देश में नवरात्र के पहले दिन यानी 22 सितंबर से जीएसटी के बड़े सुधार लागू हो गए हैं। अप्रत्यक्ष करों की दरों में अब सिर्फ दो जीएसटी स्लैब रह गए हैं। जीएसटी काउंसिल की बैठक में सभी राज्यों के वित्त मंत्रियों ने आम सहमति से जीएसटी की सिर्फ दो दरों, 5 और 18 फीसदी को मंजूरी दी है। जीएसटी की नई दरों के साथ पनीर, छेना, टेट्रापैक दूध, रोटी, चपाती परांठा, खाकरा जैसी आम लोगों से जुड़ी खाद्य वस्तुओं, दुर्लभ बीमारियों और कैंसर की दवाओं पर कोई टैक्स नहीं लगेगा। व्यक्तिगत स्वास्थ्य बीमा और जीवन बीमा पॉलिसियों को भी करों से छूट दे दी गई है। इसकी लंबे अरसे से मांग उठ रही थी। वहीं, फास्ट फूड, धनाढ्य वर्ग के उपभोग में आने वाली लग्जरी कारों समेत शराब, तंबाकू जैसी चुनिंदा विलासिता की एवं जीवन के लिए हानिकारक वस्तुओं के लिए 40 फीसदी का विशेष कर स्लैब बनाया गया है। इस फैसले से 413 से अधिक वस्तुओं के दाम घटने का अनुमान है। पूर्व में जीएसटी की चार दरें 5, 12, 18 और 28 फीसदी लागू थीं। जीएसटी के नए बदलावों से कृषि क्षेत्र के उपकरण सस्ते होंगे इसका लाभ किसानों को होगा। निश्चित रूप से सरकार की इस पहल से आम आदमी को फायदा होगा। लेकिन यह देर से लिया गया फैसला है। कह सकते हैं कि देर आयद-दुरस्थ आयद। अब जीएसटी सुधार का श्रेय लेने की होड़ शुरू हो गई है।
भाजपा तो बिहार विधानसभा चुनाव में जीएसटी सुधार को भुनाने की कोशिशें में जुट गई है। यूं तो पार्टी की ओर से “जीएसटी बचत उत्सव” के नाम से पूरे देश में अभियान शुरू किया गया है, लेकिन बिहार के लिए खास टीम बनाई गई है और इसमें पार्टी को अपने सहयोगी जनता दल यूनाइटेड का भी सहयोग मिलने की पूरी संभावना है। बिहार में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की जनसंख्या कुल आबादी की एक तिहाई से ज्यादा है। ऐसे में पार्टी को भरोसा है कि जीएसटी दरों में कटौती का लाभ उन तक सही से पहुंचने से पार्टी को चुनाव में इसका फायदा मिल सकता है। उधर,कांग्रेस का कहना है कि जीएसटी संप्रग सरकार का प्रस्ताव है। हालांकि राजग सरकार में यह लागू हुआ। वैसे जब से जीएसटी लागू हुआ है, तब से विपक्ष इसमें सुधार की मांग करता रहा है। इसके लिए सरकार को करीब 8 साल लग गए। विपक्ष आरोप लगा रहा है कि यह पूरा जीएसटी सुधार नहीं है। सांसद जयराम रमेश ने कहा कि भाजपा सरकार हर चीज का उत्सव मनाती है। अब जीएसटी सुधार का भी उत्सव मना रही है। दरअसल वह अमेरिका ने जो टैरिफ लगाया, वीजा शुल्क में ताबड़तोड़ बढ़ोतरी की। वैसे यह सच है कि जीएसटी का प्रस्ताव सबसे पहले प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने रखा था। जीएसटी विधेयक 2011 में तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने पेश किया था। लेकिन भाजपा समेत सभी विपक्षी दलों की आपत्तियों के कारण इसे पारित नहीं किया जा सका। मोदी सरकार 2014 में आई और 2017 में जीएसटी बिल पारित हुआ। कांग्रेस का कहना है कि उस समय जीएसटी को सिर्फ एक स्लैब में लागू करना था। जीएसटी का उद्देश्य करों को सरल बनाना था, उसे 2017 में मोदी सरकार ने “गब्बर सिंह टैक्स” के रूप में बदल दिया। स्लैब कम करने की जो मांग सदन के अंदर और बाहर बार-बार की गई थी अब वह पूरी हुई है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने 2016 से ही जीएसटी के खिलाफ अपना अभियान शुरू कर दिया था, जब प्रस्ताव पर चर्चा हो रही थी, तब उन्होंने सुझाव दिया था कि गरीबों के हितों की रक्षा के लिए अप्रत्यक्ष कर में 18% की सीमा जरूरी है। बहरहाल, सरकार के इस फैसले से रोटी, कपड़ा के साथ व्यक्ति का स्वास्थ्य और जीवन बीमा भी सस्ता हो गया है, जिसका लंबे समय से इंतजार था। खेती-किसानी के लिए जरूरी कृषि उपकरणों के दाम भी घट गए हैं। त्योहार सीजन की शुरुआत होने के कारण लोगों को पहले के मुकाबले आवश्यक वस्तुओं की खरीदारी में कम खर्च करना पड़ेगा। जिससे उनकी बचत होगी। इस बचत का इस्तेमाल वे त्यौहार सीजन में खरीदारी पर करेंगे। जिससे मांग, खपत और बिक्री में भी उछाल आएगा और अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी।
जीएसटी सुधार में श्रेय लेने की होड़
