बिहार चुनाव: राहुल की भी होगी अग्नि परीक्षा

बिहार में मतदाता सूचियों के विवादास्पद 3 माह के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के बाद सोमवार को चुनावी बिगुल बज गया। चुनाव आयोग ने विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान कर दिया है। इस बार चुनाव प्रक्रिया अब तक की सबसे छोटी होगी। 2020 के तीन चरणों, 2015 के पांच चरणों और 2010 के छह चरणों की तुलना में 2025 में केवल दो चरणों में ही वोटिंग पूरी हो जाएगी। मतदान 6 और 11 नवंबर को होगा, जबकि परिणाम 14 नवंबर को घोषित किए जाएंगे। यह चुनाव मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली जेडीयू के लिए राजनीतिक अग्निपरीक्षा भी साबित होगा। बदलती वफादारियों के बीच एनडीए और महागठबंधन के संकटों के बावजूद पार्टी ने पिछले तीन विधानसभा चुनावों में घटती सीटों व वोट हिस्सेदारी के साथ भी अपनी प्रमुख भूमिका बरकरार रखी है। विशेष रूप से अंतिम दो चुनावों में जेडीयू ने सहयोगी भाजपा और प्रतिद्वंद्वी राजद, दोनों के हाथों अपनी जमीन काफी हद तक खो दी। दूसरी तरफ राजद के तेजस्वी यादव की साख दांव पर लगी हुई है। वे युवा हैं और सामाजिक न्याय के नारे के साथ चुनावी मैदान में हैं। निश्चित रूप से एसआईआर, वक्फ संशोधन अधिनियम विवाद, ऑपरेशन सिंदूर और जाति जनगणना के साए में हो रहे इस चुनाव के नतीजे देश की राजनीति में दूरगामी परिणाम लाने वाले साबित होंगे। नतीजे न सिर्फ राष्ट्रीय जनता दल, जनता दल यूनाइटेड और प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी का भविष्य तय करेंगे, बल्कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी के लिए भी अग्नि परीक्षा होंगे। इससे बिहार के साथ-साथ केंद्र की राजनीति का भी सियासी समीकरण बदलेगा। यह चुनाव जनता दल यूनाइटेड और राष्ट्रीय जनता दल के लिए सबसे अहम है। वैसे, इस बार के चुनाव पिछले कई चुनावों से अलग है। बिहार में 1990 से लगातार 15 वर्षों तक लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी की जोड़ी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनता दल सरकार के बाद 2005 के चुनाव में बहुमत नहीं मिल पाने पर राष्ट्रपति शासन लागू हो गया था। इसी वर्ष बाद में दोबारा हुए चुनाव में नीतीश कुमार विजयी हुए और जदयू-भाजपा गठबंधन की पहली सरकार बनी। 2005 में जद-यू ने अपने पारंपरिक प्रतिद्वंदी राजद के साथ कांग्रेस का महागठबंधन बनाया और सरकार बनाई। 2020 में जदयू ने भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा और मामूली बढ़त के साथ सरकार बनाई। हालांकि डेढ़ साल बाद नीतीश महागठबंधन में शामिल हो गए, लेकिन वह सरकार लंबी नहीं चली और वह एनडीए में लौट आए। लोकसभा चुनाव के पूर्व जदयू-भाजपा की नई सरकार बनी। नीतीश कुमार ने चौथी बार गठबंधन बदला। यह परिवर्तन 2024 के लोकसभा चुनाव में फायदेमंद साबित हुआ और भाजपा-जदयू ने 12-12 सीटें जीती। वर्तमान में 243 सदस्यीय विधानसभा में नीतीश की जनता दल यूनाइटेड के 45 और भाजपा के 78 विधायक हैं। कुल 123, एक निर्दलीय के समर्थन से बहुमत (122)के पार हो गया। जबकि विपक्ष राजद, कांग्रेस और वाम के पास 114 विधायक हैं, जो बहुमत से आठ कम है। बहरहाल, यह चुनाव कई मायनों में महत्वपूर्ण है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष तथा लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी की प्रतिष्ठा भी दांव पर होगी। एक ओर एनडीए ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की गारंटी और नीतीश के सुशासन के नाम पर वोट मांगने का मन बनाया है। तो दूसरी ओर महागठबंधन ने राहुल गांधी की जाति जनगणना, सामाजिक न्याय और वोट चोरी जैसे मुद्दों को लेकर जनता के बीच जाने का फैसला किया है। पूरा विपक्ष वोट चोरी के मुद्दे को लेकर सक्रिय है। इस तरह यह चुनाव एक लिटमस टेस्ट होगा। हालांकि विपक्ष चुनाव आयोग पर पहले से ही वोट चोरी का आरोप लगा रहा है। ऐसे में सारा दारोमदार मतदाताओं पर है। इस बार 14 लाख नए मतदाता हैं, जो पहली बार वोट डालेंगे। शायद वे निर्णायक भूमिका में होंगे। ऐसे में वोट चोरी का मुद्दा एनडीए पर भारी पड़ेगा या महागठबंधन पर, यह कहना मुश्किल है। लेकिन चुनाव परिणाम के बाद सब कुछ साफ हो जाएगा। फिलहाल कुछ कहना या लिखना गैरवाजिब होगा। आखिर लोकतंत्र में जनता ही जनार्दन होती है। उसका फैसला सर्वोपरि होता है। इसलिए सब कुछ जनता पर ही छोड़ देना मुनासिब होगा।