देश में इन दिनों स्टैंड-अप कॉमेडियन कुणाल कामरा के व्यंग्य पर बवाल मचा हुआ है। खासकर महाराष्ट्र में तोड़फोड़, बयानबाजी से लेकर एफआईआर भी दर्ज हो चुकी है। ऐसा कहा जा रहा है कि कुणाल कामरा ने एक शो के दौरान महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को लेकर इशारों – इशारों में विवादास्पद टिप्पणी की थी। इस टिप्पणी को लेकर राजनीतिक दलों में जूतम-पैजार शुरू हो गया है। दरअसल शो के दौरान कामरा ने ‘दिल तो पागल है’ फिल्म का पैरोडी सॉन्ग गया था। इसमें शिवसेना में बगावत का जिक्र किया गया था। गाने कुछ इस तरह थे!
ठाणे की रिक्शा, चेहरे पर दाढ़ी, आंखों में चश्मा हाय।
एक झलक दिखलाए कभी, गुवाहाटी में छिप जाए।
मेरी नजर से तुम देखो, गद्दार नज़र वो आए।
मंत्री नहीं वो दल बदलू है और कहा क्या जाए।
जिस थाली में खाए, उसमें ही छेद कर जाए।मंत्रालय से ज्यादा फडणवीस की गोद में बैठ जाए।
इस व्यंग्य के बाद समूचे महाराष्ट्र में तकरार मची हुई है। राजनीतिक दल भी अपने-अपने राजनीतिक नफा-नुकसान, पसंद-नापसंद को देख प्रतिक्रिया दे रहे हैं। लेकिन कोई यह नहीं बता पा रहा है कि दरअसल इस व्यंग्य में विवादास्पद क्या है? इससे पहले भी कई कॉमेडियन और हास्य व व्यंग्य कवियों ने कई बड़े नेताओं और मंत्रियों पर टिप्पणी की हैं, लेकिन ऐसा बवाल नहीं हुआ है। सरकारी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया जा रहा है और यह सब शिंदे के शिव सैनिक कर रहे हैं। हम यह नहीं कह रहे हैं की कामरा की टिप्पणी ठीक है या गलत। लेकिन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान हर किसी को करना चाहिए। चुटकुले या हास्य व्यंग्य मनोरंजन के लिए होते हैं उसे व्यक्तिगत निजी हमला मान लेना उचित नहीं है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार केवल अमीर और शक्तिशाली लोगों की तारीफ में कसीदें गढ़े जाने के लिए नहीं होने चाहिए। सार्वजनिक जीवन जीने वाले लोगों में आलोचना या हास्य व्यंग्य को मनोरंजन के रूप में लेने और उसे बर्दाश्त करने की क्षमता होनी चाहिए। लेकिन हमारा यह भी मानना है कि व्यंग्य में किसी की निजी जिंदगी पर हमला नहीं होना चाहिए। साथ ही शिष्टाचार का भी पालन हो। पूर्व में हमने देखे हैं कि राजीव गांधी, डॉक्टर मनमोहन सिंह, मुलायम सिंह यादव और लालू प्रसाद यादव जैसे लोगों पर लोग हास्य व्यंग्य करते रहे हैं। अटल जी भी इससे अछूते नहीं रहे। राहुल गांधी पर तो ऐसे हास्य व्यंग्य से पूरा सोशल मीडिया अटा पड़ा है। ऐसे में कुणाल कामरा पर शिव सैनिकों का पिल पड़ जाना निश्चित रूप से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला ही माना जाएगा। जब नेता एक दूसरे को गद्दार कहते हैं तो कोई आंदोलन या तोड़फोड़ नहीं होती । इसी महाराष्ट्र में उपमुख्यमंत्री अजित पवार ने शिंदे को ही गद्दार कहा था। उद्धव ठाकरे ने तो फिर कहा है कि गद्दार को गद्दार कहना किसी पर हमला करना नहीं होता। फिर कुणाल कामरा ने तो अपने जोक में किसी का नाम ही नहीं लिया है, पर उनके (एकनाथ शिंदे) नेता, प्रवक्ता और कार्यकर्ता कुणाल के जोक को शिंदे से जोड़कर देख रहे हैं। यानी वे मान रहे हैं कि कुणाल कामरा जिसे गद्दार कह रहे हैं वे एकनाथ शिंदे ही हैं। इस बीच, कॉमेडियन कुणाल कामरा ने कहा है कि गद्दार वाले अपने जोक पर उन्हें कोई पछतावा नहीं है। साथ ही मुंबई पुलिस से कॉमेडियन ने यह भी कहा कि वह इस मुद्दे पर तभी माफ़ी मांगेंगे जब कोर्ट उन्हें ऐसा करने को कहेगी । बहरहाल, यह मुद्दा गरमाया हुआ है। राजनीतिक दल एक ही थाली के चट्टे-बट्टे हैं। जब जिसकी सत्ता होती है वह अपनी ताकत दिखाता है। पूर्व में भी ऐसा हुआ है और अभी भी ऐसा ही हो रहा है। राजनीतिक दल और उनके नेता, थोड़ी सी भी आलोचना सह नहीं पाते और सत्ता के दम पर हंटर चलने से बाज नहीं आते। वे असहिष्णु होते जा रहे हैं। महाराष्ट्र में भी यही चल रहा है।