0 संजीव वर्मा
छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने सत्ता संभाल ली है। मुख्यमंत्री के साथ दो उपमुख्यमंत्रियों ने शपथ ली है। लेकिन मंत्रिमंडल विस्तार की अटकलें जारी है। आज-कल होते-होते पूरे 7 दिन बीत चुके हैं। लेकिन मंत्रिमंडल का विस्तार नहीं हो पाया है। मंत्रिमंडल की कतार में शामिल विधायकों का इंतजार खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा है। फोन की घंटी घनघनाते ही उनके दिल की धड़कनें भी तेज होती जा रही है। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय अपने उपमुख्यमंत्री के साथ दिल्ली में केन्द्रीय नेतृत्व के साथ चर्चा भी कर चुके हैं। रायपुर लौटने के बाद मुख्यमंत्री ने कहा है कि मंत्रिमंडल का शीघ्र ही विस्तार किया जाएगा। लेकिन पता नहीं वो शुभ मुहुर्त कब आएगा? खैर, जो होना है वह होगा। इस बार भाजपा फूंक-फूंक कर कदम रख रही है। माना जा रहा है कि पुराने के साथ नए चेहरों को मंत्रिमंडल में जगह दी जाएगी। हालांकि यह भी चर्चा में है कि मंत्रिमंडल में अधिक से अधिक नए विधायकों को जगह मिलेगी। केन्द्रीय नेतृत्व चाहता है कि मंत्रिमंडल के स्वरूप में बदलाव दिखे। जिस तरह से राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री के रूप में नए चेहरों को तवज्जों दी गई है। उसी तरह की रणनीति मंत्रिमंडल के गठन में भी अपनाई जा सकती है। जहां तक छत्तीसगढ़ का सवाल है तो भाजपा पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में लौटी है। अस्थिरता जैसी कोई समस्या नहीं है, लिहाजा केंद्रीय नेतृत्व चाहता है कि उसकी मर्जी के अनुरूप मंत्रिमंडल बने। हालांकि यह इतना आसान नहीं है। कई बड़े चेहरे चुनाव जीतकर आए हैं, उन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता क्योंकि भाजपा आगामी लोकसभा चुनाव को देखते हुए निर्णय लेगी। ऐसी भी खबरें है कि पार्टी हर लोकसभा क्षेत्र से एक मंत्री बनाने के साथ जातिगत समीकरण को भी साधना चाह रही है। ऐसे में ओबीसी और अनुसूचित जनजाति को महत्व मिल सकता है। प्रदेश में ओबीसी और आदिवासी जनसंख्या सर्वाधिक है। लिहाजा इन वर्गों का प्रतिनिधित्व भी अधिक होने की संभावना है। वैसे जिन लोगों के नाम चर्चा में हैं, उनमें सामान्य वर्ग से बृजमोहन अग्रवाल और पुरंदर मिश्रा शामिल हैं जबकि ओबीसी से ओपी चौधरी पहले नंबर पर हैं। अजय चंद्राकर और धरमलाल कौशिक के अलावा नए विधायकों में गजेन्द्र यादव और ललित चंद्राकर के नामों पर भी विचार किया जा रहा है। वहीं, आदिवासियों में प्रोटेम स्पीकर बनाए गए रामविचार नेताम के अलावा केदार कश्यप, लता उसेंडी, रेणुका सिंह और गोमती साय के नामों की भी चर्चा है। इनके साथ अनुसूचित जाति से डोमन लाल कोर्सेवाड़ा, दयालदास बघेल और नए चेहरे में खुशवंत साहेब का नाम राजनीतिक गलियारों में तैर रहा है। लेकिन इसमें कितनी सच्चाई है, यह तो भाजपा आलाकमान या मुख्यमंत्री ही बता सकेंगे। बहरहाल, अभी वेट एंड वॉच की स्थिति बनी हुई है। दूसरी ओर कांग्रेस में हार के बाद कोहराम मचा हुआ है। आए दिन कोई न कोई नेता इस्तीफा देकर यह बताने का प्रयास कर रहे हैं कि प्रदेश नेतृत्व के फैसले के कारण पार्टी की हार हुई है। जिन विधायकों की टिकट काट दी गई थी। वे ज्यादा आक्रामक हैं। दो पूर्व विधायकों बृहस्पत सिंह और विनय जायसवाल को पार्टी ने 6 वर्षों के लिए निष्कासित भी कर दिया है। जबकि कई अन्य पूर्व विधायक दिल्ली में केन्द्रीय नेतृत्व के सामने अपनी बात रखने की बात कह रहे हैं। हालांकि पार्टी के महासचिव वेणु गोपाल से उनकी चर्चा हो चुकी है। लेकिन वे राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी से चर्चा करना चाहते हैं। यह अलग बात है कि अभी तक उन्हें समय नहीं मिल पाया है। इस बीच, केन्द्रीय नेतृत्व के रूख को देखकर ऐसा नहीं लग रहा है कि इन्हें ज्यादा तवज्जों मिल रही है। दरअसल पार्टी इसे हार के बाद की स्वभाविक प्रतिक्रिया के रूप में देख रही है। एक बारगी यह सच भी है। जीत जाते तो यहीं नेता नेतृत्व की तारीफ में कसीदे गढ़ते नहीं थकते। चूंकि अब हार हुई है, तो आरोपों के तीर छोड़ रहे हैं। खैर! यही राजनीति है और राजनीति में साम-दाम-दंड सभी भेद अपनाए जाते हैं, इसलिए इसे भी राजनीतिक नजरिए से ही देखा जाना चाहिए।