आपकी बात: निर्दोष आदिवासियों को सजा न मिलें

0 संजीव वर्मा 
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा था कि भले ही 100 अपराधी बच जाएं, लेकिन एक भी निर्दोष को सजा नहीं होनी चाहिए। गांधी जी की इन बातों को मैं नक्सल समस्या के संदर्भ में उद्गृत कर रहा हूं। चूंकि प्रदेश में इन दिनों नक्सली मुठभेड़ और इसकी आड़ में ग्रामीणों के मारे जाने की खबरें सामने आ रही है, जो जायज नहीं है। बेशक नक्सली समाज, राज्य और राष्ट्र के विकास में बाधक हैं और उन्हें इसकी सजा मिलनी चाहिए। लेकिन उनकी जगह अगर किसी निर्दोष आदिवासी को सजा मिले तो उसे जायज नहीं ठहराया जा सकता। दरअसल, अभी हाल ही में बीजापुर जिले के पीडिया के जंगल में नक्सली और सुरक्षा बलों के बीच हुई मुठभेड़ में 12 लोगों की मौत हुई थी तथा 6 अन्य लोग घायल हो गए थे। इस संबंध में पुलिस ने दावा किया था कि मारे गए सभी लोग नक्सली थे। लेकिन मुठभेड़ के बाद पीडिया और ईतवार के ग्रामीणों ने पुलिस के दावे पर आपत्ति जताते हुए कहा कि मुठभेड़ में नक्सलियों के साथ ग्रामीण भी मारे गए थे। कांग्रेस ने पुलिस के दावे की सच्चाई जानने के लिए एक जांच दल का गठन किया था। जो मौके पर जाकर ग्रामीणों से बातचीत की और घटना की पूरी जानकारी ली। जांच दल ने पीड़ित परिवारों के परिजनों से अलग-अलग पूछताछ कर उनका बयान लिया। बयान में उन्होंने बताया कि मुठभेड़ में पुलिस ने कुछ ग्रामीणों को नक्सली बताकर मार डाला। हालांकि ग्रामीणों ने यह भी स्वीकार किया कि कुछ लोग नक्सली गतिविधियों में शामिल थे और  संघम सदस्य के रूप में काम करते थे। लेकिन पुलिस ने इसकी आड़ में निर्दोष ग्रामीणों को भी नहीं बख्शा। ऐसे में पुलिस की कार्यप्रणाली पर संदेह होना लाजमी है। ग्रामीणों की शिकायतें बेहद गंभीर है। इस गंभीरता को देखते हुए जरूरी है कि इस मामले की उच्च स्तरीय और निष्पक्ष जांच हो। कांग्रेस ने इस मुठभेड़ की घटना की उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की निगरानी में जांच की मांग की है। उधर, भाजपा ने कांग्रेस पर आरोप लगाया है कि वह नक्सलियों का समर्थन कर रही है। उसने कांग्रेस से सवाल किया कि वह अपना रूख स्पष्ट करे कि राज्य से नक्सलियों का खात्मा चाहती है या नहीं। लगता है कि दोनों प्रमुख राजनीतिक पार्टी नक्सलियों की आड़ में अब राजनीति करने लगी है, जो उचित नहीं है। चूंकि भाजपा सत्ता में है। ऐसे में उनकी जिम्मेदारी बढ़ जाती है। यदि ग्रामीणों ने कहा है कि मारे गए कुछ लोग ग्रामीण हैं तो जांच करने में कोई परहेज नहीं होना चाहिए। नक्सलियों के सफाए  के लिए पहली आवश्यकता ग्रामीणों का विश्वास जीतना होना चाहिए। यदि ग्रामीणों का विश्वास हासिल हो जाएं तो नक्सलियों के खिलाफ अभियान में सफलता को कोई नहीं रोक पायेगा। पुलिस और प्रशासन को चाहिए कि वह ग्रामीणों से सामंजस्य बनाकर काम करें। फर्जी मुठभेड़ की खबर निराश करने वाली है। इससे नक्सल प्रभावित क्षेत्र के ग्रामीण अपने-आपको न केवल असहाय समझने लगते हैं बल्कि शासन-प्रशासन से उनकी दूरियां भी बढ़ती चली जाती है, जो अच्छा संकेत नहीं है। यहां यह बताना भी जरूरी है कि प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के बाद नक्सल ऑपरेशन में तेजी आई है। इस साल मुठभेड़ में अब तक 120 से अधिक नक्सली मारे गए हैं। सैकड़ो गिरफ्तार हुए हैं और बड़ी संख्या में नक्सली आत्म समर्पण भी कर रहे हैं। इस बीच, नक्सलियों की ओर से नि:शर्त वार्ता का प्रस्ताव भी आया है, जो शांति की दिशा में अच्छा कदम साबित हो सकता है। नक्सलियों के केंद्रीय प्रवक्ता की ओर से पिछले हफ्ते इस संबंध में पत्र जारी किया गया था, जिसमें कहा गया है कि सरकार की ओर से वार्ता के लिए उचित वातावरण बनाने की आवश्यकता है। खून खराब रोकने के लिए नक्सली वार्ता का प्रस्ताव स्वीकारते हैं। इससे पहले नक्सलियों की दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी ने भी सशर्त वार्ता का प्रस्ताव रखा था, जिसमें सुरक्षा बलों को 6 माह तक बैरकों में सीमित करने और नए कैंप खोलने पर रोक की शर्त रखी थी। निश्चित रूप से नक्सलियों की ओर से ताजा नि:शर्त वार्ता का प्रस्ताव अच्छा संकेत है। गृह मंत्री विजय शर्मा ने भी अभी हाल ही में अपने बस्तर प्रवास के दौरान नक्सलियों को बड़ा संदेश देते हुए पुनर्वास नीति बनाने के लिए उनसे सुझाव मांगा था। साथ ही नक्सलियों को वार्ता के लिए सामने आने को कहा था। बहरहाल, सरकार और नक्सली दोनों ओर से सकारात्मक बातें सामने आ रही है। यदि इस समस्या का शांतिपूर्ण समाधान की दिशा में पहल होती है तो दशकों से इस समस्या से जूझ रहे छत्तीसगढ़ के लिए उल्लेखनीय उपलब्धि होगी। अब नक्सलियों को चाहिए कि वह हथियार छोड़ शांतिपूर्ण ढंग से शांति वार्ता के लिए आगे आएं और अपनी बात रखें। हिंसा किसी समस्या का समाधान नहीं हो सकता। गांधी जी ने पूरे विश्व को अहिंसा का रास्ता दिखाया था। अहिंसा ही एकमात्र ऐसा हथियार है जिसके जरिए शांति की स्थापना संभव है। नक्सलियों के साथ-साथ सरकार भी इसे समझे और नक्सल समस्या को जड़-मूल से खत्म करने का अपना संकल्प पूरा करे।