही लोकतंत्र बचाने के नाम पर चुनावी समर में कूद पड़े हैं लेकिन दोनों के नारों में अंतर है। बसपा ने लोकतंत्र बचाने के नाम पर कांग्रेस व भाजपा दोनों से ही दूरी बनाने का नारा दिया है तो वहीं अन्य क्षेत्रों की तरह 15 माह में उपचुनाव की नौबत लाने के कारण कांग्रेस के गद्दार और वफादार नारे की अनुगूंज सुनाई पड़ने लगी है। भाजपा ने सामाजिक समीकरणों को ध्यान में रखकर मतदान केंद्रों पर अपनी जमावट कर ली है। यदि गोहद का 1998 से 2018 तक के चुनावों का रिकॉर्ड देखा जाए तो 6 चुनाव हुए जिनमें एक उपचुनाव भी शामिल हैं, तीन कांग्रेस ने और तीन भाजपा ने जीते हैं। भाजपा टिकट पर जीतने वाले उम्मीदवार पूर्व मंत्री लालसिंह आर्य को कांग्रेस टिकट पर एक चुनाव रणवीर के पिता माखनलाल जाटव ने और दो चुनावों में रणवीर ने पराजित किया है। अब रणवीर का मुकाबला कांग्रेस के मेवाराम से हो रहा है जिन्हें 2013 के चुनाव में भाजपा के लालसिंह आर्य ने 19874 मतों के भारी अंतर से पराजित किया था। इस बार हालात बदले हुए हैं, रणवीर भाजपा के चुनाव चिन्ह कमल पर चुनाव लड़ रहे हैं जबकि मेवाराम के पास कांग्रेस का पंजा चुनाव निशान रहेगा। 1998 के चुनाव में भाजपा के लालसिंह आर्य ने बसपा के चतुरीलाल बारहदिया को 4338 मतों से हराया लेकिन 2003 के चुनाव में आर्य ने कांग्रेस के श्रीराम को 10649 मतों के अंतर से हराया। 2008 के चुनाव में कांग्रेस के माखनलाल जाटव ने लालसिंह आर्य को 1553 मतों से पटकनी दी। 2009 के लोकसभा चुनाव के समय रणवीर के पिता माखनलाल की हत्या हो गई और उसके छींटे लालसिंह आर्य पर भी आए। वह न्यायालय से बरी हो गए। जिस तेज नारायण शुक्ला पर हत्या का संदेह था उसकी मौत संदिग्ध परिस्थितियों में हो गई थी। पिता की मृत्यु के बाद हुए उपचुनाव में रणवीर ने भाजपा के मास्टर एस जाटव को 22571 मतों के भारी अंतर से पराजित कर दिया। 2013 के चुनाव में कांग्रेस ने रणवीर की जगह मेवाराम को उम्मीदवार बनाया और भाजपा के लालसिंह आर्य ने उन्हें बुरी तरह से पराजित कर दिया। 2018 के चुनाव में कांग्रेस ने रणवीर पर भरोसा जताया और उन्होंने लालसिंह आर्य को 23989 मतों के भारी अंतर से शिकस्त दी।
और अंत में…………..
उपचुनाव में रणवीर जाटव को फिर से विधानसभा पहुंचाने के लिए भाजपा ने संगठनात्मक स्तर पर पूरी जमावट कर ली है। जाटव को प्रदेश के गृह मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा और सहकारिता मंत्री अरविंद भदौरिया का पूरा- पूरा समर्थन मिल रहा है। कांग्रेस का चुनावी मुद्दा बिकाऊ नहीं टिकाऊ चाहिए है तो डॉ. मिश्रा ने जून के अंतिम सप्ताह में भाजपा ने विजय संकल्प सभा की उसमें कसम खाकर कहा कि किसी भी विधायक को एक पैसा भी नहीं दिया गया है और कांग्रेस द्वारा दुष्प्रचार किया जा रहा है। रणवीर के भाजपा में आने से नाराज नेताओं को मनाने में डॉ. मिश्रा ही लगे हुए हैं।