शहरी सत्ता की जंग थमी अब परिणामों का इंतजार

 

प्रदेश में शहरी सत्ता की जंग मंगलवार को थम गई। अब परिणाम का इंतजार है। 10 नगर निगम, 49 नगर पालिका और 114 नगर पंचायतों के महापौरों, अध्यक्षों तथा पार्षदों के लिए हुए मतदान में लोगों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। क 68% से अधिक मतदाताओं ने अपने मताधिकार का उपयोग किया। मतदान खत्म होते ही कयासों, अनुमानों और अटकलों का दौर भी शुरू हो गया है। लोग अपने-अपने स्तर पर हार-जीत के कयास लगा रहे हैं, तो वहीं मीडिया में भी इसको लेकर डिबेट हो रहे हैं। दरअसल, शहरी सत्ता का यह चुनाव कई मायनों में महत्वपूर्ण है। खासकर सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के लिए यह लिटमस टेस्ट की तरह है। उसे साबित करना है कि वह अब भी जनता में सबसे लोकप्रिय और चहेती पार्टी है। साथ ही यह चुनाव साय सरकार के 14 महीने के कार्यकाल की भी परीक्षा है। जनता उसे कितने अंक देगी यह तो देखने वाली बात होगी । प्रदेश में लगभग सभी नगरीय निकायों में मुख्य मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के बीच ही रहा है। दोनों दलों ने मतदाताओं को रिझाने में कोई कसर बाकी नहीं रखें। दोनों ने बकायदा घोषणा पत्र जारी कर जनता को यह बताने का प्रयास किया कि वह उनकी समस्याओं के प्रति कितनी गंभीर है। यह सच है कि नगरीय निकाय चुनाव स्थानीय मुद्दों जैसे बिजली, पानी, स्वास्थ्य, शिक्षा और सड़क जैसी मूलभूत सुविधाओं के आधार पर लड़ा जाता है। लेकिन उम्मीदवारों की छवि और मतदाताओं से उनका सतत संपर्क और व्यवहार भी काफी मायने रखता है। इस चुनाव में यह देखने को तो मिला है। लेकिन अन्य मुद्दे भी हावी रहे। बड़े नेताओं ने इस चुनाव में पूरे दमखम के साथ अपने-अपने प्रत्याशियों के पक्ष में जमकर चुनाव प्रचार किया। भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री विष्णु देव साय, सभी मंत्री, विधायक, प्रदेश अध्यक्ष किरण सिंह देव और सांसद बृजमोहन अग्रवाल ने मोर्चा संभाला, तो कांग्रेस की ओर से पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, नेता प्रतिपक्ष चरण दास महंत, प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज, सभी विधायकों और पार्टी पदाधिकारियों के हाथों में प्रचार की कमान रही। भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री साय ने लगभग सभी नगर निगमों में रोड-शो कर पार्टी प्रत्याशियों के पक्ष में वोट मांगा, तो कांग्रेस की ओर से पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी प्रदेश के कई नगर निगमों में जनसभाएं ली। यानी दोनों ओर से प्रचार में कोई कमी दिखाई नहीं दी। हालांकि सत्तारूढ़ पार्टी होने की वजह से संसाधनों में भाजपा काफी आगे थी, लेकिन कांग्रेस ने भी अपने स्तर पर कोई कमी नहीं होने दी। प्रचार के दौरान दोनों दलों की ओर से शब्दों के तीर तो चले ही कार्टून वॉर भी चर्चा में रहा। सत्ता पक्ष के लोग साय सरकार के 14 महीने के कार्यकाल में किसानों को धान बोनस, महतारी वंदन और पिछली कांग्रेस सरकार के कथित घपले-घोटाले के अलावा ट्रिपल इंजन की सरकार बनाने के नारे के साथ अपने प्रचार अभियान को पूरी तन्मयता के साथ चलाया, तो कांग्रेस भूपेश सरकार में किए गए विकास कार्यों का उल्लेख करते हुए साय सरकार की नाकामी बताते रही। इस बीच मतदाता खामोश रहे और खामोशी के साथ अपना मत ईवीएम का बटन दबाकर दे दिया। अब यह 15 फरवरी को पता चलेगा जब ईवीएम खुलेगा। तब तक वेट एंड वॉच के अलावा कोई विकल्प नहीं है। लोकतंत्र में जनता ही जनार्दन है। उनकी खामोशी बहुत कुछ बयां कर रही है। लेकिन दोनों दलों के नेता अपनी-अपनी खामोशी तोड़ जीत का दावा जरूर कर रहे हैं। लेकिन ऊंट किस करवट बैठेगा यह 15 फरवरी को ही पता चलेगा।