उच्च शिक्षा की नई संरचना: सपने की खोज और जुनून का योग

0 डॉ. सुशील त्रिवेदी

राष्‍ट्रीय शिक्षा नीति- 2020 में उच्च शिक्षा के क्षेत्र पर विशेष ध्यान दिया गया है
। यह नीति विद्यार्थी केन्द्रित है जो एक ओर उन्हें अपनी जड़ों से जोड़ने वाली है तो
दूसरी ओर वह उन्हें शक्तिशाली पंख देकर आसमान की नई ऊंचाइयों को छूने का अवसर
देने वाली है । यह नीति दुनिया में हुए अत्यन्त तीव्र और व्यापक टेक्नोनलॉजिकल
परिवर्तनों को ध्यान में रखते हुए एक ऐसी संरचना उपलब्ध कराने वाली है जिसमें
विद्यार्थी केवल महाविद्यालय या विश्‍वविद्यालय तक, या फिर व्याख्यान, ट्यूटोरियल
या प्रयोगशाला तक सीमित नहीं रहेगा बल्कि उद्योग, समाज और शासन से भी जुड़
सकेगा ।
इस नीति के द्वारा उच्च शिक्षा में 5 प्रमुख परिवर्तन किए जाएंगे: (1) उच्च शिक्षा
संस्थानों के लिए केवल एक नियामक होगा; (2) डिग्री कोर्स में प्रवेश लेने और उससे
बाहर आने के लिए मल्टिपल एंट्री और एक्जिट प्वाइंट होंगे; (3) एम. फिल कोर्स समाप्त
हो जाएगा; (4) उच्च शिक्षा संस्थान में प्रवेश के लिए बोर्ड परीक्षा के अंकों का महत्व कम
होगा; और (5) इन संस्थानों में प्रवेश के लिए एक कॉमन एन्ट्रेंस एक्जाम होगा ।
नीति का उद्देश्‍य यह है कि उच्च शिक्षा संस्थान उच्च गुणवत्तापूर्ण हों, वे अग्रगामी
दूरदृष्टि से काम करे और उनका दृष्टिकोण एकांगी न होकर समावेषी तथा बहुविषयक हो
। इन संस्थानों में अध्ययन के लिए अधिकतम प्रेरक वातावरण हो तथा कार्यकलाप में
समता तथा समावेशीता हो । इसके लिए इन संस्थानों में प्रेरित, ऊर्जावान और
क्षमतावान फैकल्टी हो तथा अनुसंधान गुणात्मक हो । इसके लिए अध्यापकों के शिक्षण
की एक नई व्यवस्था लागू होगी ।
नीति के व्यापक लक्ष्यों को पूरा करने के लिए जीडीपी का 6 फीसद शिक्षा में
लगाने का प्रावधान एक प्रमुख बिंदु है । उच्च शिक्षा का लाभ ज्यादा से ज्यादा युवा ले
सकें इसके लिए सकल नामांकन अनुपात को जो अभी 26.3 है उसे 50 तक बढ़ाया
जाएगा और उच्च शिक्षा की संस्थाओं में 3.5 करोड़ नई सीटें जोड़ी जाएंगी । इसके लिए
2030 तक देश के लगभग हर एक जिले में कम से कम एक बहुविषयक वृहत उच्च शिक्षा संस्थान स्थापित होगा । इसके अतिरिक्त, ‘एकेडमिक बैंक ऑफ क्रेडिट्स‘ नामक एक डिजिटल क्रेडिट बैंक की स्थापना एक अन्य अहम बिंदु है, जिसके द्वारा किसी एक
प्रोग्राम या संस्थान में प्राप्त क्रेडिट (अंक) को दूसरी जगह स्थानांतरित किया जाएगा ।
शहर या संस्थान बदलने वाले छात्रों के लिए यह बहुत उपयोगी होगा ।
नई शिक्षा नीति के अनुसार विद्यार्थी किसी स्नातक उपाधि के लिए 3 या 4 वर्ष
वाले कोर्स में प्रवेश ले सकता है । उसे यह विकल्प रहेगा कि वह 1 वर्ष बाद सर्टिफिकेट
या 2 वर्ष बाद डिप्लोमा या 3 अथवा 4 वर्ष के बाद स्नातक उपाधि प्राप्त कर सकता है ।
4 वर्ष की उपाधि शोध आधारित शिक्षा के लिए अधिक अवसर उपलब्ध कराएगी । 3
वर्ष की स्नातक उपाधि के बाद 2 वर्ष की स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त की जा सकती है
