कई मायनों में पहले से अलग है यह स्वतंत्रता दिवस

अरुण पटेल

आज हम 73वीं स्वतंत्रता दिवस की वर्षगांठ जब मना रहे हैं उस समय अनेक चुनौतियां देश के सामने मुंह बाये खड़ी हैं और कई मायनों में इस साल का स्वतंत्रता दिवस कुछ अलग ही है। इसका कारण यह है कि सदियों पुरानी असंख्य भारतवासियों की कामना के अनुसार राम जन्म भूमि पर अयोध्या में एक भव्य मंदिर निर्माण के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भूमि पूजन कर दिया है। प्रधानमंत्री मोदी ने कर ढांचे को सरलीकृत करते हुए एक प्रकार से लोगों के मन में आयकर विभाग को लेकर जो आतंक का भाव रहता था उससे मुक्ति दिला दी है। इससे आयकर अफसरों के छापे व सर्वे के अधिकार सीमित हो गए हैं जिससे प्रताड़ना रुकेगी और स्थानीय अफसर असेसमेंट नहीं कर पायेंगे, इससे मिलीभगत होने की संभावना काफी कम हो जायेगी। देश की आजादी के बाद पहली बार षिक्षा के बुनियादी ढांचे में मूलभूत परिवर्तन का ऐलान हुआ है तो वहीं बेटियों पिता की संपत्ति में हिस्सा देने के बारे में जो कुछ भ्रांतियां थीं उसे सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट कर दिया है। इस समय मानवता के सामने सबसे बड़ी चुनौती कोरोना महामारी के रुप में सामने खड़ी है और इस आपदा से हम केवल संयम और उन दिशा निर्देशों का ईमानदारी से पालन कर निपट सकते हैं जो कि केन्द्र व राज्य सरकारों ने बनाये हैं। सोशल डिस्टेंसिंग, चेहरे पर मास्क लगाना, एहतियात बरतना और भीड़भाड़ से बचना ऐसे उपाय हैं जिनके द्वारा हम इस बीमारी के फैलाव को रोक सकते हैं। जो व्यक्ति कोरोना संक्रमित हो गया है उसे पूरी सावधानी बरतना चाहिए तथा हिम्मत रखना चाहिये। शरीर के अंदर रोग प्रतिरोधात्मक क्षमता बढ़ाना भी हमें इस बीमारी से लड़ने के योग्य बनायेगा। इन सबके अलावा हम अपने अवचेतन मस्तिष्क में छुपी हुई शक्तियों को पहचानते हुए यदि उसका प्रयोग अपनी जीवन शैली में अंगीकार करेंगे तो कोरोना तो क्या किसी भी बीमारी और कितनी भी जटिल समस्या हो उससे लड़ने की हम अपने अंदर इच्छाशक्ति प्रकट कर सकते हैं। कोरोना से उपजी परिस्थितियां एक प्रकार से परतंत्रता कही जा सकती हैं क्योंकि कई प्रकार के बंधनों से हम जकड़ गए हैं, इससे आजादी का उपाय केवल वेक्सीन ही है।
अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य पर यदि नजर डालें तो भारत को भले ही अमेरिका व कुछ राष्ट्रों का खुलकर सहयोग मिल रहा हो, लेकिन जहां तक अमेरिका की बात है वह कितने समय तक मजबूती से हमारे साथ खड़ा रहेगा इसकी गारंटी नही है, क्योंकि उसके लिए व्यापारिक हित ही सर्वोपरि हैं। पुराना सोवियत संघ और अब रुस को भारत अपना सच्चा मित्र मान सकता है क्योंकि उसने हर समय एक सच्चे व वफादार दोस्त होने का परिचय दिया है। पड़ोसी राज्यों से इस समय अपने जो तनावपूर्ण संबंध हैं वैसे कभी नहीं रहे। चीन से अवश्य नरम-गरम संबंध रहे, चूंकि वह विस्तारवादी नीति का पोषक है इसलिए उस पर भरोसा नहीं किया जा सकता। बांग्लादेश जिसे हमने आजादी दिलाई उससे भी हमारे संबंध अब उतने मधुर नहीं बचे जितने पहले हुआ करते थे। श्रीलंका से भी अब हमारे संबंध कुछ तनावपूर्ण हैं। सबसे आश्चर्य की बात तो यह है कि नेपाल जो अपने आपको हिंदू राष्ट्र मानता रहा है और भारत से उसके संबंध सदैव मैत्रीपूर्ण रहे हैं वह भी भारत के कुछ भूभाग को अपनी सीमा में बता रहा है। भारत नेपाल के रिश्ते अटूट व मैत्रीपूर्ण रहे हैं लेकिन अब उनमें इस समय काफी खटास आ गयी है। पड़ोसियों से हमारे संबंध तनावूपर्ण होने के पीछे चीन की विस्तारवादी नीति है और वह हमारे पड़ोसियों को उकसाकर हमारे लिए समस्या पैदा कर रहा है। इन सब हालातों पर गंभीर चिंतन मनन कर केंद्र सरकार को पहल कर पाकिस्तान को छोड़कर अन्य देशों से रिश्ते सुधारने के बारे में प्रयास करना चाहिए।
