महंत जी तो ‘महंत’ हैं, परशुराम क्यों बन रहे?

छत्तीसगढ़ में इन दिनों भारतमाला परियोजना में भ्रष्टाचार का मुद्दा अत्याधिक चर्चा में है। विधानसभा में तो यह मामला पिछले कुछ दिनों से लगातार गरमाया हुआ है। राज्य सरकार ने इसकी जांच ईओडब्ल्यू से कराने का निर्णय लिया है, लेकिन विपक्ष सीबीआई से जांच कराने की मांग पर अड़ा हुआ है। दरअसल, भारतमाला छत्तीसगढ़, उड़ीसा और आंध्र प्रदेश को जोड़ने वाली एक वृहद परियोजना है। इस परियोजना के तहत किसानों को जमीन के बदले मुआवजा देने के मामले में गड़बड़ी उजागर होने के बाद विपक्ष आक्रामक हो गया है। वह सदन से लेकर सड़क की लड़ाई लड़ने का ऐलान कर चुका है। राज्य सरकार ने भी गड़बड़ियां स्वीकार कर ली हैं । बीते 12 मार्च को राजस्व मंत्री टंकराम वर्मा ने विधानसभा में स्वीकार किया है कि भू अर्जन में भ्रष्टाचार की कई शिकायत मिली हैं। अधिग्रहित जमीन का अन्य को मुआवजा देने समेत अलग-अलग तरह की गड़बड़ियां की गई है। इस मामले में सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच तीखी बहस हुई और हंगामा भी हुआ। विपक्ष सीबीआई जांच की मांग पर अडिग रहा, पर सत्ता पक्ष ने उसकी मांग को नकार दिया। राजस्व मंत्री टंकराम वर्मा ने संभागायुक्त स्तर पर कमेटी से इसकी जांच कराने की घोषणा की, लेकिन विपक्ष संतुष्ट नहीं हुआ और सदन से बहिर्गमन किया। इससे पहले नेता प्रतिपक्ष डॉ चरण दास महंत ने कहा कि मुझे हाई कोर्ट जाना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि इस मामले की सीबीआई या सदन की कमेटी से जांच होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि जब मंत्री गड़बड़ी स्वीकार कर रहे हैं तो दोषी अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर कर उन्हें जेल भेजें। इसकी सीबीआई जांच से ही नामांतरण, बंटवारा का खेल बंद होगा। उन्होंने मात्र 6 गांवों का उदाहरण देते हुए कहा कि इसमें ही 43 करोड़ 19 लाख रुपए का अतिरिक्त भुगतान हुआ है। महंत ने मुख्यमंत्री साय से इस मामले में संज्ञान लेने का आग्रह किया, लेकिन उन्होंने भी इंकार कर दिया। सदन में हो-हल्ला और हंगामा के बाद राज्य मंत्रिमंडल की बैठक में इसकी ईओडब्ल्यू से जांच कराने की घोषणा की गई। विपक्ष इससे भी संतुष्ट नहीं है। यह मुद्दा सोमवार को फिर सदन में उठा। नेता प्रतिपक्ष ने कहा जब भारतमाला परियोजना का सवाल सदन में लगा था,तब हमने जांच की मांग की थी। राजस्व मंत्री संभागायुक्त से जांच करने की बात करते रहे। लेकिन शाम को मंत्रिमंडल ने ईओडब्ल्यू से जांच करने का निर्णय ले लिया। इस पर विधानसभा अध्यक्ष डॉ रमन सिंह ने कहा कि अगर सदन में कोई मामला चल रहा था, तो कोई निर्णय लेने से पहले सदन को सूचना देनी चाहिए। उन्होंने राजस्व मंत्री को इस मामले में सदन में वक्तव्य देने के निर्देश दिए। बहरहाल, यह मुद्दा थमने का नाम नहीं ले रहा है। गड़बड़ी के आरोप में एक अपर कलेक्टर और एक डिप्टी कलेक्टर सहित अब तक पांच लोग निलंबित हो चुके हैं। यह भी चर्चा है कि मुआवजा वितरण का कार्य कांग्रेस शासन के समय हुआ। फिर भी नेता प्रतिपक्ष डॉक्टर महंत इस मामले की सीबीआई जांच पर क्यों अड़े हैं? वैसे महंत जी तो ‘महंत’ हैं। उन्हें किसी से कोई लेना देना नहीं है। ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर के रास्ते पर चलते हैं। फिर ऐसा क्या हो गया कि वे ‘परशुराम’ बन रहे हैं। दरअसल, इस परियोजना में अच्छा खासा मुआवजा पाने वालों में भाजपा और कांग्रेस दोनों दलों के नेता शामिल हैं। भाजपा के एक नेता को तो करीब 100 करोड़ रुपए का मुआवजा मिलने की भी खबरें हैं। लेकिन, इसमें कितनी सच्चाई है यह जांच का विषय है। इस बहाने महंत एक तीर से कई निशाना साधना चाह रहे हैं। इस परियोजना में मुआवजा वितरण में गड़बड़ी को लेकर 2021 में भाजपा नेता और पूर्व मंत्री चंद्रशेखर साहू ने एक पत्रवार्ता ली थी। भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता गौरीशंकर श्रीवास ने प्रधानमंत्री कार्यालय और केंद्रीय सतर्कता आयुक्त से इसकी शिकायत भी की थी। लेकिन किसी ने इस पर संज्ञान नहीं लिया। बताया जा रहा है कि केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के संज्ञान में लेने के बाद राज्य सरकार ने अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही की। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि ईओडब्ल्यू की जांच से क्या निकलकर बाहर आता है। इसका सभी को बेसब्री से इंतजार है।