जबकि 4 वर्ष की स्नातक उपाधि के बाद 1 वर्ष में ही स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त की जा
सकेगी । स्कूली शिक्षा के बाद स्नातक-स्नातकोत्तर उपाधि वाला 5 वर्ष का पाठ्यक्रम भी
उपलब्ध होगा अब एम.फिल व्यवस्था बंद हो जाएगी और पी-एच.डी की व्यवस्था के
लिए 4 वर्ष की स्नातक उपाधि या 3 वर्ष वाली स्नातक उपाधि के साथ स्नातकोत्तर
उपाधि आवश्‍यक होगी । उच्च शिक्षा पाठ्यक्रम में विषयों के अध्ययन की विविधता
रहेगी और प्रवेश तथा निर्गम के बहुतेरे विकल्प उपलब्ध होंगे ।
उच्च शिक्षा के आसान मगर सख्त विनियमन के लिए भारत उच्च शिक्षा आयोग
होगा । इसके अन्‍तर्गत चार अलग-अलग कामों के लिए अलग-अलग नियामक होंगे ।
तदनुसार विनियमन के लिए राष्‍ट्रीय उच्चतर शिक्षा नियामकीय परिषद; मानक
निर्धारण के लिए सामान्य शिक्षा परिषद; वित्त पोषण के लिए उच्चतर शिक्षा अनुदान
परिषद और प्रत्यायन के लिए राष्‍ट्रीय प्रत्यायन परिषद होगी । प्रौद्योगिकी के उपयोग
पर जोर देते हुए राष्‍ट्रीय शिक्षा प्रौद्योगिकी मंच की स्थापना की जाएगी ।
महाविद्यालयों को 15 वर्षों में चरणबद्ध रूप से स्वायत्तता देते हुए विश्‍वविद्यालयों के
साथ संबद्धता की प्रणाली पूरी तरह समाप्त की जाएगी।
उच्च शिक्षा संस्थानों में प्रवेश के लिए एक परीक्षा होगी जो अमेरिका में उच्च
शिक्षा में प्रवेश के लिए स्कॉलिस्टिक एप्टिट्यूड टेस्ट की भांति परीक्षा होगी । इस
परीक्षा का आयोजन नेशनल टेस्टिंग एजेन्सी के द्वारा किया जाएगा और इसके परिणाम
के आधार पर पूरे देश में किसी भी उच्च शिक्षण संस्थान में प्रवेश मिल सकेगा । यह संभव
है कि कुछ संस्थान प्रवेश देने के लिए कुछ और मानदण्ड निर्धारित कर सकते हैं ।
यह बात कही जा रही है कि उच्च शिक्षा के लिए प्रवेश परीक्षा की तैयारी के नाम
पर कोचिंग सेन्टर्स की बाढ़ आ जाएगी और साधनहीन युवाओं के लिए उच्च शिक्षा उनकी
आर्थिक क्षमता के बाहर हो जाएगी । बहरहाल, यह आशंका निर्मूल है क्योंकि उच्च शिक्षा
में प्रवेश के लिए आयोजित होने वाली परीक्षा के लिए किसी कोचिंग की जरूरत नहीं
होगी, वह तो विद्यार्थी के व्यवहार को जांचने वाली होगी।
यहआशंका भी व्यक्त की जा रही है कि विदेशी विश्‍वविद्यालय भारत में बड़ी
तेजी से अपने क्षेत्र का विस्तार करेंगे । ऐसा नहीं होगा क्योंकि अभी किसी विदेशी विश्‍वविद्यालय की स्थापना की अनुमति देने की आवश्‍यकता नहीं है । अभी विदेशी संस्थाओं के साथ ट्विनिंग व्यवस्था की जाएगी और फिर उसका परिणाम मिलने पर ही
आगे कार्रवाई की जाएगी। उच्च शिक्षा में जिस तरह बदलाव की नीति बनी है उससे यह भय व्यक्त किया जा
रहा है कि इस नीति से देश में उच्च शिक्षा की व्यवस्था छिन्न-भिन्न हो जाएगी । ऐसा नहीं
है क्योंकि जो भी परिवर्तन किए जाएंगे वो क्रमिक होंगे । अभी परिवर्तन की शुरुआत
केन्द्र शासन द्वारा पोषित संस्थाओं से की जाएगी और फिर उन्हें उन राज्य सरकारों के
और निजी विश्‍वविद्यालयों में लागू किया जाएगा जो इन्हें लागू करने की इच्छा व्यक्त
करेंगे । इस परिवर्तन में तीन से चार साल लग सकते हैं।

 

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