0 संजीव वर्मा
बीता साल हमें कई खट्टे-मीठे अनुभव देकर गुजारा है। अब नई आशाओं, आकांक्षाओं और उम्मीदों के साथ नए वर्ष का सूरज निकल चुका है। इस नए वर्ष में लोगों की नई उम्मीदें उछाल मार रही हैं। यह अनायास नहीं है। नए साल में कई नए काम होने हैं। राम मंदिर का निर्माण सामने हैं, तो आगामी लोकसभा चुनाव को भी चंद महीने शेष है। यानी दो महत्वपूर्ण घटनाक्रम सामने है। जहां तक अयोध्या में राम मंदिर का सवाल है तो इसके उद्घाटन समारोह को भव्य बनाने के लिए भाजपा सहित आरएसएस और विश्व हिन्दू परिषद ने पूरी ताकत झोंक दी है। देश के हर राज्य और हर जिले से लेकर मंडल और बूथ स्तर तक कार्यक्रम आयोजित कर भाजपा अधिक से अधिक लोगों तक पहुंच बनाने प्राणपण से जुट गई है। इससे यह साफ है कि वह राम मंदिर निर्माण को आगामी चुनाव में अपना मुख्य चुनावी एजेंडा बनाएगी। यानी 2024 की लड़ाई में विपक्ष का मुकाबला ‘राम’ के मुद्दे से होगा। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि विपक्ष और उसका गठबंधन ‘इंडिया’ इसका मुकाबला कैसे कर पाएगा। वैसे हिमाचल और कर्नाटक विधानसभा चुनाव की जीत से कांग्रेस सहित विपक्ष बेहद उत्साहित था। लेकिन अभी हाल ही संपन्न छत्तीसगढ़ सहित 5 राज्यों के चुनाव में जिस तरह से कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा था। इससे विपक्ष सहम सा गया है। कांग्रेस के हौंसले पस्त हो गए है और वह उससे उबरने का रास्ता तलाश कर रही है। पिछले हफ्ते नागपुर में हुए कांग्रेस के अधिवेशन और कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की भारत न्याय यात्रा निकालने के निर्णय से पार्टी को थोड़ा संबल मिला है। लेकिन यह नाकाफी है। विपक्ष का बना ‘इंडिया’ गठबंधन भी भ्रम का शिकार होता दिख रहा है। जब से पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को प्रधानमंत्री का चेहरा बनाने का प्रस्ताव किया है। तब से गठबंधन में तनातनी की स्थिति दिख रही है। जद-यू, राजद से लेकर कांग्रेस तक अपनी ढपली-अपना राग अलापने में लगे हैं। सीट बंटवारे का मुद्दा सबसे अहम है। कोई भी दल अपनी सीट छोड़ना नहीं चाहता। ऐसे में ‘इंडिया’ गठबंधन की राह आसान नहीं होने वाली। दूसरी तरफ सत्ताधारी भाजपा उत्साह से लबरेज है। तीन हिन्दी पट्टी राज्यों में मिली जीत के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सत्ता के ब्रांड अंबेसडर के रुप में उभरकर सामने आए हैं। उन्हें हराना विपक्ष के लिए बड़ी चुनौती बन गई है। लोग तो यह कह रहे हैं कि अब तो मोदी की गारंटी भी चलने लगी है। निश्चित रूप से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी राजनीति की बारीकियों के मर्मज्ञ और जनता की नब्ज को टटोलने में माहिर हैं। उन्होंने कर्नाटक विधानसभा चुनाव में हार के बाद जिस तरह से पांच राज्यों के चुनाव में भाजपा को सफलता दिलाई वह यह कहने के लिए काफी है कि ‘मोदी है तो मुमकिन है’। अब भाजपा पूरी तरह मोदी पर निर्भर हो गई है। भाजपा के नेता तो दावा भी करने लगे है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में मोदी की गारंटी के दम पर एनडीए 350 सीटों के आंकड़ों को पार करेगा। उनके तर्क में दम भी है। वे कहते है कि अयोध्या में भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा हो जाने दीजिए। फिर देखिए भाजपा का दांव। दरअसल भाजपा का मुख्य फोकस प्रधानमंत्री का चेहरा, हिन्दुत्व, राष्ट्रवाद और विकास पर केंद्रित रहेगा और वे इसी के सहारे चुनावी समर में उतरेगी। एक सर्वे में यह बात भी सामने आई हैं कि पहली बार वोट करने वाले नए मतदाताओं में भी राम मंदिर का मुद्दा आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। ऐसे मतदाताओं का आंकड़ा 15 करोड़ के आसपास बताया गया है। ऐसे में इसका लाभ भाजपा को मिल सकता है। वहीं, विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ मुद्दों के अभाव से जूझ रहा है। हिन्दुत्व और राष्ट्रवाद के सामने आज महंगाई, गरीबी और बेरोजगारी जैसे मुद्दे गौण हो चुके हैं। ऐसे में अब उसके पास जातिगत जनगणना और ओबीसी आरक्षण ही मुख्य चुनावी हथियार हो सकता है। हालांकि भाजपा इस मुद्दे को बेअसर करने में पहले से ही लगी हुई है। अभी तीन राज्यों में बनी सरकारों में उसने, ओबीसी, दलित, आदिवासी और ब्राह्मण को उचित भागीदारी देकर उन्हें अपने साथ लाने की कोशिश की है। यानी हर राज्य की सरकार और पार्टी संगठन में वह हर वर्ग के लोगों की भागीदारी सुनिश्चित करने में लगी है। ऐसे में विपक्षी गठबंधन के लिए 2024 की राह दुरूह और कठिन दिखाई दे रही है। लेकिन एकता में बड़ी ताकत होती है। यदि विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ में एका बनी रही तो भाजपा के लिए भी 2024 की राह आसान नहीं होगी।