आपकी बात: कहां चूक गई कांग्रेस?

0 संजीव वर्मा

देश के दो महत्वपूर्ण राज्यों हरियाणा और जम्मू कश्मीर में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा ने जहां हरियाणा में सारे कयासों, अनुमानों और संभावनाओं को झुठलाते हुए तीसरी बार जीत हासिल कर सत्ता की हैट्रिक लगा ली है। वहीं, जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस गठबंधन को अपेक्षा के अनुरूप सफलता मिली है। पिछले 10 सालों से हरियाणा की सत्ता पर काबिज भाजपा के लिए यह राज्य बेहद महत्वपूर्ण हो गया था। इसलिए नहीं कि उसे एंटी इनकंबेंसी का डर सता रहा था बल्कि इसलिए कि वर्षों से चल रहे किसान आंदोलन से दो-चार होना पड़ रहा था। साथ ही महंगाई, गरीबी और बेरोजगारी के रूप में विपक्ष के पास बड़ा मुद्दा था। इस चुनाव परिणाम से एक बार फिर साबित हो गया कि जनता के दिल में क्या है, यह जानना टेढ़ी खीर है। जनता के फैसले के पीछे वजह क्या होती है, यह जानना भी कठिन है। मतदान के बाद सारे टीवी चैनलों के एग्जिट पोल और राजनीतिक विश्लेषकों द्वारा यह कहा जा रहा था कि हरियाणा में कांग्रेस क्लीन-स्वीप करते हुए एकतरफा जीत हासिल करेगी, लेकिन हुआ ठीक इसके विपरीत। जनता यहां भाजपा के लिए जनार्दन बनकर उसकी नैया पार लगवा दी। ऐसा माना जा रहा है कि कांग्रेस को जिस तरह से पिछले 10 साल से काबिज भाजपा सरकार के खिलाफ जनता के गुस्से का फीडबैक मिला था उसे लेकर वह अति-आत्मविश्वास में थी। और कहीं ना कहीं यही अति-आत्मविश्वास उस पर भारी पड़ गया। जवान, पहलवान और किसान जिसे वह अपने पक्ष में बता रही थी उसे साधने में वह नाकाम रही। कांग्रेस को उम्मीद थी कि जाट समुदाय भाजपा के खिलाफ एकजुट होकर उसे वोट करेगा। राज्य में जाटों की आबादी लगभग 25 फ़ीसदी है और 40 सीटों पर उनका सीधा प्रभाव है। कृषि कानून के खिलाफ किसानों का गुस्सा, विनेश फोगाट और साक्षी मलिक जैसे खिलाड़ियों का साथ हुए अन्याय पर गुस्सा और पिछले 10 सालों से जाटों की उपेक्षा का दंश जैसे वजह से लग रहा था कि जाट भाजपा के खिलाफ थे। कांग्रेस इसे अपने पक्ष में मानकर चल रही थी। लेकिन वह यह समझ नहीं पाई कि भाजपा ने गैर जाट जातियों को एकजुट करके पाला अपने पक्ष में कर लिया। दूसरी ओर, जाट समुदाय के वोट कांग्रेस के साथ जेजेपी और इनेलो जैसी पार्टियों में बंट गए, जबकि भाजपा ने पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को येन वक्त पर हटाकर एंटी इनकंबेंसी को खत्म करने की कोशिश की। वहीं, आम आदमी पार्टी से गठबंधन न होना भी कांग्रेस के खिलाफ गया। ‘आप’ और कांग्रेस का वोट लगभग एक ही तबके से आता है इन वोटों में ‘आप’ ने कहीं ना कहीं सेंध लगा दी। कई सीटों पर हार-जीत में ‘आप’ के पक्ष में गए वोटों ने बड़ी भूमिका निभाई। जिन सीटों पर कम मार्जिन से हार-जीत हुई वहां ‘आप’ ने भाजपा को फायदा पहुंचाया। दूसरी ओर कश्मीर में धारा 370 हटाने और जम्मू कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश बनाने के बाद हुए पहले चुनाव में कांग्रेस-नेशनल कांफ्रेंस गठबंधन ने जीत हासिल कर ली है। इस जीत के कई मायने हैं। इससे जहां ‘इंडिया’ गठबंधन मजबूत होगा। वहीं, नेशनल कांफ्रेंस को फिर से राजनीति में पैठ जमाने का मौका मिल गया। जबकि पीडीपी को चिंतन करने की जरूरत है। भाजपा को कहीं न कहीं जम्मू कश्मीर से पूर्ण राज्य का दर्जा छीनने तथा धारा 370 के खिलाफ लोगों के आक्रोश के चलते सीटें गंवानी पड़ी है। दरअसल, यहां के मुद्दे ही अलग हैं। कुल मिलाकर कश्मीर में अनुमान के अनुरूप परिणाम आए हैं। शायद भाजपा को यह आभास भी हो गया था। बहरहाल, इन दोनों राज्यों के नतीजे का असर महाराष्ट्र और झारखंड के चुनाव पर भी पड़ेगा, जहां शीघ्र ही चुनाव होने हैं। ऐसा माना जा रहा है कि हरियाणा की जीत से भाजपा को वहां फायदा मिल सकता है। वहीं, कांग्रेस को जम्मू कश्मीर में गठबंधन की जीत से कितना फायदा मिलेगा यह वक्त बताएगा। फिलहाल कांग्रेस को नए सिरे से अपनी रणनीति पर आत्म चिंतन करना होगा, कि आखिर उससे चूक कहां हुई?