मनेन्द्रगढ़। जिला,एमसीबी के मनेन्द्रगढ़ झगराखाण्ड सहित आसपास कोयलांचल क्षेत्र में पति की दीर्घायु होने और परिवार की सुख समृद्धि आने के लिए श्रद्धा और विश्वास के साथ पूरे विधि विधान पूर्वक हरतालिका व्रत (तीज) का पर्व मनाया गया। शुभ प्रातः काल से ही सभी महिलाओं ने निर्जला व्रत रखकर रात्रि मैं फुलेरा लगाकर रात्रि में जागरण करते हुए भक्ति गीत के साथ समापन किया । सभी महिलाएं पूरी रात शिव माता पार्वती का विधि विधान पूर्वक पूजन अर्चन किया। इस अवसर पर महिलाएं भक्ति गीतों,के साथ ही साथ ढोल ,मंजीरा ,हरमोनिया सहित भजन-कीर्तन करती रही । सभी महिलाओं ने अपने पूरे श्रृंगार के साथ जिसमें हाथों में सुंदर कलात्मक ढंग से मेहंदी रची हुई सोलह सिंगार करते हुए भगवान शंकर माता पार्वती की भक्ति गीत पूजन करके आनंद विभोर हुई । इस दौरान महिलाओं ने झूले का भी आनंद उठाया ।
ज्ञात हो कि हरितालिका तीज का उत्सव महिलाओं का उत्सव है। जब सम्पूर्ण प्रकृति हरियाली से आच्छादित हो जाती है उस अवसर पर महिलाओं के मन मयूर नृत्य करने लगते हैं। वृक्ष की शाखाओं में झूले पड़ जाते हैं। सुहागन स्त्रियों के लिए यह व्रत बहुत महत्व रखता है। आस्था, उमंग, सौंदर्य और प्रेम का यह उत्सव शिव-पार्वती के पुनर्मिलन के उपलक्ष्य में यह पूजा विधि इच्छित वर और अखंड सौभाग्य के लिए मनाया जाता है। इस अवसर पर प्रकृति अपने पूरे यवन पर चारों ओर हरियाली होने के कारण इसे हरितालिका तीज कहते हैं। इस अवसर पर महिलाएं कन्याएं लोकगीत गाकर प्रभु को स्मरण करती है और आनन्द मनाती हैं इसको हरतालिका व्रत के नाम से भी लोग जानते है। यह व्रत भादो मास के शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाया जाता है। कथा के अनुसार गौरी शिव से शादी करना चाहती थी जबकि उनके पिता गौरी की शादी भगवान विष्णु से कराना चाहते थे लेकिन गौरी शिव को मन ही मन अपना पति मान चुकी थी। यह बात गौरी ने अपने सहेलियों को बताया सहेलियां गौरी को उसके घर से लेकर जंगल पहुंची जहां वे लोग मिट्टी का शिवलिंग बनाकर साधना करने लगी। भगवान शिव ने दर्शन देकर जन्म -जन्म तक पति के रूप में रहने का वरदान दिया। जिस दिन शिव ने गौरी को वरदान दिया वह दिन भादो महीने की शुक्ल पक्ष तृतीया की तिथि थी। तभी से इस व्रत को मनाने की परंपरा शुरू शुरू किया गया।