देश की राजधानी दिल्ली एक बार फिर आतंकी धमाके से दहल उठी। लाल किला के नजदीक मेट्रो स्टेशन के पास भीड़भाड़ वाले इलाके में कार में हुए धमाके में 12 लोगों की मौत हो गई। जबकि 28 अन्य लोग घायल हो गए हैं। पुलिस ने पुष्टि की है कि जिस आई- 20 कार में धमाका हुआ है वह सुनियोजित आतंकी साजिश का नतीजा था। मौके से बरामद मलबे में आईईडी के अवशेष मिले हैं। खास बात यह है कि जिस जगह पर धमाका हुआ है वहां न तो गड्ढा हुआ और न ही मृतकों के शरीर काले पड़े हैं। एनआईए, दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल और फॉरेंसिक टीमें मिलकर इस घटना की जांच कर रही है। साथ ही सुरक्षा एजेंसियां आतंकी मॉड्यूल की कडिय़ों को खंगालने में जुटी है। इस आतंकी हमले की जितनी निंदा की जाए वह कम है। पिछले कई दशकों से भारत पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद का दंश झेलता आ रहा है। वैसे दिल्ली में यह कोई पहली घटना नहीं है। इससे पहले 2011 में हाई कोर्ट के बाहर धमाके में नौ लोगों की मौत हुई थी। जबकि 13 सितंबर 2008 को पांच सिलसिलेवार धमाके में 25 लोगों की जानें गई थीं। इसी साल 22 अप्रैल 2025 को जम्मू कश्मीर के पर्यटन स्थल पहलगाम में हुए आतंकी हमले के घाव भी अभी भरे नहीं है कि आतंकियों ने देश की राजधानी को निशाना बनाया। पुलवामा जैसे आतंकी हमलों को भी देश ने देखा है। पुलवामा में 2019 में आतंकियों ने इसी तरह एक वाहन में विस्फोटक भरकर धमाका किया था। जिसमें 40 जवान शहीद हो गए थे। दिल्ली में भी इसी तर्ज पर आतंकियों ने धमाका किया है। इस हमले से एक बार फिर सुरक्षा एजेंसियों की चूक सामने आ गई है। हमले के पूर्व की सूचना का ना होना और संदिग्ध गतिविधियों की पहचान ना कर पाना ऐसा दर्शाता है कि हमारी सुरक्षा व्यवस्था अभी सतही सफलता से ऊपर नहीं उठ सकी है। जब सरकार यह कहती है कि आतंकवाद अपने अंतिम दौर में है तो क्या इसका मतलब यह है कि हम पहले से अधिक ढिलाई बरतने लगे हैं। क्या यह आत्ममुग्धता नहीं है कि हम केवल आंकड़ों और बयानों के सहारे अपनी पीठ थपथपा रहे हैं। जबकि जमीन पर आतंकवाद अब भी जिंदा है। हमारी सबसे बड़ी विफलता है कि हम हर आतंकी हमले के बाद सक्रिय होते हैं। पहले चुप रहते हैं। फिर हमला होता है। उसके बाद बैठकें, हाई लेवल इंटेलिजेंस रिपोर्ट्स यानी यह सब ढर्रा बन गया है। दरअसल सुरक्षा को केवल सेना और पुलिस की जिम्मेदारी मान लेना एक बड़ी भूल है। इसके लिए एक समग्र दृष्टिकोण अपनाना होगा। जिसमें खुफिया प्रणाली की जवाबदेही, स्थानीय नागरिकों की भागीदारी, राजनीतिक संवाद और डिजिटल निगरानी तंत्र की मजबूती शामिल हो। दरअसल, आतंकवादियों का उद्देश्य हमला कर देश में अशांति फैलाना, सांप्रदायिक तनाव बढ़ाना और सरकार तथा जनता के बीच अविश्वास पैदा करना होता है। लेकिन केंद्र सरकार को अलर्ट होना चाहिए। फिलहाल, दिल्ली की घटना के बाद जिस तत्परता से सरकार ने कार्रवाई की है उससे साफ है कि वह इस घटना को गंभीरता से ले रही है। ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि सरकार कूटनीतिक और रणनीतिक दोनों तरीकों से जवाब देने की तैयारी में है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भूटान में कहा कि हमारी एजेंसियां इस षड्यंत्र की तह तक जाएंगी। इसके पीछे के षड्यंत्रकारियों को बख्शा नहीं जाएगा। वहीं, गृहमंत्री अमित शाह ने कहा है कि हम सभी संभावनाओं पर विचार कर रहे हैं और इसको ध्यान में रखते हुए पूरी जांच करेंगे तथा परिणाम जनता के सामने प्रस्तुत करेंगे। बहरहाल, दिल्ली की घटना केवल आतंकी घटना नहीं है बल्कि देश की एकता, अखंडता और संप्रभुता पर एक संगठित साजिश है। ऐसे समय में जब कुछ शक्तियां देश में डर और अविश्वास का माहौल बनाना चाहती है तो सरकार को चाहिए कि वह केवल प्रतिक्रिया न दे बल्कि परिणाम सुनिश्चित करे।
देश की एकता, अखंडता और संप्रभुता पर चोट
