0 संजीव वर्मा
लोकसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस-भाजपा सहित सभी दल अलर्ट मोड पर आ गए हैं। आदर्श आचार संहिता को लागू होने में चंद सप्ताह ही बाकी है। ऐसे में सभी दलों और गठबंधन के नेता अपने-अपने कुनबा को संभालने में लगे हैं। सबसे बड़ा सवाल यही है की आखिर “जय श्री राम” और “मोदी की गारंटी” का कांग्रेस कैसे मुकाबला कर पाएगी। मिशन 370 में जुटी भाजपा अपने गठबंधन यानी “राजग” में नीतीश को साथ लेकर मजबूती के साथ आगे बढ़ रहा है, तो कांग्रेस का ‘‘इंडिया’’ गठबंधन की गाड़ी भी धीरे-धीरे पटरी पर आ रही है। आम आदमी पार्टी के साथ 5 राज्यों में सीट शेयरिंग का मुद्दा सुलझ जाने और उत्तरप्रदेश में अखिलेश की सपा के साथ आने से ‘‘इंडिया’’ के नेताओं ने राहत की सांस ली है। लेकिन, ममता बैनर्जी के रूख से प. बंगाल में ‘‘एकला चलो’’ की स्थिति दिख रही है। हालांकि ममता के रूप में भी बदलाव आ रहा है और वह कांग्रेस से गठबंधन के लिए लगभग तैयार दिख रही हैं। झारखंड और बिहार में ‘‘इंडिया’’ फिलहाल अच्छी स्थिति में है। लालू यादव की पार्टी राजग और हेमंत सोरेन की झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस के साथ मजबूती के साथ खड़ी हुई है। ऐसे में भाजपा के लिए यहां कितना मौका बनता है, यह देखना होगा। हालांकि, नीतीश के साथ आने से उसे पुराने परिणाम दोहराए जाने की उम्मीद है। लेकिन, पार्टी के अंदर मचे घमासान से राह आसान नहीं है। पार्टी का एक तबका नीतीश के साथ आने से खुश नहीं है। नीतीश के साथ भी यही स्थिति है। उनके अपने लोग ही भाजपा से गठबंधन के बाद कटे-कटे से दिख रहे हैं। इस बीच, भाजपा अपने राज्यों के मुख्यमंत्रियों, प्रदेश अध्यक्षों और प्रभारियों की बैठक लेकर राज्यवार रणनीति बनाने में जुटी हुई है। सूत्रों का कहना है कि भाजपा मार्च के पहले सप्ताह में ही करीब 100 सीटों पर अपने प्रत्याशियों की घोषणा कर सकती है। ऐसा कहा जा रहा है कि पिछले साल छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश सहित 5 राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव की तर्ज पर वह उन सीटों पर प्रत्याशियों के नाम पहले घोषित करेगी, जहां वर्ष 2019 के चुनाव में वह हार गई थी। ऐसा इसलिए किया जाएगा ताकि प्रत्याशियों को तैयारियों के लिए समय मिल सके। यहां यह बताना लाजिमी है कि पिछले चुनाव में भाजपा को 161 लोकसभा सीटों पर पराजय का सामना करना पड़ा था। इनमें 72 सीटें ऐसी थीं, जिसमें पार्टी दूसरे स्थान पर थी। ऐसे में वह जिन सीटों पर दूसरे, तीसरे या चौथे स्थान पर थी, ऐसी करीब 100 सीटों पर वह प्रत्याशियों की घोषणा करना चाहती है, ताकि मिशन 370 को अमलीजामा पहनाया जा सके। यहीं नहीं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अभी हाल ही में हुई राष्ट्रीय परिषद की बैठक में आगामी 100 दिनों के अंदर सभी बूथों तक पहुंचने, खासकर पहली बार मत देने वाले युवाओं से संवाद करने और जिन्होंने अब तक भाजपा को मतदान नहीं किया है, उनसे हर हाल में संपर्क साधने का आव्हान किया है। प्रधानमंत्री के इस आव्हान के बाद पार्टी ने इस दिशा में व्यापक कार्ययोजना तैयार की है। देखना होगा कि पार्टी पदाधिकारी और कार्यकर्ता इस पर कितना कुछ कर पाते हैं। वैसे हिन्दी भाषी राज्यों में भाजपा की स्थिति अच्छी है। लेकिन, दक्षिण राज्यों में वह कमजोर है। ऐसे में वह इन राज्यों के लिए भी खास रणनीति बनाने में जुट गई है। दक्षिण के राज्यों, विशेषकर आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु और तेलंगाना में क्षेत्रीय दलों का अच्छा-खासा प्रभाव है। ऐसे में वह छोटे-छोटे दलों को राजग में शामिल कर अपना प्रभाव बढ़ाना चाह रही है। आंध्रप्रदेश में भाजपा तेलुगू देशम पार्टी को लाने का प्रयास कर रही है, तो तमिलनाडु और केरल में भी उसने छोटे दलों से संपर्क साधा है। तेलंगाना में उसकी स्थिति तमिलनाडु और केरल की अपेक्षा ज्यादा मजबूत है। पिछली बार भाजपा ने यहां 4 सीटों पर जीत हासिल की थी। फिलहाल राज्य में कांग्रेस की सरकार है और बीआरएस मुख्य विपक्षी पार्टी है। ऐसे में वहां त्रिकोणीय संघर्ष होना तय है। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दक्षिण भारतीय राज्यों में धुआंधार प्रचार किया था। मंदिरों के दौरे भी किए थे। ऐसे में भाजपा को उम्मीद है कि इन राज्यों में भी उसका प्रदर्शन बेहतर रहेगा। वहीं, दूसरी ओर, कांग्रेस ‘‘इंडिया’’ को एकजुट करने की कवायद में ही लगी हुई है। आम आदमी पार्टी और सपा के साथ आने से उम्मीदें जगी है। जम्मू-कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस ने भले ही दूरी बना ली है। लेकिन, उसे उम्मीद है कि देर-सबेर वह ‘‘इंडिया’’ के साथ आएगी। कांग्रेस नेता राहुल गांधी की ‘‘न्याय यात्रा’’ जारी है। उससे कांग्रेस को बड़ी उम्मीदें हैं। लेकिन, यह वक्त बताएगा कि की ‘‘न्याय यात्रा’’ से उसे न्याय मिल पाएगा या नहीं। जहां तक छत्तीसगढ़ का सवाल है तो केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने चुनावी शंखनाद कर 11 सीटों पर भाजपा की जीत की पटकथा तैयार कर ली है। उन्होंने स्थानीय नेताओं को ताकीद कर दी है कि 11 से कम सीटें उन्हें मंजूर नहीं है। उधर, कांग्रेस में उहापोह की स्थिति देखी जा रही है। बड़े नेताओं ने चुप्पी साध ली है। दावेदारों में भी कोई हलचल नहीं है। ऐसे में भाजपा के ‘‘ जय श्रीराम’’ और ‘‘मोदी की गारंटी’’ से कांग्रेस कैसे पार पाएगी, यह देखना दिलचस्प होगा।