आपकी बात: महंगाई डायन खाए जात है…!

0 संजीव वर्मा 
   देश में लोगों की दिवाली इस बार फीकी होने वाली है। दरअसल, महंगाई आसमान छू रही है और केंद्र सरकार आंखें बंद कर चैन की नींद ले रही है। एक तरफ प्रतिदिन के उपयोग की सभी वस्तुओं की कीमतों में भारी वृद्धि से लोग परेशान हैं तो दूसरी ओर केंद्रीय रिजर्व बैंक ने लगातार 10वीं बार रेपो दर की दरों में कोई परिवर्तन न कर यह बता दिया कि अभी होम लोन की बढ़ी दरों से छुटकारा मिलने की कोई संभावना नहीं है। माना जा रहा है कि रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति ने यह निर्णय इजराइल और ईरान के बीच चल रही युद्ध जैसी स्थिति और घरेलू महंगाई की दरों को ध्यान में रखकर लिया है। केंद्रीय बैंक ने बढ़ती महंगाई पर लगाम लगाने के लिए पिछले साल यानी फरवरी 2023 में रेपो दर में लगातार वृद्धि करते हुए इसे 6.5 प्रतिशत पर कर दिया था। तभी से लोगों की ईएमआई बढ़ गई है। अलग-अलग लोन की राशि के अनुसार लोगों को हर महीने 2 से 10 हजार रूपए अतिरिक्त चुकाना पड़ रहा है। होम लोन देने वाले बैंकों ने या तो लोगों को प्रति माह जाने वाली ईएमआई बढ़ा दी है या उसी दर पर कर्ज की समय-सीमा 20 साल से बढ़कर 25 या 27 साल कर दिया है। यानी अब इसी दर पर उन्हें लगभग अपने पूरे जीवन भर बैंकों की ईएमआई भरनी पड़ेगी। कर्जदार लोगों को महंगी ईएमआई से छुटकारा तभी मिल सकता है जब रिजर्व बैंक रेपो दरों में कमी करे और उपभोक्ता बैंक लोगों को ब्याज दरों में छूट दें। लेकिन केंद्रीय बैंक ने एक बार फिर इजरायल-ईरान युद्ध की आड़ में रेपो दरों को बरकरार रखा है। ऐसे में महंगाई में कमी आने की संभावना न के बराबर है। इसका सीधा नुकसान आम उपभोक्ताओं को उठाना पड़ रहा है। इस समय दाल-सब्जी से लेकर तेल-मसाले तक की हर चीजों की कीमतें आसमान छू रही है। टमाटर खुदरा बाजार में 100 से 110 रुपए प्रति किलो तक बिक रहा है। आलू का नया सीजन आ गया है, लेकिन इसकी भी कीमतों में कमी नहीं आई है। दाल की कीमत 180 से 200 रुपए प्रति किलो पर बनी हुई है। आटा बढ़कर 40 से 45 रुपए किलो हो गया है। यानी आम लोगों के लिए अपनी थाली में दोनों समय का भोजन जुगाड़ करना भी भारी पड़ रहा है। लोगों की कमाई का एक बड़ा हिस्सा पेट भरने में ही चला जा रहा है और वह कोई बचत नहीं कर पा रहे हैं। ऐसे में बढ़ी ईएमआई से शायद ही निजात मिले। केंद्रीय बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा है कि रिजर्व बैंक ने मौद्रिक नीति के रूख को बदलकर तटस्थ कर दिया है और लगातार 10वीं बार बेंचमार्क ब्याज दर यानी रेपो दर को 6.5 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखा है। उन्होंने कहा कि वित्त वर्ष 2025 के दौरान खुदरा मुद्रास्फीति के 4.5 प्रतिशत रहने का अनुमान है। अच्छे मानसून और पर्याप्त बफर स्टॉक के कारण इस वर्ष के अंत में खाद्य मुद्रास्फीति में कमी आएगी। रिजर्व बैंक के गवर्नर के इस बयान से स्पष्ट है कि वे लोगों में उम्मीद बनाए रखना चाहते हैं, लेकिन यह कैसे होगा यह नहीं बताया। केंद्रीय बैंक मुद्रास्फीति को काबू में रखने के लिए रेपो दर का उपयोग करता है। रेपो दर वह ब्याज दर है जिस पर वाणिज्यिक बैंक अपनी तात्कालिक जरूरतों को पूरा करने के लिए केंद्रीय बैंक से कर्ज लेते हैं। रेपो दर के बढ़ने या घटने का अर्थव्यवस्था पर काफी असर पड़ता है। रेपो दर बढ़ने से बैंकों को ऋण लेना महंगा हो जाता है, जिससे वह अपनी  ऋण दरें बढ़ा देते हैं। इससे घर, कार या व्यक्तिगत ऋण की ईएमआई बढ़ जाती है। हालांकि इससे मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने में मदद मिलती है, लेकिन आर्थिक विकास धीमा हो जाता है। वहीं, रेपो दर के घटने से बैंकों को ऋण लेना सस्ता हो जाता है, जिससे वे अपनी ऋण दरें घटा देते हैं। इससे ईएमआई कम हो जाती है। इसके साथ ही आर्थिक विकास को गति मिलती है।बहरहाल, महंगाई से त्रस्त आम से लेकर खास सभी वर्ग के लोग एक बार फिर गुनगुनाने लगे हैं…
सखी सैया तो खूब ही कमात है,
 महंगाई डायन खाए जात है…!