प्रदेश में शहरी के बाद अब ग्रामीण सत्ता की जंग भी थम गई। त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के संपन्न होते ही चुनावों का दौर खत्म हो गया। चूंकि पंचायत चुनाव राजनीतिक दलों के चुनाव चिन्ह पर नहीं हुए हैं, लिहाजा दोनों दल बढ़ चढ़कर अपनी-अपनी जीत का दावा कर रहे हैं। तीन चरणों में सम्पन्न हुए इस पंचायत चुनाव में हर चरण के मतदान के बाद राजनीतिक दलों की तरफ से इस तरह के दावे किए जा रहे थे। अब चूंकि तीनों चरण के मतदान संपन्न होने और नतीजे आ जाने के बाद तस्वीर साफ हो गई है, लेकिन आम जनता में भ्रम की स्थिति बनी हुई है कि आखिर बाजी किसके हाथ लगी? हालांकि दोनों दल ‘तू डाल-डाल मैं पात-पात’ की तर्ज पर एक से बढ़कर एक दावे कर रहे हैं। सतारूढ़ भारतीय जनता पार्टी तो कांग्रेस का सूपड़ा साफ होने का दावा कर रही है। उसका कहना है कि जिस तरह नगरीय निकाय चुनाव में कांग्रेस शून्य की स्थिति में रही, यही हाल पंचायत चुनाव में भी है। उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा ने दावा किया है कि जिला पंचायत में 325 भाजपा समर्थित उम्मीद्वार जीत कर आए हैं। उन्होंने कहा कि जिला पंचायत के 80 प्रतिशत स्थानों पर भी भाजपा के अध्यक्ष जीत कर आएंगे। श्री शर्मा ने कहा कि इसी तरह जनपद और ग्राम पंचायतों में भी भाजपा ऐतिहासिक सफलता हासिल की है। उधर, कांग्रेस का दावा है कि राज्य के 25 जिला पंचायतों में उनके अध्यक्ष बनेंगेें। कांग्रेस संचार विभाग के अध्यक्ष सुशील आनंद शुक्ला ने कहा है कि कांग्रेस को 18 जिला पंचायतों में स्पष्ट बहुमत मिला है। जबकि 7 में कांग्रेस समर्थित सदस्यों के साथ मिलकर बहुमत हासिल है। उन्होंने बताया कि प्रदेश में कांग्रेस के कुल 234 जिला पंचायत सदस्य चुनकर आए हैं। इसी तरह जनपद पंचायत के 2932 क्षेत्रों में से 1761 कांग्रेस के सदस्यों ने जीत दर्ज की हैं। जबकि 10187 गांवों में से 6985 कांग्रेस समर्थित सरपंच चुनाव जीते हैं। श्री शुक्ला ने आरोप लगाया कि भाजपा सरकार कलेक्टर-एसपी के माध्यम से कांग्रेस समर्थित सदस्यों को डरा-धमकाकर अपना अध्यक्ष बनाने के लिए दबाव डाल रही है। दोनों के दावे अपनी-अपनी जगह है। लेकिन असली तस्वीर जिला और जनपद पंचायतों के अध्यक्ष के निर्वाचन के बाद सामने आएगी। हालांकि राजनीतिक दल और उनके नेता ‘ अपनी ढपली-अपना राग’ अलाप रहे हैं। इन सबसे अलग इस चुनाव में सबसे अच्छी बात यह रही कि नक्सली आतंक के गढ़ कहे जाने वाले बस्तर के सुदूर इलाकों में भी लोगों ने बढ़ चढ़कर लोकतंत्र के इस महायज्ञ में अपनी आहुति दी। यह इस बात का संकेत है कि लोकतंत्र के प्रति लोगों का विश्वास बढ़ा है। इससे एक बात और साफ हो गई है कि भटके हुए युवाओं और डरे हुए ग्रामीणों को लगने लगा है कि उनकी समस्याओं का समाधान लोकतांत्रिक तरीके से ही संभव है। इस बार के पंचायत चुनावों में नक्सल प्रभावित क्षेत्र के 60 से अधिक गांवों में पहली बार मतदान हुआ है। इनमें खूंखार नक्सली हिड़मा के गांव पूवर्ती भी शामिल है। इसके लिए चुनाव आयोग के साथ-साथ सुरक्षा बलों के हमारे जवान भी बधाई के पात्र हैं, जिनकी बदौलत वहां के ग्रामीण बेखौफ होकर घरों से निकले और लोकतंत्र के प्रति अपनी आस्था व्यक्त की। बहरहाल, यह पंचायत चुनाव कई मायनों में महत्वपूर्ण रहा। खासकर गांवों में मतदान के प्रति लोगों का रूझान बढ़ना लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत है। वहीं, इस बात की पुष्टि भी हुई है कि लोकतंत्र की जड़ें गांवों में मजबूत हुई है।