“सूत ना कपास-जुलाहों में लट्ठम लट्ठा”

एशिया कप टी- 20 क्रिकेट प्रतियोगिता अपने चरम पर है। इस प्रतियोगिता में भारत, पाकिस्तान सहित 8 टीमें हिस्सा ले रही हैं। लेकिन इस प्रतियोगिता में भारत-पाक के खिलाड़ी 24 गज के पिच पर नहीं बल्कि राजनीति के पिच पर खेलते नजर आ रहे हैं। बीते रविवार को भारत-पाकिस्तान के बीच मैच कुछ इसी अंदाज में खत्म हुआ। क्रिकेट को भद्रजनों का खेल माना जाता है। सौहार्द, भाईचारा और दोस्ताना हमेशा ही इसका मूल मंत्र रहा है, पर एशिया कप के दूसरे मैच में भारत-पाकिस्तान के खिलाड़ियों के बीच खेल भावना दूर-दूर तक नहीं दिखी। कड़वाहट खेल के मैदान के बाहर भी देखने को मिली। दरअसल, भारत ने मैच को बड़े आराम से 7 विकेट से जीत लिया। विजयी शॉट लगाने के बाद कप्तान सूर्यकुमार यादव पेवेलियन की तरफ लौट आए। उन्होंने पाकिस्तान के खिलाड़ियों से हाथ नहीं मिलाया और बहिष्कार किया। ऐसा ही बाकी खिलाड़ियों ने भी किया। वहीं, मैच के बाद पुरस्कार समारोह में पाकिस्तान के कप्तान सलमान अली आगा नहीं आए। पाकिस्तानी कोच ने स्वीकार किया कि दोनों टीमों के बीच कड़वाहट बढ़ गई है। टॉस के बाद भी दोनों कप्तानों ने हाथ नहीं मिलाए थे। पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड ने इसकी शिकायत एशियाई क्रिकेट काउंसिल में की है। उसने कहा है कि भारतीय खिलाड़ियों ने हाथ न मिलाकर खेल भावना के खिलाफ काम किया है। दरअसल, भारतीय खिलाड़ियों ने पहलगाम आतंकी हमले के विरोध में सांकेतिक बहिष्कार किया था, जो उचित है। यह कप्तान या कोच का नहीं बल्कि पूरी टीम का सामूहिक फैसला था। कप्तान सूर्यकुमार यादव ने कहा भी है कि हमारे बहिष्कार का उद्देश्य पहलगाम आतंकी हमले की पीड़ितों और उनके परिवारों के प्रति समर्थन दिखाना था। उन्होंने कहा कि हम यहां सिर्फ खेलने आए थे। हमने पाकिस्तान को सही जवाब दिया। कुछ चीज खेल भावना से ऊपर होती है। यह जीत हम अपने वीर जवानों और “ऑपरेशन सिंदूर” को समर्पित करते हैं। वहीं, कोच गौतम गंभीर ने मैच के पहले खिलाड़ियों को भी स्पष्ट निर्देश दिए थे कि वह पाकिस्तानी खिलाड़ियों के साथ हाथ न मिलाएं और किसी भी तरह की बातचीत से बचें। गंभीर ने खिलाड़ियों से कहा था कि “सोशल मीडिया छोड़ो, बाहर का शोर मत सुनो। तुम्हारा काम सिर्फ भारत के लिए खेलना है। पहलगाम मत भूलो। हाथ मत मिलाना, बात मत करना… बस मैदान में खेलो और भारत के लिए जीतकर आओ।” इसका सभी खिलाड़ियों ने अक्षरशः पालन किया। लेकिन अब इसने विवाद का रूप ले लिया है। राजनीतिक दल भी इसमें कूद पड़े हैं। सभी अपने-अपने ढंग से प्रतिक्रिया दे रहे हैं। शिवसेना (उद्धव गुट) के नेता और सांसद संजय राउत ने सनसनीखेज आरोप लगाया कि एशिया कप मैच में करीब डेढ़ लाख करोड़ रुपए का सट्टा खेला गया। राउत के मुताबिक इस सट्टे में से 25 हजार करोड़ पाकिस्तान पहुंचे हैं। उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा कि यह पैसा भारत के खिलाफ इस्तेमाल होगा। क्या सरकार और बीसीसीआई को इसकी जानकारी नहीं है। उन्होंने कहा कि खिलाड़ियों का पाकिस्तानी खिलाड़ियों से हाथ नहीं मिलाना महज नाटक था। वहीं कर्नाटक के मंत्री और कांग्रेस नेता प्रियांक खड़गे ने एक कदम आगे बढ़ते हुए खिलाड़ियों को बीसीसीआई के ठेके वाले मजदूर करार दिए। उन्होंने कहा कि हाथ न मिलाने का ड्रामा किसके लिए है? किसे बेवकूफ बनाने की कोशिश हो रही है? सारे राष्ट्रवादी कहां छुप गए हैं? दरअसल, पाकिस्तान के साथ मैच खेला ही नहीं जाना चाहिए था। यह बेहद शर्मनाक फैसला है। वैसे भी मैच के आयोजन को लेकर शुरू से ही सवाल उठते रहे हैं। पहलगाम में आतंकी हमले में 26 लोगों की जान चली गई थी। उसके बाद भारत ने “ऑपरेशन सिंदूर” के तहत पाकिस्तान और पोओके स्थित आतंकी ठिकानों पर कार्रवाई की थी। ऐसे हालात में मैच के आयोजन पर कई राजनीतिक दलों और संगठनों ने बहिष्कार की मांग की थी। लेकिन सरकार और बीसीसीआई ने किसी की नहीं सुनी और मैच की अनुमति दे दी। कई राजनीतिक दलों का सीधा आरोप है कि सरकार ने देशभक्ति पर मुनाफे को चुना। एकबारगी यह सच भी लगता है। बहरहाल, यदि सरकार मानती है कि खेल को खेल ही रहने दिया जाए राजनीति ना हो, तो खिलाड़ियों को भी खेल भावना का परिचय देना चाहिए। लेकिन दोनों देशों के खिलाड़ियों ने ऐसा नहीं किया। लिहाजा, अब यह बहस का मुद्दा बन गया है। यानी “सूत ना कपास-जुलाहों में लट्ठम लट्ठा” वाली कहावत चरितार्थ हो रही है। हमारे कहने का अर्थ है कि देश के सामने कई और ज्वलंत मुद्दे हैं, उस पर बहस होनी चाहिए। ऐसे मुद्दों पर आपस में बहस निरर्थक है। ना तो सरकार किसी की सुनेगी और ना ही बीसीसीआई!