इस समय सबसे बड़ी समस्या बढ़ती हुई बेरोजगारी है और कोरोना की बीमारी के चलते जिन लोगों के पास रोजगार था वह भी छिन गया है इसलिए इस दिषा में कारगर उपाय करने की जरुरत है। युवा वर्ग में हताषा की स्थिति न आये इसलिए कुछ न कुछ उपाय के साथ उन्हें रोजगार देने की दिशा में प्रयास करने चाहिए। आज उन लोगों को सीधे सरकार से आर्थिक सहायता की दरकार है जिनकी रोजी-रोटी छिन गई है और जीवन-यापन के लिए उनके पास कोई साधन नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी ने नई शिक्षा नीति में बदलाव के संबंध में दावा किया है कि भेड़चाल से नई शिक्षा नीति मुक्त करेगी और नये भारत के निर्माण की यह एक आधारशिला साबित होगी। वैसे सालों से हमारी षिक्षा व्यवस्था एक पुराने ढर्रे पर ही चल रही है जिसके कारण नई सोच, नई ऊर्जा को बढ़ावा नहीं मिल पा रहा है। मोदी ने कहा कि नयी शिक्षा नीति के अमल में किसी के मन में नीति के लागू होने को लेकर किसी तरह की आशंका नहीं होना चाहिये। नीति पूरी तरह से लागू होगी। जहां तक राजनीतिक इच्छाशक्ति की बात है तो मैं इसके लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध हूं। अब हमारा फोकस भी बदला है और क्या सोच रहे हैं -व्हाट टू थिंक- की जगह -कैसे सोच रहे हैं -हाउ टू थिंक- पर बल दिया गया है। राजनीतिक इच्छाशक्ति के साथ ही साथ चूंकि हमारा देष संघीय व्यवस्था में है इसलिए राज्य सरकारों को भी विश्वास में लिया जाना चाहिये।
हिंदू उत्तराधिकार संषोधन कानून 2005 लागू होने के संबंध में एक प्रकरण में भाइयों की दलील थी कि पिता की मृत्यु कानून लागू होने के पहले हुई थी इसलिए बहन का संपत्ति में हक नहीं है, उनकी इस दलील को कोर्ट ने खारिज कर दिया। इस कानून के तहत बेटी भी संपत्ति में बराबर की हकदार है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि 9 सितम्बर 2005 को कानून में संषोधन लागू होने के समय उसके पिता जीवित थे या नहीं या बेटी का जन्म 2005 से पहले हो चुका था। जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा है कि ‘‘बेटियां हमेशा प्यारी बेटियां रहती हैं, बेटे तो बस विवाह तक ही बेटे रहते हैं‘‘ बेटियां पूरी जिन्दगी माता-पिता को प्यार देती हैं जबकि बेटों की नीयत व व्यवहार विवाह के बाद बदल जाते हैं लेकिन बेटियां कभी नहीं बदलतीं। आज आवश्यकता इस बात की है कि इस मामले में पुरानी मानसिक धारणाओं को बदला जाए और केवल बेटे को ही उत्तराधिकारी मानने की जगह बेटे-बेटियों में समाज कोई फर्क न करे। आजकल एक फैषन हो गया है और देष प्रेम व राष्ट्रवाद की परिभाषा राजनीतिक दल अपनी-अपनी सुविधा से गढ़ने लगे हैं। हिंदुत्व वह नहीं है जो एक वर्ग समझने लगा है, बल्कि हिंदुत्व और भारतीय संस्कृति व परम्परा में सर्वधर्म समभाव का विशेष महत्व रहा है। सत्ताधीष चाहे कोई हो, कितना ही षक्तिषाली क्यों न हो वह कभी भी देश व राष्ट्र का पर्याय नहीं हो सकता, सत्ताधीश से सवाल पूछना या उसकी नीतियों की आलोचना करना राष्ट्र विरोधी कदापि नहीं माना जा सकता। यह भी नहीं माना जाना चाहिये कि यदि कोई आलोचना करता है या सत्ताधारी दल की विचारधारा से सहमत नहीं है तो वह देष से प्रेम नहीं करता और देशद्रोही है। स्वतंत्रता दिवस की सभी देशवासियों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं, इस विश्वास के साथ कि हम इस बात का संकल्प लेते हैं कि चुनौतियों का साहस के साथ डटकर सामना करेंगे और जो अभी भी मानसिक गुलामी में जकड़े हैं वे उससे मुक्त होंगे।

 

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