0 संजीव वर्मा
देश इन दिनों महिला सुरक्षा को लेकर बेहद चिंतित है। आए दिन महिलाओं के साथ हो रही दरिंदगी की घटनाएं विचलित करने वाली है। लेकिन केवल चिंतित होने मात्र से इस समस्या का निदान निकलने वाला नहीं है, बल्कि इसके लिए समाज, सरकार और कानून तीनों को मिलकर एक साथ विभिन्न मोर्चों पर काम करना होगा। पिछले दिनों कोलकाता में हुई दुष्कर्म की घटना के बाद महिला सुरक्षा को लेकर एक बार फिर सवाल उठने लगे हैं। लेकिन यक्ष प्रश्न यह है कि क्या ऐसी घटनाएं पहली बार हुई है। सब जानते हैं इस तरह की घटनाएं बार-बार हो रही है। लोग कैंडल मार्च कर सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे हैं। रैलियां निकाली जा रही है। लेकिन ऐसी घटनाओं पर अंकुश नहीं लग पा रहा है। इसका कारण यह है कि मीडिया की सुर्खियां तो इसमें मिल जाती हैं, लेकिन इस समस्या का कोई समाधान नहीं निकल पाता है। राजनीतिक दल एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाकर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेते हैं। इस तरह की घटनाएं केवल किसी राज्य विशेष में हो रही है ऐसा नहीं है। इससे पूरा देश मर्माहत है। कोई भी राज्य इससे अछूता नहीं है। छत्तीसगढ़ में भी दुष्कर्म की घटनाएं सामने आई है। इस घटना को लेकर जहां विपक्ष हमलावर है। वही सत्ता पक्ष, विपक्ष को पुरानी घटनाएं याद दिला रहा है। यानी ऐसी घटनाओं को रोकने के बजाए एक दूसरे पर कीचड़ उछालने में लगे हुए हैं। कीचड़ उछालने वालों को शायद यह याद नहीं रहता है कि किसी का भी दामन इसमें पाक साफ नहीं है क्योंकि सरकार किसी की भी हो इस प्रकार की घटनाएं निरंतर बढ़ रही है।ऐसे में महिला सुरक्षा की बात बेमानी लगने लगती है। आज हर दिन हर क्षण देश के किसी न किसी कोने में वासना में लिप्त ‘भेड़िए’ किसी न किसी का शिकार कर रहे हैं। फिर चाहे वह बच्ची हो या बूढ़ी महिलाएं। उनको कोई फर्क नहीं पड़ रहा है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो की सालाना रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2022 में महिला अपराध के 4,45,256 मामले दर्ज किए गए। वहीं, प्रति घंटे 51 एफआईआर दर्ज की गई। यह आंकड़े अपने आप में यह बताने के लिए काफी है कि देश में महिलाओं पर किस हद तक अत्याचार दिन दूने रात चौगुनी बढ़ रहे हैं। दुष्कर्म की बढ़ती घटनाएं यह बताने को पर्याप्त हैं कि आज हम बर्बर समाज में जीने को मजबूर हैं। जब तक इस पर ठोस कार्रवाई नहीं होगी समाज में ऐसे ‘भेड़िए’ घूमते रहेंगे। ऐसा नहीं है कि ऐसे जघन्य अपराधों के लिए कड़े कानून नहीं है। देश में कड़े कानून भी है और तेजी से मामलों के निराकरण के लिए फास्ट ट्रैक अदालतें भी हैं। लेकिन महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराध पर अंकुश लगाने में कामयाबी नहीं मिली है। कोलकाता की घटना के बाद एक बार फिर देश आंदोलित है। यह घटना करीब एक दशक पहले दिल्ली में निर्भया के साथ हुई अमानवीयता और उसके बाद महिला सुरक्षा को लेकर उठाए गए कदमों पर दोबारा सोचने पर मजबूर करती है।हालांकि केंद्र सरकार ने सार्वजनिक स्थलों पर महिलाओं के लिए सुरक्षित वातावरण बनाने निर्भया फंड बनाया था। इस फंड से अब तक 5213 करोड रुपए राज्यों को आवंटित किए जा चुके हैं। लेकिन स्थिति जस की तस बनी हुई है। छेड़छाड़ और दुष्कर्म की घटनाएं लगातार बढ़ रही है। शर्मनाक बात यह है कि जब लोग ऐसी घटनाओं पर सिस्टम की नाकामी पर सवाल उठाते हैं, तो इस पर राजनीति शुरू हो जाती है और महिलाओं की सुरक्षा का मुद्दा पीछे छूट जाता है। दरअसल, महिला सुरक्षा एक जटिल मुद्दा है। इसका समाधान केवल कानून के जरिए संभव नहीं है। इसके लिए समाज के सभी तबकों को आगे आना होगा। लड़की-लड़कों दोनों को समानता और सम्मान के मूल्य सिखाने की जरूरत है। समाज में महिलाओं के प्रति दृष्टिकोण में बदलाव की जरूरत है। पितृ सत्तात्मक सोच को खत्म करने के लिए सामाजिक परिवर्तन जरूरी है। साथ ही कानून का सख्ती से पालन और त्वरित न्याय महिलाओं की सुरक्षा के लिए अनिवार्य है। कानून बनाने और उन्हें लागू करने के बीच के अंतर को खत्म करने के लिए सरकार को ठोस कदम उठाने होंगे। महिला सुरक्षा के इस संघर्ष में समाज, सरकार और कानून तीनों को समान रूप से काम करने की जरूरत है। जब तक मिलकर इस दिशा में ठोस कदम नहीं उठाएं जाएंगे तब तक महिला सुरक्षा का सपना अधूरा ही रहेगा।