छत्तीसगढ़ सहित देश के कई हिस्सों में फैल चुका नक्सलवाद आज अपनी अंतिम सांसें गिन रहा है। सरकार ने मार्च 2026 तक देश को नक्सलवाद से मुक्त करने का लक्ष्य रखा है। इस लक्ष्य को हासिल करने में सरकार सफल होती है या नहीं यह भविष्य में पता चलेगा, लेकिन जिस रफ्तार से नक्सली आत्मसमर्पण कर रहे हैं, वह इस दिशा में एक बड़ा कदम माना जा सकता है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक बीते एक दशक में नक्सली हिंसा में 53 प्रतिशत की कमी आई है और अब नक्सल प्रभावित जिलों की संख्या भी 126 से घटकर सिर्फ 18 रह गई है। नक्सली हिंसा में मरने वाले आम नागरिकों की संख्या में भी 70 प्रतिशत की गिरावट आई है। सरकार के नक्सलियों पर कसते शिकंजे का ही असर है कि इसी महीने अक्टूबर में ही 1225 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया और इस साल अब तक 270 नक्सली मारे गए है। नक्सल हिंसा की रोकथाम के लिए सरकार ने जो सबसे जरूरी कदम उठाया उसमें नक्सल प्रभावित इलाकों में बुनियादी ढांचे का तेजी से विकास प्रमुख है। पिछले दस वर्षों में सरकार ने नक्सल प्रभावित इलाकों में 576 पुलिस स्टेशन बनाए। साथ ही पिछले छह वर्षों में 336 नए सिक्योरिटी कैंप बनाए गए। इसका असर ये हुआ कि नक्सल प्रभावित इलाकों से तेजी से नक्सलियों का प्रभाव कम हुआ और सुरक्षाबलों की पकड़ मजबूत हुई। बड़े पैमाने पर तकनीक का इस्तेमाल कर नक्सलियों की कमर तोड़ी। जहां तक छत्तीसगढ़ का सवाल है तो राज्य के बस्तर और सरगुजा संभाग के अलावा राजनांदगांव और गरियाबंद जिले भी इसकी चपेट में आ चुके थे। यह कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि नक्सलवाद छत्तीसगढ़ के लिए नासूर बन चुका था। लेकिन अब नक्सलवाद मात्र दक्षिण बस्तर तक सिमट गया है और यह सब संभव हुआ है केंद्र और राज्य सरकार की दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ ही नक्सल प्रभावित जिलों में विकास, विश्वास और पुनर्वास की संयुक्त रणनीति से। इससे न केवल क्षेत्र में बदलाव आया बल्कि स्थानीय लोगों का सरकार पर विश्वास बढ़ा। दूसरी ओर, सुरक्षा बलों का बढ़ता दबाव नक्सलियों के लिए “इधर कुआं उधर खाई” वाली स्थिति निर्मित हो गई। सरकार ने नक्सलियों को दो टूक चेतावनी दे दी है कि या तो वे आत्मसमर्पण करें या गोली खाने के लिए तैयार रहें, लिहाजा नक्सलियों ने धीरे-धीरे आत्मसमर्पण की नीति अपनाई और लोकतंत्र पर विश्वास जताते हुए हथियार डालने शुरू किए। इसी का नतीजा है कि कई बड़े नक्सली आज समाज की मुख्य धारा में वापस लौट चुके हैं जो एक सुखद संकेत है। छत्तीसगढ़ में आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों के लिए देश की सबसे बेहतर पुनर्वास नीति लागू की गई है, तीन साल तक प्रति माह दस हजार रुपये प्रोत्साहन राशि, कौशल विकास प्रशिक्षण, स्वरोजगार, नकद इनाम, कृषि या शहरी भूमि का आवंटन। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने स्पष्ट किया है कि अब बंदूक की जगह किताबों का स्थान है। “नियद नेल्लानार” योजना के तहत बस्तर के दूरदराज गांवों में सड़क, बिजली, शिक्षा, स्वास्थ्य, कार्ड, किसान क्रेडिट, प्रधानमंत्री आवास, मोबाइल टावर, वन अधिकार पट्टों जैसी सुविधाएं सुलभ कराई जा रही हैं। इसी तरह, नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में ग्राम पंचायत स्तर तक योजनाएं पहुंचाई जा रही हैं, स्कूल, डिजिटल साक्षरता, स्वास्थ्य शिविर सक्रिय किए गए हैं। इस बीच, आत्म समर्पण कर चुके नक्सलियों ने कहा है कि वह प्रशासन के सामने हथियार छोड़ रहे हैं। अन्याय और शोषण के खिलाफ लड़ाई जारी रहेगी। अब हम लोकतांत्रिक तरीके से लड़ाई लड़ेंगे। निश्चित रूप से नक्सलियों का यह कहना लोकतंत्र के प्रति उनके विश्वास को प्रदर्शित करता है। लोकतंत्र में सभी को अपनी बात रखने का अधिकार है, इसे कोई नहीं छीन सकता। नक्सली भी अपनी बात शांतिपूर्ण तरीके से रख सकते हैं। यह सच है कि हिंसा से अब तक ना किसी समस्या का समाधान हुआ है और ना ही होगा। नक्सली भी इसे समझ चुके हैं। यही वजह है कि लोकतंत्र के प्रति उनकी आस्था मजबूत हुई है। बहरहाल, देश अब नक्सलवाद के अंतिम दौर की ओर है। सुरक्षा, विकास, विश्वास और पुनर्वास के साथ जनता की सोच में बदलाव ने नक्सली नेतृत्व, कैडर और संरचना को लगातार कमजोर किया है। यदि यही गति बनी रही तो वह दिन दूर नहीं जब देश नक्सल मुक्त हो जाएगा। हिंसक विचारधारा से देश को मुक्ति दिलाना ही लोकतंत्र की सच्ची जीत होगी, वह लोकतंत्र, जिसने दशकों तक हिंसा, विद्रोह और आतंक से जूझते हुए आज विकास, शिक्षा और स्थायी शांति की दिशा में निर्णायक कदम बढ़ाया है।
नासूर नक्सलवाद पर नकेल
