*कार्डियोलॉजी विभाग में अब तक 4 साल के मासूम से लेकर 102 साल के बुजुर्ग के हृदय में पेसमेकर डाला गया*
*लगभग 22 हजार जीवित बच्चों में से एक को होती है पेसमेकर की आवश्यकता*
रायपुर। पंडित जवाहरलाल नेहरू स्मृति चिकित्सा महाविद्यालय से संबद्ध डॉ. भीमराव अम्बेडकर स्मृति चिकित्सालय स्थित एडवांस कार्डियक इंस्टीट्यूट में कार्डियोलॉजी विभागाध्यक्ष डॉ. स्मित श्रीवास्तव एवं टीम ने 4 वर्षीय मासूम के हृदय में पेसमेकर लगाकर नई जिंदगी दी। मासूम को जन्म से ही हृदय में ब्लॉकेज(रूकावट) था जिसके कारण उसके पल्स (नाड़ी) की गति 40 से 50 बीट प्रति मिनट पर आ गया था। डॉ. श्रीवास्तव के मुताबिक एसीआई में अब तक 4 साल से लेकर 102 साल के बुजुर्ग के हृदय में पेसमेकर का सफल प्रत्यारोपण किया जा चुका है। छोटे बच्चों में पेसमेकर लगाने के केसेस कम ही आते हैं। लगभग 22 हजार जीवित बच्चों में से एक को पेसमेकर लगाने की आवश्यकता होती है। वहीं ज्यादातर केसेस में पेसमेकर की जरूरत नहीं पड़ती। ऐसे केस में एनेस्थेसीया के डॉक्टर की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है क्योंकि बच्चे को पूरा बेहोश करके पेसमेकर डालना पड़ता है।
मासूम के केस के सम्बन्ध में विस्तृत जानकारी देते हुए डॉ. स्मित श्रीवास्तव कहते हैं कि बच्चे को जन्मजात हार्ट ब्लॉक की समस्या थी। शुरू में तो पता नहीं चला लेकिन खेलकूद के दौरान हांफने लगा। बच्चे को बार-बार सर्दी-खांसी होती थी। अस्पताल में शिशु रोग विशेषज्ञ को दिखाया तो पता चला कि हार्ट में ब्लॉकेज है। उसके बाद बच्चे को एसीआई लेकर आये जहां पर बच्चे की समस्या को देखते हुए पेसमेकर लगाने का निर्णय लिया गया। बच्चा छोटा था इसलिए पेसमेकर लगाते समय इस बात का विशेष ध्यान रखना था कि सुई को बेहद सावधानीपूर्वक डाला जाए। बच्चे का वजन भी अपेक्षाकृत कम था।
*ऐसे डाला गया पेसमेकर*
कैथलैब में फ्लूरोस्कोपी की सहायता से लेफ्ट सबक्लेवियन वेन को पंक्चर करके राइट वेंट्रिकल एपेक्स में पेसमेकर लीड डाला गया। बच्चा छोटा था इसलिए सुई को बड़े ध्यान से डाला गया। सुई और तार की साइज बड़ी रहती है इसलिए हार्ट को नुकसान होने की संभावना रहती है। पेसमेकर के तार को एक्स्ट्रा लूप डालकर छोड़ा जाता है क्योंकि बच्चे की उम्र जैसे-जैसे बढ़ेगी हार्ट की साइज भी बढ़ेगी। बच्चे की ऊंचाई भी बढ़ेगी इसलिए तार में खिंचाव आएगा। इसी को ध्यान में रखते हुए तार में एक्स्ट्रा लूप डालकर छोड़ा गया।
मासूम के पिता के मुताबिक, मैं उन सभी डॉक्टरों का शुक्रगुज़ार हूं जिन्होंने मेरे बेटे की बीमारी को समय पर पहचान कर एसीआई में उपचार कराने में सहयोग प्रदान किया। एसीआई के डॉक्टर स्मित श्रीवास्तव ने मेरे बेटे की समय रहते जान बचाई और नया जीवन दिया इसके लिए उनको धन्यवाद देता हूं। दिल के सरकारी अस्पताल में मेरे मासूम बेटे को बेहतर उपचार मिला।
*टीम में ये रहे शामिल*
मासूम को पेसमेकर लगाने वाले डॉक्टरों की टीम में कार्डियोलॉजी विभागाध्यक्ष डॉ. स्मित श्रीवास्तव के साथ डॉ. प्रतीक गुप्ता, कार्डियक एनेस्थेटिस्ट डॉ. तान्या छौड़ा, सीनियर टेक्नीशियन आई. पी. वर्मा, जितेन्द्र, खेम सिंग, नीलिमा, निशा, मेडिकल सोशल वर्कर खोगेन्द्र साहू एवं डेविड का विशेष सहयोग रहा।