– उमेश त्रिवेदी
1950 में बनी एक हिन्दी फिल्म ’आंखें’ में भरत व्यास का एक गाना काफी लोकप्रिय हुआ था- ’मोरी अटरिया पर कागा बोले, मोरा जिया डोले, कोई आ रहा है’। भारत के ग्रामीण अंचलों में माना जाता है कि हवेली या घरों की मुंडेर पर बैठे कौए याने कागा की आवाज परदेस से अपने प्रवासी प्रियजन के आगमन का शुभ संकेत देती है। कांग्रेस के अध्यक्ष पद से राहुल गांधी के इस्तीफे के बाद पिछले एक साल से दिल्ली के 24 अकबर रोड स्थित कांग्रेस मुख्यालय में उदासी का आलम छाया है। कांग्रेस के अध्यक्ष पद की कुर्सी खाली पड़ी है। राजनीतिक सूनापन सांय-सांय कर रहा है, लेकिन कांग्रेस मुख्यालय की मुंडेर पर बैठा कागा अभी तक खामोश है। नए अध्यक्ष के आगमन के शुभ-समाचार सुनने के लिए कांग्रेसजनों के कान तरस गए है। बेचैन कांग्रेसजनो का जिया डोल रहा है, मन बोल रहा है, तन खौल रहा है, लेकिन कोई नहीं आ रहा है…। छठे-चौमासे राहुल गांधी वापसी की आस जगाते हैं, लेकिन फिर असमंजस, अनिर्णय और अनिश्चय के कुहासे में खो जाते हैं। नए अध्यक्ष को लेकर ऊहापोह की स्थिति बरकरार है।
अंतरिम अध्यक्ष के रूप में सोनिया गांधी के कार्यकाल का एक साल पूरा हो जाने के बाद कांग्रेस में संगठनात्मक स्थिरता और स्थायित्व के सवाल फिर सुलग उठे हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर ने इसकी गंभीरताओं को रेखांकित करके उन ज्वलंत सवालों की ओर कांग्रेस हायकमान का ध्यानाकर्षण किया है, जिनके उत्तर राख का ढेर बन चुके हैं। थरूर के तर्को में बेबाक सच्चाई है। उनके इस कथन को नकारना गलत होगा कि लोगों के मन में यह धारणा गहराती जा रही है कि कांग्रेस एक लक्ष्यहीन और दिशाहीन पार्टी है। लोगों के बीच इस धारणा को खत्म करने के लिए कांग्रेस को अपना नया अध्यक्ष ढूंढने की प्रक्रिया को तेज करना होगा। राहुल गांधी के पास साहस,क्षमता, और योग्यता है, लेकिन यदि वह ऐसा नहीं करना चाहते हैं तो पार्टी को नया अध्यक्ष चुनने की दिशा में अवश्य आगे बढ़ना चाहिए। बकौल शशि थरूर, मौजूदा राजनीतिक हालात में मीडिया के उपेक्षापूर्ण तेवरों का सामना करना चुनौतीपूर्ण है। मीडिया यह धारणा बलवती कर रहा है कि कांग्रेस विश्वसनीय राष्ट्रीय विपक्ष की भूमिका का निर्वाह कर पाने में अक्षम है। कांग्रेस हाइकमान को तुरंत इस ओर ध्यान देना चाहिए। सबकी भागीदारी के साथ इस मसले को लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं से निपटाना चाहिए। शशि थरूर की इस वैचारिक पहल में छिपी सच्चाइयों की विवेचना आंख खोलने वाली है। राहुल गांधी ने यह कहते हुए अध्यक्ष पद का परित्याग किया था कि कांग्रेस की कमान अब किसी गैर-गांधी को संभालना चाहिए। इसके बाद पनपी विषम परिस्थितियों के ज्वार-भाटों में संगठन का ढांचा चरमराने लगा है। न तो गांधी-परिवार का लंगर कांग्रेस के जहाज को संभाल पा रहा है, ना ही उनके बगैर कोई पतवार राजनीतिक लहरों का मुकाबला कर पा रही है।
लोकतंत्र के आकाश में राजनीतिक दलों की रंगबिरंगी पतंगों के बीच कांग्रेस कटी पतंग की तरह आकाश में गोते खा रही है। हवाओं के हवाले कांग्रेस को थामने का जज्बा बिखरा नजर आ रहा है। न कोई उसके राजनीतिक चाल-चलन की चरखी संभालने वाला है और ना हीं कोई मुद्दों का मांजा सूतने वाला है। दिल्ली में 26 अकबर रोड स्थिक कांग्रेस मुख्यालय में नए और स्थायी अध्यक्ष को लेकर माहौल बेसब्र होता जा रहा है। देश के सबसे पुरानी राजनीतिक संगठन के पंगु हालात लोकतंत्र के लिए चिंता पैदा करते हैं। कांग्रेस की बदहाली के कारण दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के सामने निरंकुशता के निराकार संकट खड़ा हो गया है।
राजनीतिक हालात किसी से छिपे नही हैं। कांग्रेस 2014 में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की पराजय के बाद पूर्व रक्षा मंत्री एके एंटोनी से कांग्रेस हाइकमान ने कहा था कि वह हार के कारणों का विश्लेषण करे। एंटोनी ने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट मत व्यक्त किया था कि कांग्रेस की हार का कारण लोगों में गहरी पैठी यह धारणा है कि कांग्रेस धार्मिक अल्पसंख्यकों के पक्ष में पूर्वाग्रह ग्रस्त है। इसलिए बहुसंख्यहक मतदाताओं का झुकाव भाजपा की ओर हुआ है। एंटोनी के अनुसार भ्रष्टाचार, मुद्रास्फीति, और दल में व्याप्त अनुशासनहीनता हार के अन्य कारण थे।
पांच अगस्त को अयोध्या में श्रीराम मंदिर के भूमि-पूजन के बाद देश का राजनीतिक परिद्दश्य मंल स्पष्ट बदलाव महसूस हो रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपनी लोकप्रियता के सर्वोच्च शिखर पर है, जबकि राहुल गांधी की लोकप्रियता निरन्तर कम होती जा रही है। कांग्रेस के केन्द्रीय नेतृत्व की कमजोरी विखराव पैदा कर रही है। संगठन की कमजोरी मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में सरकारों के खोने का सबब बन रही हैं। नेताओं के टूटकर जाने का सिलसिला जारी है। भाजपा हर कीमत पर कांग्रेस को मिट्टी में मिलाना चाहती है। स्थिर और स्थायी नेतृत्व के बिना कांग्रेस के लिए इन हालात का मुकाबला करना संभव नही हैं।
राजनीति के समुन्दर में कांग्रेस का टूटा लंगर, लड़खड़ता जहाज
