आपकी बात: लोकसभा चुनाव, मेरी कमीज  तेरी कमीज से ज्यादा उजली

0 संजीव वर्मा 
देश में लोकसभा चुनाव के दो चरण पूरे हो गए हैं। तीसरे चरण के चुनाव की ओर देश आगे बढ़ रहा है। चुनावी सभाओं में राजनेता नैतिकता और मर्यादा को तिलांजलि देकर ” मेरी कमीज तेरी कमीज से उजली” बताने में लगे हुए हैं। अब तक 190 सीटों पर मतदान संपन्न हो चुका है। पहले चरण में 102 और दूसरे चरण में 88 सीटों पर वोट डाले गए। चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक इस बार दोनों चरण में मतदान के प्रतिशत में गिरावट दर्ज की गई है, चुनाव आयोग की लाख कोशिशों के बावजूद मतदान प्रतिशत में गिरावट चिंतनीय है। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल है कि लोगों की मतदान के प्रति बेरूखी क्यों? क्यों जनता मतदान के लिए घर से नहीं निकल रही है। इसका जवाब ढूंढा जाना चाहिए। वैसे हमारा मानना है कि भीषण गर्मी, स्थानीय मुद्दों की कमी और जनप्रतिनिधियों के प्रति नाराजगी इसका एक बड़ा कारण हो सकता है । इसके अलावा महंगाई, बेरोजगारी और गरीबी जैसे बड़़े मुद्दे भी है, लेकिन मतदाताओं का ध्रुवीकरण नहीं हो सका है, इसलिए बड़ी संख्या में लोग वोट डालने नहीं गए। इससे राजनीतिक दलों के कान खड़े हो गए हैं। अमूमन कहा जाता है कि जब सत्ता विरोधी लहर होती है तो बंपर वोटिंग होती है, लेकिन यह मिथक कई बार टूट चुका है। एक तर्क यह भी है कि जब कम वोटिंग होती है तो भाजपा के लिए वह निराशाजनक होती है। हालांकि भाजपा के नेता दावा कर रहे हैं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में एक बार फिर एनडीए की सरकार बनेगी। दूसरी तरफ कांग्रेस नेताओं का दावा है कि कम वोटिंग और मतदाताओं के रूझान से भाजपा परेशान है। उनका दावा है कि जब भी कम वोटिंग हुई है, सत्ता कांग्रेस के हाथ में आई है। यहां यह बताना लाजिमी है कि 2004 के चुनाव में 1999 से करीब दो प्रतिशत कम वोट पड़े थे, तब केंद्र से अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी चुनाव हार गई थी और डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार बनी थी। हालांकि तब और अब में काफी फर्क है। जहां तक छत्तीसगढ़ का सवाल है तो यहां दो चरणों में चार लोकसभा सीटों, बस्तर, कांकेर, राजनांदगांव और महासमुंद में चुनाव संपन्न हो गया है। पिछले चुनाव की तुलना में यहां अधिक मतदान हुआ है। सर्वाधिक मतदान राजनांदगांव में 76.24 प्रतिशत हुआ है। अब लोग इसके मायने निकालने में जुट गए हैं। सबके अपने-अपने दावे हैं। अधिक मतदान का अर्थ सत्ता विरोधी माना जाता है। ऐसे में कांग्रेस इसे अपने पक्ष में बता रही है तो भाजपा के अपने तर्क है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि मतदाताओं का मत किसके पक्ष में आता है। बहरहाल, देशभर में हुए दो चरण के  मतदान में गिरावट के बाद दोनों प्रमुख दल कांग्रेस और भाजपा के नेता शब्दों के तीखे तीर छोड़ने लगे हैं। जनहित के मुद्दे दरकिनार हो गए हैं। लोगों की भावनाओं को उद्वेलित किया जा रहा है। प्रधानमंत्री मोदी ने पश्चिम बंगाल की सभा में यह कहकर सहानुभूति हासिल करने की कोशिश की, कि ‘मुझे ऐसा लगता है कि मैं पिछले जन्म में बंगाल में पैदा हुआ था या फिर अगला जन्म मेरा यही होने वाला है।’ प्रधानमंत्री के इस बयान के कई राजनीतिक मायने निकाले जा रहे हैं। अब यह देखना होगा कि प्रधानमंत्री के इस बयान को पश्चिम बंगाल की जनता किस रूप में लेगी। यह सच है कि आज सभी राजनीतिक दल वास्तविक मुद्दों से अपना पिंड छुड़ा रही है। भाजपा ने पिछले 10 वर्षों के अपने कामकाज के नाम पर वोट मांगने की बात की थी। लेकिन प्रधानमंत्री से लेकर भाजपा का हर छोटा-बड़ा नेता इस पर बात ही नहीं कर रहे हैं। वे सभी कांग्रेस, राहुल गांधी और गांधी-नेहरू परिवार को ही घेर रहे हैं। भाजपा जब 2014 के चुनाव में मोदी के नेतृत्व में जीतकर आई थी तब उसने महंगाई, बेरोजगारी, डीजल-पेट्रोल के दाम, दो करोड़ नौकरियों का वादा, राम मंदिर और धारा 370 जैसे कई लोकलुभावन मुद्दों पर बात की थी। लेकिन इस बार इसकी कमी है। वह अपने चुनावी घोषणा-पत्र को छोड़ कांग्रेस के  घोषणा-पत्र पर टीका टिप्पणी करते हुए मंगल सूत्र पर उतर आई है। दूसरी ओर, राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस और उसके सहयोगी दल जातीय जनगणना, आरक्षण खत्म करने की भाजपा की कोशिश, संविधान बदलने का भय के साथ महंगाई, बेरोजगारी, किसानों को समर्थन मूल्य देने और न्याय योजना के तहत महिलाओं, विद्यार्थियों को पैसे और बेरोजगारों को आपरेंटिशशिप देने जैसे कई लोकलुभावन मुद्दों की बात कह रही है। इस सबके बीच भाजपा एक बार फिर हिन्दू-मुस्लिम ध्रुवीकरण में जुटी हुई है तो कांग्रेस और उसके सहयोगी अनुसूचित जाति-जनजाति और पिछड़ा वर्ग को लामबंद करने में लगी हुई है। ऐसे में यह चुनाव आमजन के मुद्दों से भटका हुआ नजर आ रहा है। कहीं भी गांव-गरीब, किसान और युवाओं की बातें नहीं हो रही है।