यही है लोकतंत्र की महिमा..!

0 संजीव वर्मा
लोकसभा चुनाव के रुझानों /नतीजों में भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन को जोरदार झटका लगा है। 400 पार का नारा देने वाला यह गठबंधन 300 का आंकड़ा पार करने के लिए भी तरसता नजर आ रहा है। अभी तक के रुझानों/नतीजों से स्पष्ट है कि देश में गठबंधन की सरकार बनेगी। भाजपा को उत्तर प्रदेश और बंगाल जैसे राज्य में काफी नुकसान झेलना पड़ा है। साथ ही महाराष्ट्र में भी विपक्षी इंडिया गठबंधन का प्रदर्शन शानदार रहा है। भाजपा को उड़ीसा और तेलंगाना जैसे राज्यों में फायदा हुआ है, लेकिन यह नुकसान की भरपाई करने के लिए नाकाफी साबित हुआ है। हालांकि, देश में भाजपा गठबंधन यानी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की सरकार बनती नजर आ रही है। नरेंद्र मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री के पद को सुशोभित करेंगे। जिस दिन वे प्रधानमंत्री पद की शपथ लेंगे उस दिन वे देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के लगातार तीसरी बार सरकार बनाने की रिकॉर्ड की बराबरी करने का इतिहास रच देंगे। भाजपा के लिए यह बड़ी उपलब्धि होगी। लेकिन इस बार के चुनाव नतीजे न केवल  उम्मीदों के विपरीत रहे बल्कि चौंकाने वाले भी रहे। देश की जनता ने बता दिया कि लोकतंत्र  में वही माई बाप है। लोकतंत्र में जिसने भी अपने आप को सर्वोच्च साबित करने का प्रयास किया, जनता ने उसे करारा जवाब दिया है। इस बार कमोबेश वैसे ही हुआ। भले ही भाजपा गठबंधन ने सरकार बनने लायक सीटें हासिल कर ली हो, लेकिन 400 पार के उसके नारे को जनता ने धूल-धूसरित कर दिया है। वह ऐसा क्यों और कैसे हुआ, यह चिंतन का विषय है। वैसे देखा जाए तो भाजपा के लिए यह उपलब्धि की भी बात है कि वह लगातार तीसरी बार सत्ता पर काबिज होने के करीब पहुंच रही है। लेकिन वह अपने दम पर लगातार तीसरी बार सरकार बनाने का कारनामा करने से चूक गई। यह चूक कहां हुई इस पर भाजपा और उनके नेतृत्व के लिए चिंता का विषय होना चाहिए। दरअसल चुनाव के दौरान भाजपा ने आम जनता के मुद्दों की जिस तरह से अनदेखी की है उसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। पूरा चुनाव धर्म, संप्रदाय, मंदिर, मस्जिद, धारा 370 और राष्ट्रवाद के इर्द-गिर्द ही चलता रहा। जनता के मुद्दे सिरे से गायब रहे। प्रधानमंत्री ने अपने भाषणों में कभी भी गरीबी, बेरोजगारी और महंगाई का जिक्र नहीं किया। पूरे चुनाव अभियान में राष्ट्रवाद ही छाया रहा। प्रधानमंत्री ने तो कांग्रेस के घोषणा पत्र पर कटाक्ष करते हुए उसकी मुस्लिम लीग से तुलना तक कर डाली। शायद यह सब जनता को नागवार लगी और मत के रूप में अपना गुस्सा जाहिर किया। उधर, कांग्रेस के नेतृत्व वाले इंडिया गठबंधन को भले ही बहुमत नहीं मिला हो, लेकिन वह एक मजबूत और सशक्त विपक्ष के रूप में उभरकर सामने आया है। यह लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत है। अब वह मजबूती के साथ सरकार की पहरेदारी कर सकेगा। वैसे आम चर्चा है कि लोगों को मोदी सरकार की कुछ संतुष्टीकरण वाली नीतियां तो पसंद है, लेकिन कतिपय राजनीतिक व प्रशासनिक मामलों में उसकी मनमानी नापसंद भी है। शायद यही वजह है कि जनता ने एक मजबूत विपक्ष देने की कोशिश की है, ताकि दूरगामी व्यापक जनहित की रक्षा की जा सके। साफ शब्दों में कहें तो जनता को यह कतई पसंद नहीं है कि उनके मत से बनने वाली सरकार पूंजीवादी ताकतों के हाथ में खेले और जनविरोधी कानून संसद में बनाए। जैसा कि पिछले 10 वर्षों में महसूस किया जा चुका है। जहां तक कांग्रेस का सवाल है तो उसका प्रदर्शन बेहतर रहा है। उसने पूरे चुनाव में लोकतंत्र और संविधान की रक्षा को लेकर जनता के बीच गई। पांच न्याय और 21 गरंटीयों वाले घोषणा पत्र भाजपा के घोषणा पत्र की तुलना में बेहतर माना गया था, लेकिन लगता है कांग्रेस कार्यकर्ता घोषणा पत्र में किए गए वादे को जनता के बीच ले जाने में असफल रहे। जहां तक छत्तीसगढ़ का सवाल है तो भाजपा को यहां आशा के अनुरूप सफलता मिली है। 11 में से 10 सीटों पर उसे जीत मिली है। राज्य में 5 महीने पहले हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा ने शानदार जीत दर्ज की थी। लोकसभा चुनाव में उसे इसका फायदा मिला है। बहरहाल, नतीजे में भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए स्पष्ट संदेश है कि यदि भारतीय राजनीति में उन्हें प्रासंगिक बने रहना है तो अपनी नीति-रीति में व्यापक बदलाव करने होंगे, अन्यथा लोग क्षेत्रीय दलों को ज्यादा तवज्जो देंगे जिन्हें वे अपने सच्चे प्रतिनिधि मानते हैं। पिछले दो लोकसभा चुनाव में  मृतप्राय हो चले क्षेत्रीय दल इस बार पूरी मजबूती के साथ उभरे हैं। जहां-जहां वे कांग्रेस या भाजपा के साथ रहे वहां पर उन्होंने उन्हें लाभान्वित भी किया है। फिर चाहे उत्तर प्रदेश में सपा हो, तमिलनाडु में द्रमुक हो, आंध्र प्रदेश में तेदेपा हो या फिर बिहार में राजद या जनता दल यू। सभी क्षेत्रीय दलों ने अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज कराई है।